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कांग्रेस ने नहीं सुधारी यह पांच गलतियां तो यूपी में पैर जमाना नामुमकिन

विधानसभा चुनाव-2022 में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा. जिसके बाद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की राह आसान नहीं है. माना यह भी जा रहा है कि अगर कांग्रेस ने अपनी गलतियों को दोहराया तो फिर खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

कांग्रेस कार्यालय
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Published : Jun 2, 2022, 9:17 PM IST

लखनऊ: विधानसभा नतीजों के बाद कांग्रेस जनता के सामने अपनी छवि को बेहतर बनाने की जुगाड़ तलाश रही है. कांग्रेस भले ही कितने ही दावे क्यों न करे, लेकिन उत्तर प्रदेश में उसके लिए राह आसान नहीं है. विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट बैंक गिरकर 2.5% के आस-पास पहुंच गया. विधान परिषद में पार्टी के एकमात्र विधायक का कार्यकाल भी पूरा होने वाला है. विशेषज्ञों का कहना है कि पार्टी ने अपनी गलतियों से अभी भी सबक नहीं लिया तो आने वाले समय में जनता को मुंह दिखाना भी मुश्किल होगा.

ETV Bharat कि खास रिपोर्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं उन पांच गलतियों के बारे में जिनको दोहराना पार्टी के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है.

जानकारों ने दी राय

नेता और कार्यकर्ता के बीच दूरी: पिछले चुनाव में पार्टी के अंदर कार्यकर्ता और नेता के बीच में दूरी खुलकर सामने आई. पार्टी के कई पुराने नेताओं ने प्रियंका गांधी से न मिल पाने को लेकर नाराजगी भी दर्ज कराई. यहां तक की 2 दिन के नव संकल्प शिविर में भाग लेने के लिए लखनऊ आई प्रियंका गांधी ने कार्यकर्ताओं से मुलाकात तक नहीं की. वह पार्टी कार्यालय में अपने संबोधन के बाद सीधे कौल हाउस निकल गईं. लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय शुक्ला कहते हैं कि पार्टी कार्यकर्ता को कोई वेतन नहीं दिया जाता. वह विचारधारा और नेता से जुड़ा हुआ होता है. जब नेता ही अपने कार्यकर्ताओं को समय नहीं दे पाएगा तो कार्यकर्ता अपना समय क्यों बर्बाद करेगा.

नई और पुरानी कांग्रेस के बीच खिंचतान : उत्तर प्रदेश कांग्रेस में इस समय काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. युवाओं की एक नई टीम चुनाव की रणनीति को तैयार कर रही है. इसकी देखरेख में प्रत्याशियों के चयन से लेकर बाकी सारी चीजों पर फैसले लिए जा रहे हैं. पार्टी सूत्रों का कहना है कि यहां पर पुराने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को किनारे किया गया है. जिसका खामियाजा पार्टी को चुनावी मैदान में भुगतना पड़ रहा है. जब तक यह खींचातानी रहेगी तब तक पार्टी का कुछ नहीं हो सकता. अगर चुनाव में अच्छे नतीजे चाहिए तो पुराने वरिष्ठ नेताओं के अनुभव और नई युवा टीम के जोश को एक साथ लाकर काम करना होगा.

जनता से दूर हो गए हैं कांग्रेस के नेता : नव संकल्प शिविर को संबोधित करने के दौरान प्रियंका गांधी ने खुद स्वीकार किया कि कांग्रेस की आवाज उत्तर प्रदेश के घर-घर तक नहीं पहुंच पाई है. इसका एक बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता आम जनता से दूर हैं. राजनीतिक मुद्दों को उठाते हैं, लेकिन सामाजिक सरोकार और संवाद से दूर हो चुके हैं. प्रियंका ने खुद पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को आम जनता से संवाद बढ़ाने की नसीहत दी है.

प्रियंका को देना होगा समय : उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के 6 महीने पहले से प्रियंका गांधी काफी सक्रिय नजर आईं. 8 मार्च को महिला दिवस पर लखनऊ में कार्यक्रम भी किया, लेकिन 10 मार्च के नतीजे आने के बाद वह लखनऊ कभी नहीं आईं. बुधवार को नव संकल्प शिविर में शिरकत करने के लिए करीब 50 दिन के बाद उनका लखनऊ आना हुआ. इसमें भी वह आम कार्यकर्ता के लिए समय नहीं निकाल पाईं. प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं कि कार्यकर्ता सिर्फ अपने नेता की तरफ देखता है. अगर कार्यकर्ता को बांधे रखना है तो नेता के लिए जरूरी है कि वह उस तक पहुंचे.

ये भी पढ़ें : राजधानी में 2 दिन का शिविर 30 मिनट में निपटाकर चली गईं प्रियंका, ऐसे कैसे होगा पार्टी का उद्धार

अभी तक तय नहीं कर पाए प्रदेश अध्यक्ष : पार्टी को चलाने के लिए पदाधिकारियों की जरूरत होती है. प्रदेश अध्यक्ष एक ऐसा पद है जो पूरे प्रदेश में पार्टी की दिशा और दशा को तय करता है. उत्तर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष का पद खाली पड़ा हुआ है, लेकिन अभी तक कांग्रेस आलाकमान की तरफ से इस संबंध में कोई फैसला नहीं लिया गया. इस तरह के महत्वपूर्ण पद अगर खाली पड़े रहेंगे तो आगे काम करना मुश्किल होगा.

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लखनऊ: विधानसभा नतीजों के बाद कांग्रेस जनता के सामने अपनी छवि को बेहतर बनाने की जुगाड़ तलाश रही है. कांग्रेस भले ही कितने ही दावे क्यों न करे, लेकिन उत्तर प्रदेश में उसके लिए राह आसान नहीं है. विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट बैंक गिरकर 2.5% के आस-पास पहुंच गया. विधान परिषद में पार्टी के एकमात्र विधायक का कार्यकाल भी पूरा होने वाला है. विशेषज्ञों का कहना है कि पार्टी ने अपनी गलतियों से अभी भी सबक नहीं लिया तो आने वाले समय में जनता को मुंह दिखाना भी मुश्किल होगा.

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जानकारों ने दी राय

नेता और कार्यकर्ता के बीच दूरी: पिछले चुनाव में पार्टी के अंदर कार्यकर्ता और नेता के बीच में दूरी खुलकर सामने आई. पार्टी के कई पुराने नेताओं ने प्रियंका गांधी से न मिल पाने को लेकर नाराजगी भी दर्ज कराई. यहां तक की 2 दिन के नव संकल्प शिविर में भाग लेने के लिए लखनऊ आई प्रियंका गांधी ने कार्यकर्ताओं से मुलाकात तक नहीं की. वह पार्टी कार्यालय में अपने संबोधन के बाद सीधे कौल हाउस निकल गईं. लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय शुक्ला कहते हैं कि पार्टी कार्यकर्ता को कोई वेतन नहीं दिया जाता. वह विचारधारा और नेता से जुड़ा हुआ होता है. जब नेता ही अपने कार्यकर्ताओं को समय नहीं दे पाएगा तो कार्यकर्ता अपना समय क्यों बर्बाद करेगा.

नई और पुरानी कांग्रेस के बीच खिंचतान : उत्तर प्रदेश कांग्रेस में इस समय काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. युवाओं की एक नई टीम चुनाव की रणनीति को तैयार कर रही है. इसकी देखरेख में प्रत्याशियों के चयन से लेकर बाकी सारी चीजों पर फैसले लिए जा रहे हैं. पार्टी सूत्रों का कहना है कि यहां पर पुराने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को किनारे किया गया है. जिसका खामियाजा पार्टी को चुनावी मैदान में भुगतना पड़ रहा है. जब तक यह खींचातानी रहेगी तब तक पार्टी का कुछ नहीं हो सकता. अगर चुनाव में अच्छे नतीजे चाहिए तो पुराने वरिष्ठ नेताओं के अनुभव और नई युवा टीम के जोश को एक साथ लाकर काम करना होगा.

जनता से दूर हो गए हैं कांग्रेस के नेता : नव संकल्प शिविर को संबोधित करने के दौरान प्रियंका गांधी ने खुद स्वीकार किया कि कांग्रेस की आवाज उत्तर प्रदेश के घर-घर तक नहीं पहुंच पाई है. इसका एक बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता आम जनता से दूर हैं. राजनीतिक मुद्दों को उठाते हैं, लेकिन सामाजिक सरोकार और संवाद से दूर हो चुके हैं. प्रियंका ने खुद पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को आम जनता से संवाद बढ़ाने की नसीहत दी है.

प्रियंका को देना होगा समय : उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के 6 महीने पहले से प्रियंका गांधी काफी सक्रिय नजर आईं. 8 मार्च को महिला दिवस पर लखनऊ में कार्यक्रम भी किया, लेकिन 10 मार्च के नतीजे आने के बाद वह लखनऊ कभी नहीं आईं. बुधवार को नव संकल्प शिविर में शिरकत करने के लिए करीब 50 दिन के बाद उनका लखनऊ आना हुआ. इसमें भी वह आम कार्यकर्ता के लिए समय नहीं निकाल पाईं. प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं कि कार्यकर्ता सिर्फ अपने नेता की तरफ देखता है. अगर कार्यकर्ता को बांधे रखना है तो नेता के लिए जरूरी है कि वह उस तक पहुंचे.

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अभी तक तय नहीं कर पाए प्रदेश अध्यक्ष : पार्टी को चलाने के लिए पदाधिकारियों की जरूरत होती है. प्रदेश अध्यक्ष एक ऐसा पद है जो पूरे प्रदेश में पार्टी की दिशा और दशा को तय करता है. उत्तर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष का पद खाली पड़ा हुआ है, लेकिन अभी तक कांग्रेस आलाकमान की तरफ से इस संबंध में कोई फैसला नहीं लिया गया. इस तरह के महत्वपूर्ण पद अगर खाली पड़े रहेंगे तो आगे काम करना मुश्किल होगा.

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