लखनऊ: उतर प्रदेश के पंचायत चुनाव का इतिहास तो यही कहता है कि जिसकी सत्ता उसकी पंचायत में सरकार. 2010 में बसपा, 2015 में सपा और 2021 में सत्ताधारी दल भाजपा ने बड़ी जीत दर्ज की है. वहीं सपा ने 92 और अन्य ने 85 सीटें जीती हैं. पहले जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में 75 में से 67 और अब ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में 825 में से 645 से अधिक पदों पर भाजपा की इस जीत के दावे ने यह साबित कर दिया है. तमाम बवाल, उपद्रव और हिंसक घटनाओं के बीच सम्पन्न हुए इस चुनाव पर हर बार की तरह इस बार भी विपक्षी दल लोकतंत्र की हत्या, सत्ताधारी दल पर चुनाव में धांधली, अलोकतांत्रिक तरीके से पंचायत पर कब्जे का आरोप लगाया है.
राज्य में शनिवार को सम्पन्न हुए ब्लॉक प्रमुख के चुनाव के दौरान उन्नाव में बवाल की कवरेज करने पहुंचे पत्रकार पीट दिए गए. इससे पहले सीतापुर में गोली चल चल चुकी है. इसके अलावा कानपुर, लखीमपुर खीरी, गोंडा, नौगढ़ सिद्धार्थनगर, अमरोहा, शिवगढ़ रायबरेली में चुनाव के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं पर धांधली और उपद्रव के आरोप लगे. कई जगहों पर पुलिस ने बीच बचाव कर काम चलाया तो कुछ जगहों पर लाठी चार्ज करनी पड़ी. सड़कों पर लोगों ने जाम लगाया तो पुलिस को बल प्रयोग कर हटाने की खबरें भी सामने आईं. वरिष्ठ पत्रकार शिवशरण सिंह कहते हैं कि पंचायत चुनाव सत्ता का होता है. हर दल की ऐसी ही जीत होती है, जिस प्रकार से भाजपा इस बार जीत दर्ज की है.
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय चौधरी कहते हैं कि इस प्रकार के आरोप तो समाजवादी पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव से लगाती आ रही है. उनके आरोप हमेशा हार के अंदेशे से बचने के लिए होते हैं. लोकसभा, विधानसभा चुनाव में ईवीएम को निशाना बनाया गया. पंचायत चुनाव में ईवीएम नहीं है तो आरोप बदले जा रहे हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी अपनी नकारात्मक अवधारणा को ही आगे बढ़ा रही है. प्रदेश में जो कुछ भी उपद्रव के अपवाद सामने आए हैं उसमें समाजवादी पार्टी के लोग ही हिंसा का सहारा ले रहे हैं. प्रदेश में योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत जो भी घटनाएं घट रही हैं उसमें सख्त कार्रवाई की जा रही है. आरोपियों को जेल भेजा जा रहा है. स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हुए पुलिस थाने को निलंबित किया गया है.
यूपी भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा किया है. मुख्यमंत्री ने तो यहां तक कहा कि पहले जिस राज्य में जाति और मजहब के आधार पर लोकतंत्र को गिरवी रखा जता था. आज उस प्रदेश में लोकतंत्र जिंदा है. शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव कराए गए हैं. राज्य निर्वाचन आयोग ने शांतिपूर्ण एवं निष्पक्ष चुनाव कराने में योगदान दिया है. प्रत्येक नागरिक चुनाव लड़ सकता है, बशर्ते जनता उसे न ठुकराए.
इसे भी पढ़ें: ब्लॉक प्रमुख मतदान: अलीगढ़ में बंदूक की नोंक पर बीडीसी सदस्यों से डलवाया वोट
उत्तर प्रदेश में 826 विकास खंडों में से 825 में क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष (ब्लॉक प्रमुख) के पद पर चुनाव हुए हैं. 2015 के चुनाव में तत्कालीन सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी ने 623 ब्लॉक प्रमुख के पदों पर जीत दर्ज करने का दावा किया था. वर्तमान की सत्ताधरी पार्टी ने उससे अधिक सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा था. पार्टी की रणनीति पहले दिन ही दिखाई पड़ने लगी थी. पत्रकारों से बात करते हुए मुख्यमंत्री ने बताया कि 648 पर भाजपा ने जीत दर्ज की है. सारे परिणाम आने तक यह संख्या बढ़ सकती है.
इसे भी पढ़ें: ब्लॉक प्रमुख मतदान के बीच सपा-भाजपा कार्यकर्ता भिड़े, पुलिस ने की लाठीचार्ज
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक पीएन दिवेदी कहते हैं कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अप्रैल में चार चरणों में सीधे जनता द्वारा चुनाव संपन्न हुआ. उसमें क्षेत्र पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान और जिला पंचायत सदस्य चुने गए. इसके बाद जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत सदस्य मतदान करते हैं. हमेशा से यह चुनाव परिणाम सत्ताधारी दल के पक्ष में आते रहे हैं. जिन जगहों पर हिंसक घटनाएं सामने आईं हैं लोकतंत्र के लिए यह ठीक नहीं है. स्थानीय प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए था.