लखनऊः उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम एक जून को 50 साल का हो रहा है. निगम प्रबंधन अपने इस स्वर्ण शताब्दी वर्ष को धूमधाम से मनाने को तैयार है. रोडवेज का अपना अद्भुत इतिहास है. आजादी से पहले 15 मई 1947 को राजकीय रोडवेज की स्थापना हुई थी और लखनऊ से बाराबंकी के बीच पहली बार बस सेवा का संचालन शुरू हुआ था. सिर्फ 25 आना ही एक यात्री का किराया लगता था. फरवरी 1948 में केंद्रीय कार्यशाला से पहली बस डिजाइन हुई थी, जो 22 सीटर थी. इस बस की शेवरलेट पेट्रोल चेसिस थी. देखने में यह बस कार के आकार जैसी थी.
साल 1972 में राजकीय रोडवेज से अलग उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम बन गया. एक जून 1972 से एक जून 2022 तक 50 साल में परिवहन निगम ने तमाम कीर्तिमान स्थापित किए. परिवहन निगम का साल 1972 में 15 करोड़ की देनदारियों के साथ सफर शुरू हुआ था. आज निगम 300 करोड़ रुपए के फायदे में है. निगम की स्थापना के समय उसके पास 4,253 बसों का बेड़ा था जो 1,123 मार्गों पर चल रही थीं. आज देश का सबसे बड़ा बस बेड़ा उत्तर प्रदेश के ही पास है. 11 हजार बसें यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती हैं. इसके अलावा वर्तमान में परिवहन निगम के 20 रीजनल ऑफिस हैं और 120 डिपो के साथ ही 300 बस स्टेशन हैं, जहां पर यात्रियों को तमाम सुविधाएं मिल रही हैं.
बाराबंकी तक चलने वाली बस अब जाती है जम्मू कश्मीर : लखनऊ से बाराबंकी के बीच शुरू हुआ रोडवेज बस का सफर आज जम्मू कश्मीर तक पहुंच गया है. रोडवेज की बसें उत्तर प्रदेश से बाहर निकल कर देश के आठ राज्यों के बीच यात्रियों को सुविधा प्रदान कर रही हैं. देश के सबसे उत्तरी क्षेत्र जम्मू कश्मीर तक बस जाती है तो हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और बिहार तक की दूरी तय कर रही है.
विदेश में भी अपने प्रदेश की बस का डंका : उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों के साथ ही आठ राज्यों के बीच संचालित होने वाली बस देश की सीमा पार कर विदेश की भी सैर करा रही है. भारत के पड़ोसी देश नेपाल तक रोडवेज बसों का संचालन हो रहा है. ऐसे में कहा जा सकता है कि दो शहरों के बीच शुरू हुई रोडवेज बस आज विदेश तक यात्रियों को सफर की सुविधा मुहैया करा रही है.
कोरोना के दौर में निभाई 'संकट का साथी' की भूमिका : उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का स्लोगन है 'संकट का साथी' और इस स्लोगन को परिवहन निगम ने संकट के समय साबित भी कर दिया. जब देश में कोरोना जैसी भीषण त्रासदी आई तो रोडवेज बसें यात्रियों के लिए वरदान साबित हुई थीं. श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाने में रोडवेज बसों ने ही अहम भूमिका निभाई थी.
249 अपने बस स्टेशन, 51 किराए के : परिवहन निगम के पास 300 बस स्टेशन हैं. जिनमें से 249 स्वामित्व के परिसर में हैं और 51 किराए के परिसर में हैं. यात्रियों की सुविधा के लिए स्टेशन पर शौचालय, कैंटीन, बुकिंग कार्यालय, पीने के पानी की सुविधा, समय सारिणी, चार्ट डिस्प्ले, पूछताछ काउंटर, पब्लिक एड्रेस सिस्टम, लाइट, पंखे, सीट व बेंच हैं.
ये हैं अत्याधुनिक बस स्टेशन : उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का लखनऊ में कैसरबाग बस स्टेशन पहला वातानुकूलित बस स्टेशन बना. इसके बाद आलमबाग में पीपीपी मॉडल पर पहला अत्याधुनिक आलमबाग बस स्टेशन बनकर तैयार हुआ. इसके बाद अवध बस स्टेशन बनकर तैयार हुआ जो प्रदेश का पहला ग्रीन बस स्टेशन है.
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उत्तर प्रदेश रोडवेज मजदूर संघ के प्रांतीय प्रवक्ता रजनीश मिश्रा परिवहन निगम के 50 साल पहले शुरू हुए सफर को लेकर कहते हैं कि लखनऊ से बाराबंकी के बीच पहली बार बस चली थी. आज देश के अनेक राज्यों के बीच बसों का संचालन हो रहा है. विदेशों में नेपाल तक हमारी बसें जा रही हैं. सबसे उत्तरी क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में भी यात्रियों को बस पहुंचा रही है. इन 50 वर्षों में रोडवेज ने बहुत विकास किया है. लाखों लोगों को रोजगार दिया है. परोक्ष रूप से करोड़ों लोग किसी न किसी रूप में परिवहन निगम से जुड़े हुए हैं.
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