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टॉम एंड जेरी जैसी है अखिलेश-राजभर की दोस्ती, 5 बयानों ने बढ़ाई है अखिलेश की परेशानी

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Published : Jul 11, 2022, 5:01 PM IST

अखिलेश-राजभर की दोस्ती इन दिनों राजनितीक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है. इनकी इस दोस्ती पर राजनीति विश्लेषक तरह-तरह के बयान दे रहें हैं.

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अखिलेश-राजभर

लखनऊ: यूपी में बीते 2022 के विधानसभा चुनाव में गैर यादव ओबीसी वोटर को लुभाने के लिए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव (SP supremo Akhilesh Yadav) ने जिस ओम प्रकाश राजभर से दोस्ती की थी, अब उनके लिए वहीं, दोस्ती सबसे बड़ी परेशानी बनती जा रही है. चुनाव में हार मिलने के बाद से ही राजभर अखिलेश के साथ होने का दावा तो करते हैं, लेकिन हर दिन एक बयान देकर वे अखिलेश के विरोधियों की कमी को पूरी कर देते हैं. अब मौजूदा समय में राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर भी कमोबेश वहीं, स्थिति पैदा हो गयी है. राजभर अखिलेश को अपना नेता मान रहे हैं और एनडीए की प्रत्याशी द्रोपदी मुर्मू की पार्टी में पहुंच कर दिनर बगावत भी कर रहे.

ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) ने सोमवार को ये मान लिया कि वो बीते शनिवार को एनडीए की राष्ट्रपति प्रत्याशी द्रोपदी मुर्मू (NDA's presidential candidate Draupadi Murmu) की डिनर पार्टी में शामिल होने के लिए सीएम आवास गए थे. लेकिन वो ये भी कह रहे हैं कि साथ तो वो गठबंधन के है और जैसा अखिलेश यादव कहेंगे वैसे ही किया जाएगा.

राजनीति विश्लेषक योगेश मिश्रा

ऐसे में अब राजभर अपने यू टर्न राजनीति से एक बार फिर अखिलेश यादव की चिंताएं बढ़ा रहे हैं. न सिर्फ राष्ट्रपति चुनाव में बल्कि बीते कुछ महीनों में राजभर ने कई बार अखिलेश के लिए अपने बयानों से राजनीति गरमाई है. आइए जानते हैं कि ऐसे उन 5 बयानों के बारे में जिस पर राजभर ने अखिलेश के माथे पर शिकन पैदा की थी.


मुझे तो मालूम था कि हम हार रहे लेकिन चुप था: राजभर
यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे के दूसरे दिन ही 13 मार्च 2022 को ओम प्रकाश राजभर ने एक सनसनीखेज बयान देकर गठबंधन की नींव हिला दी थी. जहां एक तरफ समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता ईवीएम को हार का कारण बता रहे थे. उस बीच राजभर ने स्वीकार किया था कि उन्हें पहले चरण के बाद से ही उन्हें गठबंधन की हार का एहसास हो गया था. उन्होंने कहा था कि हार का अहसास होने के बावजूद उन्होंने चुप रहना बेहतर समझा. राजभर ने कहा, एक डॉक्टर की तरह, जो एक मरीज के परिवार को कभी नहीं बताता कि वह मरने वाला है, लेकिन वह वास्तव में मर जाता है.
एसी कमरे से बाहर नही निकलते अखिलेश: राजभर
23 मई को यूपी विधानसभा सत्र चल रहा था और अखिलेश यादव नेता प्रतिपक्ष के तौर पर पहली बार सदन में मौजूद थे. इस दौरान मीडिया से बात करते हुए ओपी राजभर ने कहा कि जब सपा नेता मुझसे मिलते हैं, तो वे मुझसे कहते हैं कि मैं अपने नेताओं को अपने घर से बाहर निकलने और जनता के बीच जाने के लिए कहूं, जैसे मैं करता हूं. इसलिए, अखिलेश यादव को बाहर निकलने और जनता के बीच जाने की जरूरत है. बैठकों की एक श्रृंखला और पार्टी को मजबूत करने की जरूरत है.

बेटे को विधान परिषद ने भेजे जाने पर पार्टी कार्यकर्ताओं से अखिलेश को सुनवाई खरी- खोटी
यूपी में विधान परिषद के चुनाव में सपा चीफ से ओम प्रकाश राजभर ने अपने बेटे अरविंद राजभर को एमएलसी बनाने की मांग की थी. सपा ने ऐसा नहीं किया तो राजभर की पार्टी आग बबूला हो गयी. राजभर के बेटों और प्रवक्ताओं ने एक के बाद एक अखिलेश यादव को खरी -खोटी सुनाई. ओमप्रकाश राजभर के बेटे और सुभासपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने कहा था कि झूठी तसल्ली देकर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने उन्हें गच्चा दे दिया है. राजभर की पार्टी ने अखिलेश यादव को दलित और ओबीसी विरोधी तक बता दिया था. लेकिन ओम प्रकाश राजभर तब भी खुद को अखिलेश और गठबंधन के साथ बता रहे थे.

उप चुनाव हारने के बाद अखिलेश पर बिफरे थे राजभर
यूपी की दो लोकसभा सीटें रामपुर और आजमगढ़ में सपा को हार मिली थी. आजमगढ़ में तो सपा प्रत्यासी धर्मेंद्र यादव के समर्थन में ओम प्रकाश राजभर ने जम कर प्रचार किया था. बावजूद इसके जब उन्हें हार मिली तो इसका ठीकरा उन्होंने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव पर फोड़ दिया. राजभर ने पूछा कि अखिलेश यादव आजमगढ़ क्यों नहीं गए? हम भी अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, हमने वहां 12 दिन धूल फांकी और ये लोग एसी में बैठकर रसमलाई चापते रहे. उन्होंने कहा कि वो पहले भी कई बार अखिलेश यादव को नसीहत दे चुके हैं, उपचुनाव हो गया, परिणाम आ गया लेकिन वो अब तक मेरी बातों पर सिर्फ विचार ही कर रहे हैं.

राष्ट्रपति चुनाव में राजभर अखिलेश के साथ है भी और नहीं भी
राष्ट्रपति चुनाव में राजभर अखिलेश के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब बने हुए हैं. 8 जुलाई को विपक्ष के प्रत्यासी यशवंत सिन्हा सपा कार्यालय पहुंचे थे. इस मौके पर गठबंधन के सहयोगी जयंत चौधरी भी मौजूद रहे. लेकिन राजभर कहीं भी नहीं दिखे. इस बाबत जब राजभर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जब बुलाया ही नहीं तो जाए कैसे. और जब राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन की बात पूछी गयी तो कहा कि अखिलेश यादव के सामने बात रख दी गयी है.

इसे भी पढ़ेंः सीएम योगी ने किसानों को बांटे अंश धारक प्रमाण पत्र, बोले- बायो डीजल को बढ़ावा देने के लिए तैयार रहें

12 तारीख को फैसला लिया जाएगा. इस बयान के 10 मिनट बाद ही राजभर सीएम आवास पहुंच गए और राष्ट्रपति प्रत्यासी द्रोपदी मुर्मू के साथ डिनर करने लगे. डिनर से निकलने के 2 दिन बाद एक बार फिर राजभर ने बयान दिया और कहा वो है तो गठबंधन के साथ लेकिन द्रोपदी जी ने बुलाया था तो चले गए.

राजभर एक कदम पीछे व दो कदम आगे चल रहे: राजनीतिक विश्लेषक
अखिलेश यादव और ओम प्रकाश राजभर की इस दोस्ती पर राजनीति विश्लेषक योगेश मिश्रा (Political analyst Yogesh Mishra) ने कहा कि ओम प्रकाश राजभर जैसे नेता सिर्फ सत्ता के साथ होते हैं. ये विपक्ष की राजनीति नहीं कर सकते हैं. वे जानते हैं कि जब तक वो सत्ता के साथ रहेंगे तभी उनकी हैसियत बढ़ेगी और उनके लोग स्थापित हो सकेंगे.

विधानसभा चुनाव के दौरान राजभर को लग रहा था कि सपा की सरकार बन रही है, इसलिए वो सपा के साथ हो लिए. उस दौरान भाजपा ने भी कोई खास आफर नहीं दिया था. और जब दिया तब राजभर बहुत आगे निकल चुके थे. उन्होंने कहा कि राजभर एक कदम पीछे और दो कदम आगे चलते हैं. जब वो कदम पीछे करते हैं, तब अखिलेश के साथ होते हैं और जब दो कदम आगे तब वो भाजपा के साथ दिखते हैं. ऐसे में धीरे-धीरे वो लोकसभा चुनाव तक अखिलेश से बहुत दूर जा चुके होंगे.

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लखनऊ: यूपी में बीते 2022 के विधानसभा चुनाव में गैर यादव ओबीसी वोटर को लुभाने के लिए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव (SP supremo Akhilesh Yadav) ने जिस ओम प्रकाश राजभर से दोस्ती की थी, अब उनके लिए वहीं, दोस्ती सबसे बड़ी परेशानी बनती जा रही है. चुनाव में हार मिलने के बाद से ही राजभर अखिलेश के साथ होने का दावा तो करते हैं, लेकिन हर दिन एक बयान देकर वे अखिलेश के विरोधियों की कमी को पूरी कर देते हैं. अब मौजूदा समय में राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर भी कमोबेश वहीं, स्थिति पैदा हो गयी है. राजभर अखिलेश को अपना नेता मान रहे हैं और एनडीए की प्रत्याशी द्रोपदी मुर्मू की पार्टी में पहुंच कर दिनर बगावत भी कर रहे.

ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) ने सोमवार को ये मान लिया कि वो बीते शनिवार को एनडीए की राष्ट्रपति प्रत्याशी द्रोपदी मुर्मू (NDA's presidential candidate Draupadi Murmu) की डिनर पार्टी में शामिल होने के लिए सीएम आवास गए थे. लेकिन वो ये भी कह रहे हैं कि साथ तो वो गठबंधन के है और जैसा अखिलेश यादव कहेंगे वैसे ही किया जाएगा.

राजनीति विश्लेषक योगेश मिश्रा

ऐसे में अब राजभर अपने यू टर्न राजनीति से एक बार फिर अखिलेश यादव की चिंताएं बढ़ा रहे हैं. न सिर्फ राष्ट्रपति चुनाव में बल्कि बीते कुछ महीनों में राजभर ने कई बार अखिलेश के लिए अपने बयानों से राजनीति गरमाई है. आइए जानते हैं कि ऐसे उन 5 बयानों के बारे में जिस पर राजभर ने अखिलेश के माथे पर शिकन पैदा की थी.


मुझे तो मालूम था कि हम हार रहे लेकिन चुप था: राजभर
यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे के दूसरे दिन ही 13 मार्च 2022 को ओम प्रकाश राजभर ने एक सनसनीखेज बयान देकर गठबंधन की नींव हिला दी थी. जहां एक तरफ समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता ईवीएम को हार का कारण बता रहे थे. उस बीच राजभर ने स्वीकार किया था कि उन्हें पहले चरण के बाद से ही उन्हें गठबंधन की हार का एहसास हो गया था. उन्होंने कहा था कि हार का अहसास होने के बावजूद उन्होंने चुप रहना बेहतर समझा. राजभर ने कहा, एक डॉक्टर की तरह, जो एक मरीज के परिवार को कभी नहीं बताता कि वह मरने वाला है, लेकिन वह वास्तव में मर जाता है.
एसी कमरे से बाहर नही निकलते अखिलेश: राजभर
23 मई को यूपी विधानसभा सत्र चल रहा था और अखिलेश यादव नेता प्रतिपक्ष के तौर पर पहली बार सदन में मौजूद थे. इस दौरान मीडिया से बात करते हुए ओपी राजभर ने कहा कि जब सपा नेता मुझसे मिलते हैं, तो वे मुझसे कहते हैं कि मैं अपने नेताओं को अपने घर से बाहर निकलने और जनता के बीच जाने के लिए कहूं, जैसे मैं करता हूं. इसलिए, अखिलेश यादव को बाहर निकलने और जनता के बीच जाने की जरूरत है. बैठकों की एक श्रृंखला और पार्टी को मजबूत करने की जरूरत है.

बेटे को विधान परिषद ने भेजे जाने पर पार्टी कार्यकर्ताओं से अखिलेश को सुनवाई खरी- खोटी
यूपी में विधान परिषद के चुनाव में सपा चीफ से ओम प्रकाश राजभर ने अपने बेटे अरविंद राजभर को एमएलसी बनाने की मांग की थी. सपा ने ऐसा नहीं किया तो राजभर की पार्टी आग बबूला हो गयी. राजभर के बेटों और प्रवक्ताओं ने एक के बाद एक अखिलेश यादव को खरी -खोटी सुनाई. ओमप्रकाश राजभर के बेटे और सुभासपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने कहा था कि झूठी तसल्ली देकर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने उन्हें गच्चा दे दिया है. राजभर की पार्टी ने अखिलेश यादव को दलित और ओबीसी विरोधी तक बता दिया था. लेकिन ओम प्रकाश राजभर तब भी खुद को अखिलेश और गठबंधन के साथ बता रहे थे.

उप चुनाव हारने के बाद अखिलेश पर बिफरे थे राजभर
यूपी की दो लोकसभा सीटें रामपुर और आजमगढ़ में सपा को हार मिली थी. आजमगढ़ में तो सपा प्रत्यासी धर्मेंद्र यादव के समर्थन में ओम प्रकाश राजभर ने जम कर प्रचार किया था. बावजूद इसके जब उन्हें हार मिली तो इसका ठीकरा उन्होंने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव पर फोड़ दिया. राजभर ने पूछा कि अखिलेश यादव आजमगढ़ क्यों नहीं गए? हम भी अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, हमने वहां 12 दिन धूल फांकी और ये लोग एसी में बैठकर रसमलाई चापते रहे. उन्होंने कहा कि वो पहले भी कई बार अखिलेश यादव को नसीहत दे चुके हैं, उपचुनाव हो गया, परिणाम आ गया लेकिन वो अब तक मेरी बातों पर सिर्फ विचार ही कर रहे हैं.

राष्ट्रपति चुनाव में राजभर अखिलेश के साथ है भी और नहीं भी
राष्ट्रपति चुनाव में राजभर अखिलेश के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब बने हुए हैं. 8 जुलाई को विपक्ष के प्रत्यासी यशवंत सिन्हा सपा कार्यालय पहुंचे थे. इस मौके पर गठबंधन के सहयोगी जयंत चौधरी भी मौजूद रहे. लेकिन राजभर कहीं भी नहीं दिखे. इस बाबत जब राजभर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जब बुलाया ही नहीं तो जाए कैसे. और जब राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन की बात पूछी गयी तो कहा कि अखिलेश यादव के सामने बात रख दी गयी है.

इसे भी पढ़ेंः सीएम योगी ने किसानों को बांटे अंश धारक प्रमाण पत्र, बोले- बायो डीजल को बढ़ावा देने के लिए तैयार रहें

12 तारीख को फैसला लिया जाएगा. इस बयान के 10 मिनट बाद ही राजभर सीएम आवास पहुंच गए और राष्ट्रपति प्रत्यासी द्रोपदी मुर्मू के साथ डिनर करने लगे. डिनर से निकलने के 2 दिन बाद एक बार फिर राजभर ने बयान दिया और कहा वो है तो गठबंधन के साथ लेकिन द्रोपदी जी ने बुलाया था तो चले गए.

राजभर एक कदम पीछे व दो कदम आगे चल रहे: राजनीतिक विश्लेषक
अखिलेश यादव और ओम प्रकाश राजभर की इस दोस्ती पर राजनीति विश्लेषक योगेश मिश्रा (Political analyst Yogesh Mishra) ने कहा कि ओम प्रकाश राजभर जैसे नेता सिर्फ सत्ता के साथ होते हैं. ये विपक्ष की राजनीति नहीं कर सकते हैं. वे जानते हैं कि जब तक वो सत्ता के साथ रहेंगे तभी उनकी हैसियत बढ़ेगी और उनके लोग स्थापित हो सकेंगे.

विधानसभा चुनाव के दौरान राजभर को लग रहा था कि सपा की सरकार बन रही है, इसलिए वो सपा के साथ हो लिए. उस दौरान भाजपा ने भी कोई खास आफर नहीं दिया था. और जब दिया तब राजभर बहुत आगे निकल चुके थे. उन्होंने कहा कि राजभर एक कदम पीछे और दो कदम आगे चलते हैं. जब वो कदम पीछे करते हैं, तब अखिलेश के साथ होते हैं और जब दो कदम आगे तब वो भाजपा के साथ दिखते हैं. ऐसे में धीरे-धीरे वो लोकसभा चुनाव तक अखिलेश से बहुत दूर जा चुके होंगे.

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