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मुलायम सिंह यादव: राजनीति में हमेशा कायम रहा नेताजी का जलवा

उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव का 10 अक्टूबर को निधन हो गया. वह काफी लंबे समय से गुड़गांव के मेदांता हॉस्पिटल में एडमिट थे.

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Published : Oct 10, 2022, 10:32 AM IST

Updated : Oct 10, 2022, 1:21 PM IST

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लखनऊ: समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव नहीं रहे. तीन बार यूपी के सीएम रहे मुलायम सिंह पिछले कई साल से राजनीति में एक्टिव नहीं थे, मगर यूपी वालों के जेहन में वह नारा आज भी ताजा ही है. वह नारा था ' जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है'. मुलायम सिंह के इस जलवे के कारण ही यूपी में समाजवाद भी लंबे समय तक दम भरता रहा. मुलायम सिंह यादव का यह जलवा यूं ही नहीं कायम हुआ था.. इसके पीछे संघर्ष की दास्तां काफी लंबी है.

90 का दशक, जब अयोध्या समेत पूरे देश में जय श्रीराम के नारे गूंजते थे, तब एक नारा पॉपुलर हुआ. नारा था, जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है. यह नारा समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव के लिए आज भी लगता है. जानिए यह नारा क्यों गढ़ा गया. 1989 में जनता दल के नेता के तौर पर मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह ने पहली बार गद्दी संभाली थी. अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन भी तब अपने चरम की ओर बढ़ रहा था. 24 जनवरी 1991 तक मुलायम सिंह यादव ने सीएम के तौर पर अपनी पहली पारी पूरी की थी. इसके बाद जनता दल का कुनबा बिखरने लगा. फिर कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी ने यूपी की सत्ता संभाली थी.

6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने धवस्त कर दिया. कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. एक साल तक राष्ट्पति शासन के बाद दिसंबर 1993 में विधानसभा चुनाव हुए. राजनीतिक गलियारों में कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी आगे दिखाई दे रही थी. उम्मीद थी कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण वोटर कल्याण सिंह के साथ रहेंगे. तब मुलायम सिंह यादव ने बड़ा दांव खेला और बीएसपी से हाथ मिला लिया. नतीजा यह रहा कि 4 दिसम्बर 1993 को मुलायम सिंह यादव दूसरी बार मुख्यमंत्री बने यानी मुलायम का जलवा कायम रहा.

जन्म 22 नवंबर 1939 को जन्मे मुलायम सिंह 15 साल के थे, तब ही उन्होंने समाजवाद का दामन थाम लिया. छोटी सी उम्र में ही वह इटावा के सैफई में मशहूर समाजवादी राममनोहर लोहिया के साथ सिंचाई शुल्क के विरोध में हो रहे आंदोलन में शामिल हो गए. इस आंदोलन के दौरान उसे 3 महीने की जेल हो गई. आंदोलन के सामने सरकार को झुकना पड़ा. जेल से वापस आए तो क्षेत्र में नायक की तरह फूल मालाओं के साथ स्वागत हुआ. इसके बाद पहलवानी में अपना भविष्य देखने वाले मुलायम सिंह ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

आपातकाल के दौरान मुलायम सिंह यादव 19 महीने तक जेल में रहे थे. पहली बार 1977 में वह जनता पार्टी की सरकार में राज्य मंत्री बनाये गए. 1980 में वह लोकदल के अध्यक्ष बने. 1985 के बाद मुलायम ने क्रांतिकारी मोर्चा बनाया. 1989 में संयुक्त मोर्चा का गठन किया और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद जनता दल का विभाजन हो गया. मुलायम सिंह यादव अपने करीबी नेता चंद्रशेखर के जनता दल (सोशलिस्ट) का दामन थामा और मुख्यमंत्री बने रहे. 1991 में कांग्रेस का समर्थन वापस लेने से मुलायम सिंह की सरकार गिर गई. 1991 में मध्यावधि चुनाव हुए और लेकिन मुलायम सिंह यादव की पार्टी की सरकार नहीं बनी.

1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया. और 1993 में बसपा के समर्थन से एक बार फिर मुलायम सत्ता में लौटे. गेस्ट हाउस कांड के बाद उनकी सरकार अल्पमत में आ गई. इसके बाद उत्तरप्रदेश में बीजेपी की सरकारें बनती रहीं और मुलायम सिंह मजबूत विपक्ष का रोल अदा करते रहे. 2003 में मुलायम सिंह यादव फिर यूपी की सत्ता में लौटे और सीएम बने. इससे पहले वह 1996 से 1998 तक एच डी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में देश के रक्षामंत्री भी रहे.

पढ़ें- सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने मेदांता में ली अंतिम सांस, अखिलेश ने कहा- नेता जी नहीं रहे

मुलायम सिंह का चरखा दांव: यूपी के तीन बार का मुख्यमंत्री और देश का रक्षामंत्री रहे मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक राजनीतिक सफलता का सार उनकी पहलवानी में छिपा हुआ था. राजनीति के सूरमा के लिए पहलवान और नेता मुलायम का अगले दांव के बारे में अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल था. अखाड़े की मिट्टी में पले-बढ़े मुलायम सिंह ने अपने ‘चरखा’ दांव से कई दिग्गजों को चित्त कर दिया. घटना 1982 की है. वीपी सिंह के सीएम रहते मुलायम पर जानलेवा हमला हुआ था. मुलायम की सुरक्षा के लिए उनके राजनीतिक गुरू चरण सिंह ने उन्हें विपक्ष का नेता बना दिया. 1987 में चरण सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर उनका अजित सिंह से संघर्ष हुआ. इस राजनीतिक लड़ाई में अजित सिंह को मुंह की खानी पड़ी. मुलायम यूपी में संयुक्त विपक्ष के नेता बन चुके थे.

पढ़ें- इन विवादित बयानों ने कराई मुलायम सिंह यादव की भरपूर किरकिरी

उनके राजनीति के चरखा दांव के कारण 1999 में कांग्रेस सरकार बनाने और सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनने से चूक गई थी. 1999 में जयललिता के समर्थन वापस लेने के कारण केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार अल्पमत में आ गई. तब सोनिया गांधी ने 272 सांसदों के समर्थन के साथ कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनाने का दावा पेश किया. मगर 1996 में प्रधानमंत्री पद से चूके मुलायम सिंह ने नई सरकार के समर्थन के लिए उन्होंने सीपीएम के नेता ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने की शर्त रख दी. सोनिया गांधी नेतृत्व छोड़ने के लिए राजी नहीं हुईं और कांग्रेस की सरकार बनते-बनते रह गई.

राममंदिर और गोलीकांड: 5 दिसंबर, 1989 को जब मुलायम सिंह सीएम बने, उत्तरप्रदेश में राम मंदिर आंदोलन शुरू हो गया था. 1990 में विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में कारसेवकों ने अयोध्या कूच किया. 30 अक्टूबर 1990 को उन्होंने बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ रहे कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया. गोलीकांड के बाद मुलायम की सरकार गिर गई. गोलीकांड के बाद देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई मगर मुलायम अपने आदेश के समर्थन में ताउम्र अड़े रहे.

राम मनोहर लोहिया से प्रभावित थे मुलायम: मुलायम सिंह यादव समाजवादी आदर्श डॉ. राम मनोहर लोहिया की विचारधाराओं और सिद्धांतों से प्रभावित रहे. जब उनके पहले गुरु नत्थू सिंह ने उनकी राजनीति में एंट्री कराई तो वह अन्य समाजवादी नेताओं के करीब होते गए. समाजवादी विचारधारा के नेता मधु लिमये, राम सेवक यादव, कर्पूरी ठाकुर, जनेश्वर मिश्रा और राज नारायण जैसे लोगों के संपर्क में आए. भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों जैसे चौधरी चरण सिंह, वीपी सिंह और चंद्रशेखर के भी मुलायम सिंह यादव काफी करीबी रहे.

पढ़ें- उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का निधन, मेदांता अस्पताल में थे भर्ती

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव नहीं रहे. तीन बार यूपी के सीएम रहे मुलायम सिंह पिछले कई साल से राजनीति में एक्टिव नहीं थे, मगर यूपी वालों के जेहन में वह नारा आज भी ताजा ही है. वह नारा था ' जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है'. मुलायम सिंह के इस जलवे के कारण ही यूपी में समाजवाद भी लंबे समय तक दम भरता रहा. मुलायम सिंह यादव का यह जलवा यूं ही नहीं कायम हुआ था.. इसके पीछे संघर्ष की दास्तां काफी लंबी है.

90 का दशक, जब अयोध्या समेत पूरे देश में जय श्रीराम के नारे गूंजते थे, तब एक नारा पॉपुलर हुआ. नारा था, जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है. यह नारा समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव के लिए आज भी लगता है. जानिए यह नारा क्यों गढ़ा गया. 1989 में जनता दल के नेता के तौर पर मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह ने पहली बार गद्दी संभाली थी. अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन भी तब अपने चरम की ओर बढ़ रहा था. 24 जनवरी 1991 तक मुलायम सिंह यादव ने सीएम के तौर पर अपनी पहली पारी पूरी की थी. इसके बाद जनता दल का कुनबा बिखरने लगा. फिर कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी ने यूपी की सत्ता संभाली थी.

6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने धवस्त कर दिया. कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. एक साल तक राष्ट्पति शासन के बाद दिसंबर 1993 में विधानसभा चुनाव हुए. राजनीतिक गलियारों में कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी आगे दिखाई दे रही थी. उम्मीद थी कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण वोटर कल्याण सिंह के साथ रहेंगे. तब मुलायम सिंह यादव ने बड़ा दांव खेला और बीएसपी से हाथ मिला लिया. नतीजा यह रहा कि 4 दिसम्बर 1993 को मुलायम सिंह यादव दूसरी बार मुख्यमंत्री बने यानी मुलायम का जलवा कायम रहा.

जन्म 22 नवंबर 1939 को जन्मे मुलायम सिंह 15 साल के थे, तब ही उन्होंने समाजवाद का दामन थाम लिया. छोटी सी उम्र में ही वह इटावा के सैफई में मशहूर समाजवादी राममनोहर लोहिया के साथ सिंचाई शुल्क के विरोध में हो रहे आंदोलन में शामिल हो गए. इस आंदोलन के दौरान उसे 3 महीने की जेल हो गई. आंदोलन के सामने सरकार को झुकना पड़ा. जेल से वापस आए तो क्षेत्र में नायक की तरह फूल मालाओं के साथ स्वागत हुआ. इसके बाद पहलवानी में अपना भविष्य देखने वाले मुलायम सिंह ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

आपातकाल के दौरान मुलायम सिंह यादव 19 महीने तक जेल में रहे थे. पहली बार 1977 में वह जनता पार्टी की सरकार में राज्य मंत्री बनाये गए. 1980 में वह लोकदल के अध्यक्ष बने. 1985 के बाद मुलायम ने क्रांतिकारी मोर्चा बनाया. 1989 में संयुक्त मोर्चा का गठन किया और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद जनता दल का विभाजन हो गया. मुलायम सिंह यादव अपने करीबी नेता चंद्रशेखर के जनता दल (सोशलिस्ट) का दामन थामा और मुख्यमंत्री बने रहे. 1991 में कांग्रेस का समर्थन वापस लेने से मुलायम सिंह की सरकार गिर गई. 1991 में मध्यावधि चुनाव हुए और लेकिन मुलायम सिंह यादव की पार्टी की सरकार नहीं बनी.

1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया. और 1993 में बसपा के समर्थन से एक बार फिर मुलायम सत्ता में लौटे. गेस्ट हाउस कांड के बाद उनकी सरकार अल्पमत में आ गई. इसके बाद उत्तरप्रदेश में बीजेपी की सरकारें बनती रहीं और मुलायम सिंह मजबूत विपक्ष का रोल अदा करते रहे. 2003 में मुलायम सिंह यादव फिर यूपी की सत्ता में लौटे और सीएम बने. इससे पहले वह 1996 से 1998 तक एच डी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में देश के रक्षामंत्री भी रहे.

पढ़ें- सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने मेदांता में ली अंतिम सांस, अखिलेश ने कहा- नेता जी नहीं रहे

मुलायम सिंह का चरखा दांव: यूपी के तीन बार का मुख्यमंत्री और देश का रक्षामंत्री रहे मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक राजनीतिक सफलता का सार उनकी पहलवानी में छिपा हुआ था. राजनीति के सूरमा के लिए पहलवान और नेता मुलायम का अगले दांव के बारे में अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल था. अखाड़े की मिट्टी में पले-बढ़े मुलायम सिंह ने अपने ‘चरखा’ दांव से कई दिग्गजों को चित्त कर दिया. घटना 1982 की है. वीपी सिंह के सीएम रहते मुलायम पर जानलेवा हमला हुआ था. मुलायम की सुरक्षा के लिए उनके राजनीतिक गुरू चरण सिंह ने उन्हें विपक्ष का नेता बना दिया. 1987 में चरण सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर उनका अजित सिंह से संघर्ष हुआ. इस राजनीतिक लड़ाई में अजित सिंह को मुंह की खानी पड़ी. मुलायम यूपी में संयुक्त विपक्ष के नेता बन चुके थे.

पढ़ें- इन विवादित बयानों ने कराई मुलायम सिंह यादव की भरपूर किरकिरी

उनके राजनीति के चरखा दांव के कारण 1999 में कांग्रेस सरकार बनाने और सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनने से चूक गई थी. 1999 में जयललिता के समर्थन वापस लेने के कारण केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार अल्पमत में आ गई. तब सोनिया गांधी ने 272 सांसदों के समर्थन के साथ कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनाने का दावा पेश किया. मगर 1996 में प्रधानमंत्री पद से चूके मुलायम सिंह ने नई सरकार के समर्थन के लिए उन्होंने सीपीएम के नेता ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने की शर्त रख दी. सोनिया गांधी नेतृत्व छोड़ने के लिए राजी नहीं हुईं और कांग्रेस की सरकार बनते-बनते रह गई.

राममंदिर और गोलीकांड: 5 दिसंबर, 1989 को जब मुलायम सिंह सीएम बने, उत्तरप्रदेश में राम मंदिर आंदोलन शुरू हो गया था. 1990 में विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में कारसेवकों ने अयोध्या कूच किया. 30 अक्टूबर 1990 को उन्होंने बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ रहे कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया. गोलीकांड के बाद मुलायम की सरकार गिर गई. गोलीकांड के बाद देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई मगर मुलायम अपने आदेश के समर्थन में ताउम्र अड़े रहे.

राम मनोहर लोहिया से प्रभावित थे मुलायम: मुलायम सिंह यादव समाजवादी आदर्श डॉ. राम मनोहर लोहिया की विचारधाराओं और सिद्धांतों से प्रभावित रहे. जब उनके पहले गुरु नत्थू सिंह ने उनकी राजनीति में एंट्री कराई तो वह अन्य समाजवादी नेताओं के करीब होते गए. समाजवादी विचारधारा के नेता मधु लिमये, राम सेवक यादव, कर्पूरी ठाकुर, जनेश्वर मिश्रा और राज नारायण जैसे लोगों के संपर्क में आए. भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों जैसे चौधरी चरण सिंह, वीपी सिंह और चंद्रशेखर के भी मुलायम सिंह यादव काफी करीबी रहे.

पढ़ें- उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का निधन, मेदांता अस्पताल में थे भर्ती

Last Updated : Oct 10, 2022, 1:21 PM IST
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