लखनऊ : देश में कोरोना के मामले एकाएक फिर बढ़ने लगे हैं. यूपी में भी वायरस का प्रसार तेज हो गया है. चिकित्सा विशेषज्ञ आमजन को कोविड-19 प्रोटोकॉल के पालन की सलाह दे रहे हैं. वहीं केजीएमयू में हुई एक स्टडी में वैक्सीनेशन के रोल को अहम बताया गया है. जिन मरीजों ने वैक्सीन लगवाई थी वह कोरोना से जल्दी ठीक हो गये. वहीं वैक्सीन से दूरी बनाने वाले मरीज आईसीयू में पहुंच गए हैं. जिससे उनकी जान पर भी आफत आ गई.
नहीं हुई किसी की मौत : दूसरी लहर में केजीएमयू में भर्ती मरीजों पर स्टडी की गई. संस्थान के डॉ. अजय कुमार के मुताबिक, वार्ड में भर्ती 124 मरीजों का चयन किया गया. इनमें कोरोना की पुष्टि हुई थी. सामान्य वार्ड में भर्ती 22 मरीजों को कोविड वैक्सीन लगी थी. इसमें भी 2.11 फीसद को वैक्सीन की दोनों डोज़ लगी थी. वहीं 11.2 फीसद को एक डोज लगी थी. इसमें किसी भी मरीज की मौत नहीं हुई. साथ ही रिकवरी भी फास्ट हुई. उस समय 102 लोगों को वैक्सीन की एक भी डोज नहीं लगी थी. इन मरीजों को संक्रमण के बाद आईसीयू में भर्ती करना पड़ा.
शोध में शामिल डॉक्टर : शोध में केजीएमयू के पल्मोनरी, गैस्ट्रोलॉजी, न्यूरोलॉजी टीम के डॉक्टर शामिल रहे. टीम में डॉ. ज्योति बाजपेई, डॉ. सूर्यकांत, डॉ. अजय वर्मा, डॉ. अजय पटवा, डॉ. वीरेंद्र आतम, डॉ. श्याम चौधरी, डॉ. अनुज पांडेय थे. यह रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ.
ठीक होने के बाद बच्चे हो रहे बीमार : कोरोना की दूसरी लहर का दुष्प्रभाव अभी भी उभर कर आ रहा है. खासकर इस घातक वायरस ने बच्चों को भी नहीं बख्शा. अब इन बच्चों को तेज बुखार आ रहा है. उन्हें पीलिया और ब्रेन की समस्या भी हो रही है. ऐसे में डॉक्टरों ने डेंगू, मलेरिया और स्क्रबटाईफस की जांच की तो यह बीमारी नहीं निकली. इसके बाद लोहिया संस्थान के चिकित्सकों ने कोविड-19 एंटीबॉडी टेस्ट किया, इसमें कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी पाई गई. इसका मतलब ये है कि बच्चे पहले कोरोना की चपेट में आ चुके थे, जबकि वायरस की जद में आने की बात अभिभावकों तक को नहीं पता. यह बच्चे एसिंप्टोमेटिक थे. जिनमें कोविड के कोई लक्षण नहीं थे. वहीं शरीर में एंटीबॉडी मिलने के बाद डॉक्टरों ने बच्चों का इन्फ्लेमेटरी मार्कर, डायमर टेस्ट कराया. इसमें बच्चों में लिवर, ह्रदय, फेफड़ा, मस्तिष्क से संबंधित बीमारियों की पुष्टि हुई. इनका पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) में इलाज किया गया.
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लोहिया संस्थान की बाल रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ. दीप्ति के मुताबिक संस्थान में ऐसे 30 बच्चे गंभीर हालत में आए थे. जिनका पीआईसीयू में इलाज किया गया. इसमें एक बच्चे का निधन हो गया. इन बच्चों को केस स्टडी मानकर अध्ययन किया गया. इसे मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन चाइल्ड (एमआईसी) कहते हैं।
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