लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने ब्राह्मण कार्ड पॉलिटिक्स की शुरुआत भगवान परशुराम के सहारे की है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने परशुराम मूर्ति का अनावरण करते हुए ब्राह्मणों को जोड़ने की शुरुआत की. वहीं इससे विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से ब्राह्मणों को जोड़कर कितना सियासी फायदा होगा और सरकार बन पाएगी या नहीं. इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र से बात की.
योगेश मिश्र ने कहा कि 2022 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर ब्राह्मण तय करेंगे कि किसकी सरकार बनेगी. अखिलेश यादव की सरकार बनेगी या भारतीय जनता पार्टी की. इससे पहले ब्राह्मणों ने मायावती की सरकार बनाकर साबित किया था कि वो किंग मेकर हैं. ऐसा पहली बार हो रहा है कि ब्राह्मण खुद को किंग मेकर साबित करने में जुटे हुए हैं. सभी पार्टी अपने-अपने स्तर पर ब्राह्मण समाज को लुभाने में जुटी हुई हैं.
राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र कहा कि सपा को इसका फायदा जरूर मिलेगा, क्योंकि ब्राह्मण परशुराम को आदर्श और पूज्य मानते हैं. रविवार को अखिलेश यादव ने बहुत अच्छी बात कही थी, कि मैं पूजा करूंगा. इससे अच्छा सन्देश गया है. अब यह देखना है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी ब्राह्मणों को कितने टिकट देती है.
उत्तर प्रदेश में कम से कम 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाता है और लोकसभा की 20 सीटें ब्राह्मणों के प्रभाव वाली मानी जाती हैं. ये सीट्स ब्राह्मणों के बिना नहीं जीती जा सकती हैं. विधानसभा चुनावों में भी ब्राह्मण मतों की संख्या बहुत है. 50 हजार से अधिक संख्या वाली 89 विधानसभा सीटें हैं. इसीलिए सभी राजनीतिक पार्टियां ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश कर रही हैं.
राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र कहते हैं कि इस चुनाव में अखिलेश यादव जो कर रहे, उससे लग रहा है कि ब्राह्मण समाज उनके करीब आ रहा है. परंतु ब्राह्मण भी अंत तक वेट एंड वॉच करेगा और इसका श्रेय लेगा कि वह जिसके साथ जाएगा, उसी की सरकार बनेगी. पहले के चुनावों में ब्राह्मण और ठाकुर मतदाता एक साथ मतदान करते रहे हैं.
इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल के बाद ठाकुर अलग हो गए हैं. इसका नुकसान भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) को होता हुआ दिख रहा है. सपा को फिलहाल दिख रहा है कि आने वाले समय में वह ब्राह्मण समाज को कितना सम्मान और टिकट देते हैं, उस पर भी हार जीत तय होगी.
जिन जिलों में ब्राह्मण वोट ज्यादा हैं, उनमें कन्नौज, फतेहपुर, बांदा, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, भदोही, जौनपुर, बस्ती, वाराणसी, चंदौली, संतकबीर नगर, अमेठी, रायबरेली, बलरामपुर, श्रावस्ती, कानपुर, हरदोई, प्रयागराज जैसे जिले शामिल हैं.
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को करीब 80 फीसदी ब्राह्मणों ने वोट दिया था. प्रदेश में 58 ब्राह्मण विधायक चुनाव जीते, जिनमें 46 विधायक भाजपा से थे. 2012 के विधानसभा चुनाव में जब सपा ने सरकार बनायी थी, उस समय भाजपा को करीब 38 फीसदी ब्राह्मण समाज ने वोट दिए थे.
2012 में सपा के टिकट पर 21 ब्राह्मण विधायक जीतकर सदन पहुंचे थे. इससे पहले 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को करीब 40 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे. 2007 के चुनाव में बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग करते हुए दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का सफल प्रयोग किया, तो उसकी सरकार बनी थी. उस चुनाव में ब्राह्मण वोटों की अहम भूमिका रही थी और बसपा की सरकार बनी, जिसमें 41 ब्राह्मण विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.
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