लखनऊ : हाईकोर्ट (High Court) की लखनऊ बेंच ने राजधानी में वर्ष 2009 में हुए, तीन बच्चों समेत छह की कुल्हाड़ी से काटकर नृशंस हत्या के मामले में अभियुक्त की मौत की सजा को बरकरार रखा है. न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त को आजीवन कारावास (life sentence) की सजा देना न तो न्याय होगा और न ही यथोचित दंड. न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि अभियुक्त समाज के लिए खतरा है व उसके सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है.
यह निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने मृत्यु की सजा की पुष्टि समेत अभियुक्त सरवन व अभियुक्ता सुमन की ओर से दाखिल तीन अलग-अलग अपीलों पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया. न्यायालय ने अभियुक्ता सुमन को मिली चार साल की सजा को भी बरकरार रखा. उस पर अभियुक्त को बचाने के लिए साक्ष्य छिपाने का आरोप है.
घटना मोहनलालगंज थाने के गौरा गांव (Gaura village) की है. अभियुक्त सरवन के बारे में गांव में चर्चा थी कि उसके अपनी भाभी सुमन से अवैध सम्बंध हैं. इस बात को लेकर उसका अक्सर अपनी पत्नी संतोषी से झगड़ा होता था. झगड़े के दौरान संतोषी को बचाने उनकी पड़ोसी माधुरी आ जाती थी. 25 अप्रैल 2009 को सुबह साढ़े छह बजे, सरवन के घर से चीखने-चिल्लाने की आवाज आने पर, माधुरी उसके घर भाग कर गई. इतने में सरवन घर से बाहर आया और बोला कि उसने संतोषी और अपनी तीनों बच्चों को मार दिया है. यह कहकर उसने अपने हाथ में ली हुई कुल्हाड़ी से माधुरी पर भी कई वार कर दिए. जिससे माधुरी भी वहीं गिर गई व उसकी भी मृत्यु हो गई. यह देखकर माधुरी का बेटा राजेन्द्र व बेटी संगीता दौड़े तो सरवन ने उन पर भी कुल्हाड़ी से वार किया और वे भी घायल हो गए. बाद में राजेन्द्र की भी मौत हो गई. घटना की एफआईआर माधुरी के पति कोलई ने लिखाई. मारे गए बच्चों में डेढ़ साल का रवि, चार साल की सुमिरन और छह साल का रामरूप थे.