लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बड़े GPF घोटाले को अंजाम दिया गया है. सरकारी सहायता प्राप्त महाविद्यालयों से सेवानिवृत्त शिक्षक और कर्मचारी के जीवन भर की गाढ़ी कमाई गायब हो गई है. इनके जीपीएफ के करोड़ों रुपये रुपयों का कोई अता-पता नहीं है. हालत यह है कि पांच-पांच साल के सेवानिवृत्त शिक्षक और कर्मचारी भटक रहे हैं. उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इन्हें चक्कर कटवा रहे हैं. वहीं शिक्षक संगठन का आरोप है कि अधिकारियों ने इसमें बड़े घोटाले को अंजाम दिया है. जीपीएफ अकाउंट खाली कर दिए गए हैं. इस संबंध में राजभवन तक से शिकायत करते हुए हस्तक्षेप की मांग की गई है.
19 जिलों में हुआ है खेल : उत्तर प्रदेश में सरकारी सहायता प्राप्त महाविद्यालयों की संख्या 331 है. इनमें, करीब 12 हजार पद शिक्षकों के हैं. 8000 से 8500 शिक्षक कार्यरत हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय सहयुक्त महाविद्यालय शिक्षक संघ (लुआक्टा) की महामंत्री डॉ. अंशु केडिया ने बताया कि प्रदेश के 19 जिलों में शिक्षक और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को उनके द्वारा अर्जित जीपीएफ का भुगतान नहीं किया जा रहा है. यह समस्या लखीमपुर खीरी, हरदोई, अम्बेडकर नगर, बहराइच, बलिया, गाजीपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती, महाराजगंज समेत अन्य जिलों में सामने आई है.
ऐसे हुआ खेल : लखनऊ विश्वविद्यालय सहयुक्त महाविद्यालय शिक्षक संघ (LUACTA) के अध्यक्ष डॉ. मनोज पांडेय ने बताया कि पूर्व में सरकारी सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन जिला विद्यालय निरीक्षक के माध्यम से जारी किया जाता था. जीपीएफ भी यहां से कटता था. वर्ष 2011 में इस प्रक्रिया में बदलाव किया गया. वेतन का भुगतान और जीपीएफ की कटौती क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी कार्यालय के माध्यम से की जाने लगी. उनकी मानें तो इस दौरान कुछ जिलों में जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय से क्षेत्रीय कार्यालयों को जीपीएफ जमा के बारे में कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई. इसके अलावा दोनों ही कार्यालयों के स्तर पर एक बड़ी चूक हुई. इन्होंने जमा जीपीएफ पर शासन से वर्ष 2002 से ब्याज की मांग ही नहीं की. जिसका नतीजा है कि शुरुआत में सेवानिवृत्त कर्मचारियों और शिक्षकों को भुगतान होते रहे. बाद में कोषागार ही खाली हो गया. LUACTA ने राज्यपाल को पत्र लिखकर इस पूरे मामले की जांच कराने और शासन के स्तर पर ब्याज का भुगतान कराने की मांग उठाई गई है.
यह है भुगतभोगियों का दर्द : डॉ. आलोक नाथ पांडेय सिद्धार्थ नगर के रतन सेन डिग्री कॉलेज बांसी से 30 जून 2021 को सेवानिवृत्त हुये. उन्होंने 40 साल तक एसोसिएट प्रोफेसर मनोविज्ञान विभाग के पद पर स्थाई सेवा दी. निदेशक उच्च शिक्षा ने उनके जीपीएफ का भुगतान करने के आदेश दे दिए हैं. परंतु क्षेत्रीय कार्यालय की ओर से जीपीएफ में पैसा न होने की बात कहकर भुगतान नहीं किया जा रहा है. डॉ. आलोक नाथ की तरफ से मुख्यमंत्री को पत्र लिखा गया है. उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की गई है.
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इसी तरह की शिकायत बस्ती के महिला महाविद्यालय से सेवानिवृत्त डॉ. स्नेहलता गुप्ता ने भी दर्ज कराई है. वह 2016 में सेवानिवृत्त हुई थीं. अपने जीपीएफ के पैसे के लिए कई बार शिकायत दर्ज करा चुकी हैं. यहां तक की मुख्यमंत्री कार्यालय में भी शिकायत की है.
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