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शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय में शिक्षक भर्ती मामला, जानिये हाईकोर्ट ने क्या कहा

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 2020-21 में शिक्षकों की भर्ती के लिए 107 पदों पर दिये गए विज्ञापन मे दिव्यांगजनों को नियमानुसार आरक्षण का लाभ न देने पर डॉ. शकुन्तला मिश्रा विश्वविद्यालय को नसीहत दी.

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Published : Sep 9, 2022, 9:33 PM IST

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 2020-21 में शिक्षकों की भर्ती के लिए 107 पदों पर दिये गए विज्ञापन मे दिव्यांगजनों को नियमानुसार आरक्षण का लाभ न देने पर डॉ. शकुन्तला मिश्रा विश्वविद्यालय को नसीहत देते हुए कहा है कि सिर्फ वैधानिक प्रावधानों के लिए ही नहीं बल्कि इसलिए भी कि यह विश्वविद्यालय दिव्यांगजनों के हित के लिए स्थापित किया गया है, उसे उनके मुद्दों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए.

न्यायालय के रुख को देखते हुए, विश्वविद्यालय की ओर से पीठ को आश्वासन दिया गया कि जब तक दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 व संबधित शासनादेशों के तहत प्रदत्त आरक्षण की सीमा को ध्यान में रखकर विज्ञापन में दिये गए आरक्षण पर पुर्नविचार नहीं कर लिया जाता, तब तक उक्त विज्ञापन के अनुसरण में कोई कार्यवाही आगे नहीं बढाई जाएगी. इसके साथ ही न्यायालय ने विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में की गई प्रोफेसरों की भर्ती को अपने अग्रिम आदेशों के अधीन कर लिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की खंडपीठ ने ऑल इंडिया कॉन्फिडरेशन ऑफ ब्लाइंड की सचिव गौरी सेन व अन्य की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर पारित किया गया. याचियों का आरोप है कि विश्वविद्यालय को खासतौर से दिव्यांगजनों के लिए बनाया गया है, लेकिन वहां नियुक्तियों में दिया जाने वाला आरक्षण भी दिव्यांगजनों को नहीं प्रदान किया जा रहा है. याचियों का यह भी कहना है कि विश्वविद्यालय ने 2020-21 में विभिन्न विषयों के लिए 16 प्रोफेसर, 27 एसोसिएट प्रोफेसर व 64 असिस्ट्रेंट प्रोफेसर्स की नियुक्ति के लिए विज्ञापन दिया था, लेकिन इन पदों मे नियमानुसार दिव्यांगों के लिए आरक्षण नहीं दिया गया था.

यह भी पढ़ें : बच्चा चोरी को लेकर हो रही हिंसा पर पुलिस सतर्क, अफवाह फैलाने वालों पर लगेगा NSA

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 2020-21 में शिक्षकों की भर्ती के लिए 107 पदों पर दिये गए विज्ञापन मे दिव्यांगजनों को नियमानुसार आरक्षण का लाभ न देने पर डॉ. शकुन्तला मिश्रा विश्वविद्यालय को नसीहत देते हुए कहा है कि सिर्फ वैधानिक प्रावधानों के लिए ही नहीं बल्कि इसलिए भी कि यह विश्वविद्यालय दिव्यांगजनों के हित के लिए स्थापित किया गया है, उसे उनके मुद्दों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए.

न्यायालय के रुख को देखते हुए, विश्वविद्यालय की ओर से पीठ को आश्वासन दिया गया कि जब तक दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 व संबधित शासनादेशों के तहत प्रदत्त आरक्षण की सीमा को ध्यान में रखकर विज्ञापन में दिये गए आरक्षण पर पुर्नविचार नहीं कर लिया जाता, तब तक उक्त विज्ञापन के अनुसरण में कोई कार्यवाही आगे नहीं बढाई जाएगी. इसके साथ ही न्यायालय ने विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में की गई प्रोफेसरों की भर्ती को अपने अग्रिम आदेशों के अधीन कर लिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की खंडपीठ ने ऑल इंडिया कॉन्फिडरेशन ऑफ ब्लाइंड की सचिव गौरी सेन व अन्य की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर पारित किया गया. याचियों का आरोप है कि विश्वविद्यालय को खासतौर से दिव्यांगजनों के लिए बनाया गया है, लेकिन वहां नियुक्तियों में दिया जाने वाला आरक्षण भी दिव्यांगजनों को नहीं प्रदान किया जा रहा है. याचियों का यह भी कहना है कि विश्वविद्यालय ने 2020-21 में विभिन्न विषयों के लिए 16 प्रोफेसर, 27 एसोसिएट प्रोफेसर व 64 असिस्ट्रेंट प्रोफेसर्स की नियुक्ति के लिए विज्ञापन दिया था, लेकिन इन पदों मे नियमानुसार दिव्यांगों के लिए आरक्षण नहीं दिया गया था.

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