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यूपी में शिक्षकों की रिटायरमेंट उम्र 65 न किए जाने पर उठ रहे सवाल, जानिए क्या है दूसरे राज्यों का हाल - retirement age 65

शिक्षकों का कहना है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पहले से ही यह व्यवस्था लागू है. भारतीय जनता पार्टी शासित राज्य मध्य प्रदेश, उत्तराखंड से लेकर बिहार, छत्तीसगढ़ तक में इसे लागू कर दिया गया है.

शिक्षक नेता डॉ. मनीष हिन्दवी
शिक्षक नेता डॉ. मनीष हिन्दवी
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Published : May 25, 2022, 6:21 PM IST

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में विश्वविद्यालय से लेकर कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की सेवानिवृत्त की उम्र 65 वर्ष न किए को लेकर सवाल उठने लगे हैं. शिक्षकों ने योगी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. शिक्षकों का कहना है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पहले से ही यह व्यवस्था लागू है. भारतीय जनता पार्टी शासित राज्य मध्य प्रदेश, उत्तराखंड से लेकर बिहार, छत्तीसगढ़ तक में इसे लागू कर दिया गया है. बावजूद इसके, उत्तर प्रदेश में इस पर सरकार खामोश बैठी है जबकि सेवानिवृत्त के कारण बढ़ी संख्या में विश्वविद्यालयों से लेकर डिग्री कॉलेजों तक में पद खाली पड़े हैं.

यह मामले सामने आने पर उठी चर्चा : बीते दिनों प्रदेश में कुछ कोर्ट केस सामने आए हैं. इसमें शिक्षकों ने 65 वर्ष का लाभ मिलने को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. ऐसा ही एक मामला सरदार वल्लभभाई पटेल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. देवेन्द्र नारायण मिश्रा की ओर से उठाया गया. उन्होंने कोर्ट में जाने से पहले सरकार को प्रत्यावेदन दिया था कि उत्तराखंड में भी इसे लागू किया जा चुका है. कोर्ट ने 19 अप्रैल 2022 को जारी आदेश में सरकार को इस प्रकरण में तीन महीने में फैसला करने को कहा.

शिक्षक नेता डॉ. मनीष हिन्दवी

ऐसा ही एक प्रकरण महात्मा ज्योतिबाफूले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय के डॉ.अजय त्रिवेदी ने भी उठाया. वह भी शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की उम्र 62 से 65 वर्ष किए जाने को लेकर कोर्ट पहुंचे. कोर्ट ने प्रोफेसर डॉ. देवेंद्र नारायण मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (तीन अन्य) के फैसले के आधार पर कुलपति और रजिस्ट्रार को फैसला लेने को कहा. तब तक उन्हें अपने पद पर बने रहने की छूट दी गई है.

ये भी पढ़ें : लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र कल्याण छात्रवृत्ति के लिए 50 छात्रों का चयन

यह है जमीनी हकीकत : शिक्षक नेता डॉ. मनीष हिन्दवी का कहना है कि उच्च शिक्षा में गुणवत्ता और मानकों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियम मानते हैं. यूजीसी ने बहुत पहले से उच्च शिक्षा संस्थानों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु के 65 वर्ष कर दिया है. केंद्रीय विश्वविद्यालयों में यह लागू है. यहां तक की आसपास के भारतीय जनता पार्टी शासित प्रदेशों में भी यह लागू है. लेकिन पता नहीं क्यूं उत्तर प्रदेश में इसे लागू नहीं किया जा रहा है.

एक तरफ सरकार रिटायर्ड टीचर को पढ़ाने के लिए अधिकतम 70 वर्ष तक की सीमा देती है. मगर, सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष नहीं कर रही है. अगर आप मानते हैं कि वह 70 वर्ष तक पढ़ा सकते हैं तो आयु 62 से 65 वर्ष क्यों नहीं कर देते हैं. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करनी है. शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं. इन पर भर्ती की प्रक्रिया कई-कई वर्ष लेती है. सीनियर शिक्षक बने रहेंगे तो उनके अनुभवों का लाभ मिलेगा.

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लखनऊ : उत्तर प्रदेश में विश्वविद्यालय से लेकर कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की सेवानिवृत्त की उम्र 65 वर्ष न किए को लेकर सवाल उठने लगे हैं. शिक्षकों ने योगी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. शिक्षकों का कहना है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पहले से ही यह व्यवस्था लागू है. भारतीय जनता पार्टी शासित राज्य मध्य प्रदेश, उत्तराखंड से लेकर बिहार, छत्तीसगढ़ तक में इसे लागू कर दिया गया है. बावजूद इसके, उत्तर प्रदेश में इस पर सरकार खामोश बैठी है जबकि सेवानिवृत्त के कारण बढ़ी संख्या में विश्वविद्यालयों से लेकर डिग्री कॉलेजों तक में पद खाली पड़े हैं.

यह मामले सामने आने पर उठी चर्चा : बीते दिनों प्रदेश में कुछ कोर्ट केस सामने आए हैं. इसमें शिक्षकों ने 65 वर्ष का लाभ मिलने को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. ऐसा ही एक मामला सरदार वल्लभभाई पटेल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. देवेन्द्र नारायण मिश्रा की ओर से उठाया गया. उन्होंने कोर्ट में जाने से पहले सरकार को प्रत्यावेदन दिया था कि उत्तराखंड में भी इसे लागू किया जा चुका है. कोर्ट ने 19 अप्रैल 2022 को जारी आदेश में सरकार को इस प्रकरण में तीन महीने में फैसला करने को कहा.

शिक्षक नेता डॉ. मनीष हिन्दवी

ऐसा ही एक प्रकरण महात्मा ज्योतिबाफूले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय के डॉ.अजय त्रिवेदी ने भी उठाया. वह भी शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की उम्र 62 से 65 वर्ष किए जाने को लेकर कोर्ट पहुंचे. कोर्ट ने प्रोफेसर डॉ. देवेंद्र नारायण मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (तीन अन्य) के फैसले के आधार पर कुलपति और रजिस्ट्रार को फैसला लेने को कहा. तब तक उन्हें अपने पद पर बने रहने की छूट दी गई है.

ये भी पढ़ें : लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र कल्याण छात्रवृत्ति के लिए 50 छात्रों का चयन

यह है जमीनी हकीकत : शिक्षक नेता डॉ. मनीष हिन्दवी का कहना है कि उच्च शिक्षा में गुणवत्ता और मानकों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियम मानते हैं. यूजीसी ने बहुत पहले से उच्च शिक्षा संस्थानों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु के 65 वर्ष कर दिया है. केंद्रीय विश्वविद्यालयों में यह लागू है. यहां तक की आसपास के भारतीय जनता पार्टी शासित प्रदेशों में भी यह लागू है. लेकिन पता नहीं क्यूं उत्तर प्रदेश में इसे लागू नहीं किया जा रहा है.

एक तरफ सरकार रिटायर्ड टीचर को पढ़ाने के लिए अधिकतम 70 वर्ष तक की सीमा देती है. मगर, सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष नहीं कर रही है. अगर आप मानते हैं कि वह 70 वर्ष तक पढ़ा सकते हैं तो आयु 62 से 65 वर्ष क्यों नहीं कर देते हैं. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करनी है. शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं. इन पर भर्ती की प्रक्रिया कई-कई वर्ष लेती है. सीनियर शिक्षक बने रहेंगे तो उनके अनुभवों का लाभ मिलेगा.

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