लखनऊ : आतंकी हो या फिर दंगाई, जालसाज हो या पीएफआई के सदस्य, हर बार एक तथ्य ऐसा सामने आता है जो सभी में एक समान होता है. वह है VOIP यानी की वॉइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल. यह एक ऐसी कॉल होती है जो इंटरनेट के माध्यम से की जाती है. ऐसी कॉल को ट्रेस करने में जांच व सुरक्षा एजेंसियों को समय लग जाता है. इसका इस्तेमाल करके अपराधी अपने काम को अंजाम देकर एजेंसियों की पहुंच से दूर हो जाते हैं. यह VOIP कॉल (Using VoIP Calls) होती क्या है, कैसे काम करती है और आखिर आतंकी व जालसाज इसी कॉल का संचार के लिये प्रयोग क्यों करते हैं. इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिये ईटीवी भारत ने यूपी पुलिस के साइबर सलाहकार राहल मिश्रा से बातचीत की है.
यूपी पुलिस के साइबर सलाहकार राहल मिश्रा बताते हैं कि इसके माध्यम से इंटरनेट कॉल किसी भी व्यक्ति को की जा सकती है. अब भी VOIP कॉल के दो तरीके होते हैं. एक होती है नॉर्मल इंटरनेट कॉल, जिसमें किसी एक विशेष कंट्री के कोड के साथ पांच डिजिट का नंबर दिखता है. दूसरा तरीका हो सकता है कॉल स्पूफिंग का. कॉल स्पूफिंग में अगला व्यक्ति कोई भी अपना रेंडम नंबर शो कर सकता है. वह कॉल भी इंटरनेट कॉल ही होती है, जिसमें कोई भी व्यक्ति किसी भी अधिकारी के नंबर से काॅल कर सकता है. असल में यह काॅल VOIP के द्वारा की जाती है, लेकिन नंबर डिस्प्ले वही होता है जो ठगी करने वाला चाहता है.
सवाल : क्या VOIP कॉल सामान्य मोबाइल के द्वारा कर सकते हैं या फिर इसके लिए खास सेटअप लगता है?
राहल मिश्रा : इसके लिए बहुत तरीकों के पेड सेटअप कई कंपनी प्लेटफाॅर्म एप्लीकेशंस व वेबसाइट के जरिये प्रोवाइड करती हैं. जिससे VOIP कॉल की जा सकती है. दरअसल, ऐसी कॉल एक वॉइस मेल मैसेंजर के थ्रू की जाती है. इसके लिये वर्चुअल सेटअप क्रिएट किया जाता है. जिसके बाद कम्पनी एप्लिकेशन व वेबसाइट के जरिये कॉल करने की सुविधा देती है.
सवाल : VOIP कॉल का इस्तेमाल आम लोगों से ज्यादा आतंकी संगठन के लोग या फिर जालसाज करते हैं, आखिर क्यों ऐसा होता है?
राहुल मिश्रा : इसका मुख्य कारण यह है कि नॉर्मल कॉल को ट्रेस करना आसान होता है, लेकिन VOIP कॉल को ट्रेस करने के लिए जांच एजेंसी को तत्काल कुछ जानकारी की जरूरत होती है. जैसे कि VOIP कॉल किस सर्वर से की गई है. वह किस देश का है और जब तक जानकारी मिलती है तब तक देर हो चुकी होती है. यह बात जालसाज व आतंकी संगठन के लोग जानते हैं इसलिए कोशिश करते हैं कि वह VOIP कॉल के थ्रू ही कम्युनिकेशन करें. जिससे उनके कम्युनिकेशन को ट्रैक करना सिक्योरिटी एजेंसी के लिये मुश्किल हो.
सवाल : VOIP कॉल क्या एक व्हाट्सएप कॉल जैसी ही होती है?
राहुल मिश्रा : व्हाट्सएप कॉल व VOIP कॉल दोनों अलग-अलग हैं. व्हाट्सएप कॉल एंड टू एंड एन्क्रिप्टेड होती है, लेकिन VOIP कॉल एंड टू एंड इंक्रिप्टेड नहीं होती है. इस तरह की कॉल को सुना व ट्रेस किया जा सकता है.
सवाल : यदि VOIP कॉल को ट्रैक किया जा सकता है तो आखिरकार यह आतंकी संगठन उसका क्यों इस्तेमाल करते है?
राहुल मिश्रा : कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार का कम्युनिकेशन कर रहा है तो उसे आज के समय में सिक्योरिटी एजेंसीज ट्रेस कर सकती हैं. बस यह है कि VOIP कॉल करके सुरक्षा एजेंसियों को चकमा दिया जा सकता है.
सवाल : क्या भारत में VOIP कॉल लीगल है?
राहुल मिश्रा : भारत में किसी भी प्रकार की कोई भी VOIP कॉल करने में रोक नहीं है लोग इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
सवाल : VOIP कॉल को सुरक्षा एजेंसी कैसे ट्रेस करती हैं?
राहुल मिश्रा : सुरक्षा एजेंसी ऐसी कॉल को कैसे ट्रेस करती हैं यह हम पब्लिक डोमेन में नहीं रह सकते हैं, क्योंकि यह गोपनीय काम होता है. लेकिन फिर भी मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि नॉर्मल कॉल को ट्रेस करना जितना आसान होता है उतना ही VOIP कॉल को ट्रेस करना कठिन होता है. इसी का फायदा उठाकर जालसाज और आतंकी इसका इस्तेमाल करते हैं.
सवाल : क्या VOIP कॉल सिक्योरिटी एजेंसीज के लिए एक चुनौती है?
राहुल मिश्रा : बिल्कुल सिक्योरिटी एजेंसीज के लिए यह चैलेंज है. क्योंकि कई बार सूचनाएं समय पर नहीं मिल पाती हैं. कई बार समस्या यह होती है कि केस समय पर क्लोज करना होता है और इंफॉर्मेशन देर से मिलती है. अपराधी कई देश के सर्वर का इस्तेमाल करते हैं, जिनसे हमारे संबंध अच्छे नहीं हैं. अगर उनके सर्वर का इस्तेमाल किया जाता है तो वह हमें इंफॉर्मेशन समय पर नहीं देते हैं, जिससे सिक्योरिटी एजेंसीज को जांच करने में समस्या होती है.
सवाल : नंबर स्पूफिंग क्या होती है?
राहुल मिश्रा : यह कोई नई तकनीकि नहीं है. इसका इस्तेमाल जालसाज किसी भी नामी लोगों को धोखा देने के लिए करते हैं. कॉल स्पूफिंग में काॅलर आईडी की जानकारी में हेरफेर करने की प्रक्रिया को कॉल नंबर स्पूफिंग कहते हैं. स्पूफिंग के मामले में शिकार को यह भरोसा दिला दिया जाता है कि काॅल किसी नामी व्यक्ति की ओर से किया गया है.
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सवाल : कॉल स्कूफिंग कॉल कैसे काम करता है?
राहुल मिश्रा : VOIP के बेस्ड सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके कॉल स्पूफिंग की जाती है. जालसाज इसकी मदद से कॉलर आईडी को मेनूप्लेट करके आपको किसी अन्य लोकेशन का नंबर दिखा सकते हैं, जबकि वास्तव में काॅल की लोकेशन कहीं की भी हो सकती है. VOIP बेस्ड सॉफ्टवेयर एक ऐसी तकनीक है, जो आपको मोबाइल नेटवर्क की बजाय इंटरनेट कनेक्शन का उपयोग कर वॉइस कॉल करने की अनुमति देती है. इसका उपयोग हैकर जालसाज और धोखेबाज करते हैं.
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