लखनऊ: एनेस्थीसिया चिकित्सकों का काम सिर्फ मरीज को बेहोशी देने तक नहीं रह गया है. वो अब आईसीयू में गंभीर मरीजों का इलाज भी कर रहे हैं. इन्होंने कोरोना काल में बड़ी तादाद में मरीजों की जिंदगी बचाने में कामयाबी हासिल की. नई तकनीक के जरिये ऑपरेशन के दौरान होने वाली मरीजों की मौतों की संख्या भी पहले की तुलना में काफी कम हो गयी है.
लोहिया संस्थान के एनेस्थीसिया विभाग के स्थापना दिवस समारोह में सेंट्रल जोन-पोस्ट ग्रेजुएट ऐसम्बली 2022 का आयोजन किया गया. इस दौरान विभागाध्यक्ष डॉ. दीपक मालवीय ने कहा कि कोरोना काल में एनेस्थीसिया विशेषज्ञों की भूमिका बढ़ गयी. कोरोना की दूसरी लहर में गंभीर अवस्था में काफी मरीज आईसीयू और वेंटिलेटर पर भर्ती किए गए.
बेहतर इलाज से तमाम मरीजों की जिंदगी बचाने में मदद मिली. पिछले दस साल में एनेस्थीसिया की तकनीक में बड़ा बदलाव आया है. नतीजतन ऑपरेशन के दौरान और बाद में होने वाली मौतों की संख्या काफी कम हो गयी है. पहले मौत का आंकड़ा 10 फीसदी था, जो अब घटकर एक से दो फीसदी ही बचा है. इसे शून्य करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं.
नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंस की उपाध्यक्ष डॉ. मीनू बाजपेई ने कहा कि देश में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है. देश में करीब 50 हजार एनेस्थीसिया विशेषज्ञ हैं. वहीं लखनऊ में एनेस्थीसिया विशेषज्ञों की संख्या 450 है. मरीजों की संख्या की तुलना में एनेस्थीसिया विशेषज्ञों की खासी कमी है. विशेषज्ञों की कमी को दूर करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं.
डॉ. दीपक मालवीय ने कहा कि सिर दर्द की परेशानी लोगों में बढ़ रही है. 10 फीसदी महिलाएं सिरदर्द को नजरंदाज करती हैं. नतीजतन दर्द पूरी जिंदगी रहता है. अब सिर दर्द का इलाज रीढ़ की हड्डी में दवा से किया जा सकता है. खास तरह की सिरिंज से दवा दी जाती है. यह सिरिंज पेंसिल प्वाइंट की तरह होती है. इसे स्पाइनल नीडल कहते हैं. इस तकनीक के बावजूद यदि महिला के सिर में दर्द रहता है, तो एपिड्यूरल ब्लड पैच (Epidural Blood Patch) तकनीक से उसे ठीक किया जाता है.
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