लखनऊ : 2022 के विधानसभा चुनाव में पराजय का सबसे बुरा दौर देखने के बाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व का संकट बरकरार है. साढ़े तीन महीने होने को है, लेकिन कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व उत्तर प्रदेश के लिए अपना अध्यक्ष नहीं ढूंढ पाया है. पार्टी को पराजय के कारणों पर चिंतन कर पार्टी के लिए नया ढांचा तैयार कर लेना चाहिए, ताकि वह आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी डामाडोल स्थिति को सुधार सके.
विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपना ट्रंप कार्ड यानी प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश चुनाव का प्रभारी बनाकर मैदान में उतारा था. प्रियंका गांधी ने अपनी सामर्थ्य भर प्रयास भी किया, लेकिन संगठन न होने और बूथ स्तर पर पार्टी का नेतृत्व शून्य होने के कारण उसे अपने सबसे बुरे दौर से गुजरना करना पड़ा. पार्टी की इस स्थिति के लिए शीर्ष नेतृत्व खुद जिम्मेदार है. प्रदेश संगठन के सभी निर्णय दिल्ली से लिए जाते हैं. ऐसे में प्रदेश नेतृत्व की अहमियत नहीं रहती. प्रदेश के नेता सोनिया, राहुल और प्रियंका की चाटुकारिता में ही वक्त जाया करते हैं. निचले स्तर पर कार्यकर्ताओं में निराशा घर कर जाती है. प्रियंका गांधी ने भी पार्टी के कार्यकर्ताओं को कभी पर्याप्त समय नहीं दिया. कोविड-19 बहाना बना वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यकर्ताओं के साथ कुछ बैठकें हुईं, लेकिन जब भी वह लखनऊ आईं, तो कार्यकर्ताओं को पर्याप्त समय नहीं दिया, जिससे वह निराश रहे.
प्रदेश स्तर के नेताओं में भी पार्टी को आगे बढ़ाने की जगह आपसी खींचतान ज्यादा दिखती है. सबसे बड़ी बात प्रियंका का काम देखने वाले एक गैर राजनीतिक व्यक्ति का कद प्रदेश के तमाम नेताओं से बड़ा दिखता है. यह बात नेताओं को निराश करती है. कांग्रेस के निवर्तमान अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू अपनी विधानसभा सीट भी नहीं बचा पाए और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. हालांकि 2012 और 2017 में कुशीनगर जिले की तमकुही राज विधानसभा सीट से सपा और कांग्रेस की आंधी में भी वह चुनाव जीत कर आए थे. लल्लू को संघर्षशील नेता के तौर पर जाना जाता है. उन्होंने 2017 से 2022 के बीच काफी संघर्ष भी किया. बावजूद इसके हालिया विधानसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी में उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था. माना जाता है कि लल्लू नाराज हैं. विधान परिषद में पार्टी के एक मात्र सदस्य दीपक सिंह की भी सदस्यता समाप्त हो चुकी है और अब उच्च सदन में कांग्रेस का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं है. सिर्फ दो विधानसभा सीटों तक सिमट चुकी कांग्रेस को अध्यक्ष पद लायक कोई चेहरा ढूंढे नहीं मिल रहा है.
सूत्र बताते हैं कि सोनिया गांधी कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद तिवारी को उत्तर प्रदेश में पार्टी का अध्यक्ष बनाना चाहती थीं, लेकिन वह उम्र का हवाला देकर इस जिम्मेदारी को लेने से बचते रहे. अंततः पार्टी ने उन्हें ईमानदारी का इनाम दिया और उन्हें राज्यसभा भेज दिया है. पीएल पुनिया, आराधना मिश्रा 'मोना', सहित कुछ नामों पर पार्टी में सहमत बनाने की कोशिशें हो रही हैं, लेकिन अभी तक इस पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई है. ऐसे में सभी बस इंतजार कर रहे हैं कि शीर्ष नेतृत्व कब और क्या निर्णय लेता है.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि 'सत्ता पक्ष ने तो अपने 100 दिन का रिपोर्ट कार्ड भी पेश कर दिया है, वहीं कांग्रेस में जो निराशा का माहौल बना था वह और गहरा गया है. विधानसभा चुनाव में पार्टी को मात्र दो सीटें मिली थीं और उसके प्रदेश अध्यक्ष भी पराजित हो गए थे. प्रियंका गांधी ने इस बार पूरी जिम्मेदारी से दायित्व संभाला था. यह स्थिति एक बदलाव का संकेत दे रही थी.
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पार्टी के भीतर कई बार मांग भी उठी थी कि प्रियंका लाओ कांग्रेस बचाओ. इसीलिए प्रियंका को ट्रंप कार्ड माना जा रहा था. इसके बावजूद पार्टी कोई करिश्मा नहीं कर सकी और उसे अपना सबसे बुरा दौर देखना पड़ा. इस हार के बाद कांग्रेसी अनिर्णय की स्थिति में हैं. उसे समझ में नहीं आ रहा है कि किस तरह आगे बढ़ें. अब देखना होगा कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इस संकट से उबरने के लिए क्या करता है.'
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