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प्राइवेट अस्पताल से मिली मायूसी, तो सरकारी अस्पताल बने सहारा - लखनऊ में प्राइवेट अस्पताल से मरीज परेशान

यूपी की राजधानी लखनऊ में कोरोना काल में भी सरकारी अस्पतालों में बेहतर इलाज मिल पा रहा है. संक्रमण काल में गर्भवती महिलाओं को जहां निजी अस्पताल इलाज देने से हिचक रहे थे तो वहीं सरकारी अस्पतालों ने इस मुश्किल घड़ी में मरीजों का बखूबी साथ निभा रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Aug 27, 2020, 11:17 PM IST

लखनऊ: कोरोना काल में परेशानियां झेल रहे लोगों की सोच में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. साथ ही लोगों की धारणाओं में भी सुधार हो रहा है. इन्हीं धारणाओं में सरकारी अस्पताल भी शामिल हैं. दरअसल, ज्यादातर लोगों की सरकारी अस्पताल के बारे में यह धारणा होती है कि वहां बेहतर तरीके से इलाज नहीं मिल पाता है, लेकिन कोरोना काल ने इन सभी धारणाओं को तोड़ दिया है.

स्पेशल रिपोर्ट.

जिला अस्पताल में समय पर इलाज
संक्रमण काल में गर्भवती महिलाओं को जहां निजी अस्पताल इलाज देने से हिचक रहे थे तो वहीं सरकारी अस्पतालों ने इस मुश्किल की घड़ी में मरीजों का बखूबी साथ निभाया है. तीमारदार पारुल यादव बताती हैं कि जब वह मरीज को लेकर प्राइवेट अस्पताल गई थीं तो वहां उन्हें 3 घंटों तक इंतजार करवाया गया. साथ ही उन्हें 7 दिनों के बाद अस्पताल आने को कहा गया. तीमरदार पारुल यादव ने बताया कि वे किसी तरह अपने मरीज को लेकर झलकारी बाई महिला चिकित्सालय पहुंचीं, जहां मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती किया गया और सही समय पर इलाज किया गया.

इसी तरह मड़ियांव निवासी एक अन्य प्रसूता के साथ आए उनके पति मोहित अवस्थी कहते हैं कि पत्नी की डिलीवरी होनी थी, जिस अस्पताल में डिलीवरी करवाई जानी थी. वहां पर कोरोना की स्थिति की वजह से भर्ती नहीं लिया गया. इसके बाद उन्हें हम सरकारी अस्पताल लेकर आए. यहां पर सिजेरियन द्वारा बेटी हुई है. सबसे खास बात यह रही कि कोरोना के साथ अन्य जांचें भी समय पर की गई और मेरी पत्नी भी बेहतर स्थिति में है.

मरीज-तीमारदार का होता है एंटीजन टेस्ट
वीरांगना झलकारी बाई महिला चिकित्सालय की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. दीपा शर्मा कहती हैं कि कोरोना काल की वजह से ओपीडी संचालित नहीं कर रहे हैं पर साथ ही इमरजेंसी में आ रहे मरीजों का तुरंत इलाज किया जा रहा है. हालांकि मरीज को भर्ती करने से पहले उनका और तीमारदार का एंटीजन टेस्ट किया जाता है. रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद ही मरीज का rt-pcr का सैंपल लिया जाता है और जांच के लिए भेजा जाता है. जांच रिपोर्ट आने तक मरीज को होल्डिंग एरिया में रखा जाता है. यदि उस दौरान कोई इमरजेंसी की स्थिति आती है और मरीज को डिलीवरी करवानी होती है तो पीपीई किट और अन्य सुरक्षा उपकरणों के साथ मरीज का इलाज किया जाता है. इस दौरान यदि कोई गर्भवती महिला या फिर प्रसूता कोरोना वायरस से संक्रमित पाई जाती है तो उसकी जानकारी सीएमओ कार्यालय में दी जाती है. सीएमओ की अनुमति के बाद एंबुलेंस द्वारा जच्चा-बच्चा को कोविड-19 अस्पताल में भेज दिया जाता है.

मरीजों का रखा जाता है पूरा ध्यान
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के क्वीन मैरी प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में भी संक्रमण काल में लगातार गर्भवती महिलाओं का इलाज किया जा रहा है. क्वीन मेरी अस्पताल की प्रोफेसर डॉ. अंजू अग्रवाल कहती हैं कि कोरोना काल में हमने आउटपेशेंट डिपार्टमेंट शुरू नहीं किया है. हालांकि इमरजेंसी में हमारे पास मरीजों की संख्या लगातार आ रही है. डॉ. अंजू बताती हैं कि जब भी हमारे पास कोई मरीज आता है तो हम सबसे पहले उनकी कोरोना वायरस की जांच रिपोर्ट के बारे में पूछते हैं. यदि कोई मरीज पहले से ही कोरोना वायरस से संक्रमित निकल कर आती है तो उसे केजीएमयू के कोरोनावायरस वार्ड में भेज दिया जाता है और वहां पर मौजूद गायनी डिपार्टमेंट की एक टीम उनका इलाज करती है. यदि इमरजेंसी में आई मरीज का कोविड-19 टेस्ट नहीं होता है तो हम सबसे पहले मरीज का कोरोना वायरस टेस्ट करवाते हैं और उसी बीच में नरगिस की डिलीवरी करने की आवश्यकता पड़ती है तो उसे कोविड-19 मानकर पूरे सुरक्षा मानकों के आधार पर इलाज किया जाता है. डिलीवरी के बाद पॉजिटिव आने वाली प्रसूता को केजीएमयू के कोरोनावायरस वार्ड के आइसोलेशन यूनिट में प्रसूता का इलाज किया जाता है.

हालांकि गर्भवती महिलाओं का इलाज करते समय अस्पतालों के कई रेजिडेंट डॉक्टर और हेल्थ केयर वर्कर्स भी संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं. वीरांगना रानी अवंती बाई महिला चिकित्सालय में बाल रोग विभाग के डॉक्टर में कोरोना संक्रमण के बाद उनकी मृत्यु हो गई. इसके अलावा क्वीन मैरी अस्पताल में भी दो रेजिडेंट डॉक्टर्स में इलाज के दौरान कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई, जिसके बाद उनका आइसोलेशन यूनिट में इलाज किया गया. वीरांगना झलकारी बाई महिला चिकित्सालय में भी हेल्थ केयर वर्कर्स में कोरोना वायरस की पुष्टि होने के बाद अस्पताल को 48 घंटों के लिए बंद करना पड़ा था. इसके अलावा लोकबंधु राजनारायण अस्पताल के प्रसूति विभाग की महिला डॉक्टर में भी कोरोना वायरस की पुष्टि हुई थी, जिसके बाद उनको क्वॉरेंटाइन में जाना पड़ा.

डॉक्टर दीपा कहती हैं कि गर्भवती महिलाओं में डिलीवरी का प्रोसेस कभी न रुकने वाली कार्यशैली है. इसलिए महिला अस्पतालों में लगातार सेवाएं जारी रखना बेहद जरूरी होता है. ऐसे में जहां एक ओर कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से पांव पसारता नजर आ रहा है. वहीं दूसरी ओर हेल्थ केयर वर्कर्स और डॉक्टर भी अपनी सेवाएं लगातार दे रहे हैं और गर्भवती महिलाओं के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- लखनऊ: अब किसान बही खाते के बिना नहीं मिलेगी किसानों को खाद

लखनऊ: कोरोना काल में परेशानियां झेल रहे लोगों की सोच में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. साथ ही लोगों की धारणाओं में भी सुधार हो रहा है. इन्हीं धारणाओं में सरकारी अस्पताल भी शामिल हैं. दरअसल, ज्यादातर लोगों की सरकारी अस्पताल के बारे में यह धारणा होती है कि वहां बेहतर तरीके से इलाज नहीं मिल पाता है, लेकिन कोरोना काल ने इन सभी धारणाओं को तोड़ दिया है.

स्पेशल रिपोर्ट.

जिला अस्पताल में समय पर इलाज
संक्रमण काल में गर्भवती महिलाओं को जहां निजी अस्पताल इलाज देने से हिचक रहे थे तो वहीं सरकारी अस्पतालों ने इस मुश्किल की घड़ी में मरीजों का बखूबी साथ निभाया है. तीमारदार पारुल यादव बताती हैं कि जब वह मरीज को लेकर प्राइवेट अस्पताल गई थीं तो वहां उन्हें 3 घंटों तक इंतजार करवाया गया. साथ ही उन्हें 7 दिनों के बाद अस्पताल आने को कहा गया. तीमरदार पारुल यादव ने बताया कि वे किसी तरह अपने मरीज को लेकर झलकारी बाई महिला चिकित्सालय पहुंचीं, जहां मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती किया गया और सही समय पर इलाज किया गया.

इसी तरह मड़ियांव निवासी एक अन्य प्रसूता के साथ आए उनके पति मोहित अवस्थी कहते हैं कि पत्नी की डिलीवरी होनी थी, जिस अस्पताल में डिलीवरी करवाई जानी थी. वहां पर कोरोना की स्थिति की वजह से भर्ती नहीं लिया गया. इसके बाद उन्हें हम सरकारी अस्पताल लेकर आए. यहां पर सिजेरियन द्वारा बेटी हुई है. सबसे खास बात यह रही कि कोरोना के साथ अन्य जांचें भी समय पर की गई और मेरी पत्नी भी बेहतर स्थिति में है.

मरीज-तीमारदार का होता है एंटीजन टेस्ट
वीरांगना झलकारी बाई महिला चिकित्सालय की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. दीपा शर्मा कहती हैं कि कोरोना काल की वजह से ओपीडी संचालित नहीं कर रहे हैं पर साथ ही इमरजेंसी में आ रहे मरीजों का तुरंत इलाज किया जा रहा है. हालांकि मरीज को भर्ती करने से पहले उनका और तीमारदार का एंटीजन टेस्ट किया जाता है. रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद ही मरीज का rt-pcr का सैंपल लिया जाता है और जांच के लिए भेजा जाता है. जांच रिपोर्ट आने तक मरीज को होल्डिंग एरिया में रखा जाता है. यदि उस दौरान कोई इमरजेंसी की स्थिति आती है और मरीज को डिलीवरी करवानी होती है तो पीपीई किट और अन्य सुरक्षा उपकरणों के साथ मरीज का इलाज किया जाता है. इस दौरान यदि कोई गर्भवती महिला या फिर प्रसूता कोरोना वायरस से संक्रमित पाई जाती है तो उसकी जानकारी सीएमओ कार्यालय में दी जाती है. सीएमओ की अनुमति के बाद एंबुलेंस द्वारा जच्चा-बच्चा को कोविड-19 अस्पताल में भेज दिया जाता है.

मरीजों का रखा जाता है पूरा ध्यान
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के क्वीन मैरी प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में भी संक्रमण काल में लगातार गर्भवती महिलाओं का इलाज किया जा रहा है. क्वीन मेरी अस्पताल की प्रोफेसर डॉ. अंजू अग्रवाल कहती हैं कि कोरोना काल में हमने आउटपेशेंट डिपार्टमेंट शुरू नहीं किया है. हालांकि इमरजेंसी में हमारे पास मरीजों की संख्या लगातार आ रही है. डॉ. अंजू बताती हैं कि जब भी हमारे पास कोई मरीज आता है तो हम सबसे पहले उनकी कोरोना वायरस की जांच रिपोर्ट के बारे में पूछते हैं. यदि कोई मरीज पहले से ही कोरोना वायरस से संक्रमित निकल कर आती है तो उसे केजीएमयू के कोरोनावायरस वार्ड में भेज दिया जाता है और वहां पर मौजूद गायनी डिपार्टमेंट की एक टीम उनका इलाज करती है. यदि इमरजेंसी में आई मरीज का कोविड-19 टेस्ट नहीं होता है तो हम सबसे पहले मरीज का कोरोना वायरस टेस्ट करवाते हैं और उसी बीच में नरगिस की डिलीवरी करने की आवश्यकता पड़ती है तो उसे कोविड-19 मानकर पूरे सुरक्षा मानकों के आधार पर इलाज किया जाता है. डिलीवरी के बाद पॉजिटिव आने वाली प्रसूता को केजीएमयू के कोरोनावायरस वार्ड के आइसोलेशन यूनिट में प्रसूता का इलाज किया जाता है.

हालांकि गर्भवती महिलाओं का इलाज करते समय अस्पतालों के कई रेजिडेंट डॉक्टर और हेल्थ केयर वर्कर्स भी संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं. वीरांगना रानी अवंती बाई महिला चिकित्सालय में बाल रोग विभाग के डॉक्टर में कोरोना संक्रमण के बाद उनकी मृत्यु हो गई. इसके अलावा क्वीन मैरी अस्पताल में भी दो रेजिडेंट डॉक्टर्स में इलाज के दौरान कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई, जिसके बाद उनका आइसोलेशन यूनिट में इलाज किया गया. वीरांगना झलकारी बाई महिला चिकित्सालय में भी हेल्थ केयर वर्कर्स में कोरोना वायरस की पुष्टि होने के बाद अस्पताल को 48 घंटों के लिए बंद करना पड़ा था. इसके अलावा लोकबंधु राजनारायण अस्पताल के प्रसूति विभाग की महिला डॉक्टर में भी कोरोना वायरस की पुष्टि हुई थी, जिसके बाद उनको क्वॉरेंटाइन में जाना पड़ा.

डॉक्टर दीपा कहती हैं कि गर्भवती महिलाओं में डिलीवरी का प्रोसेस कभी न रुकने वाली कार्यशैली है. इसलिए महिला अस्पतालों में लगातार सेवाएं जारी रखना बेहद जरूरी होता है. ऐसे में जहां एक ओर कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से पांव पसारता नजर आ रहा है. वहीं दूसरी ओर हेल्थ केयर वर्कर्स और डॉक्टर भी अपनी सेवाएं लगातार दे रहे हैं और गर्भवती महिलाओं के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

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