लखनऊ: भाजपा के एक एमएलसी को महाराजगंज के जिलाधिकारी ने फोन पर पर्याप्त सम्मान नहीं दिया तो उन्होंने विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव का नोटिस दे दिया. उस पर करीब 30 मिनट तक बहस हुई. समाजवादी पार्टी के नेता नरेश उत्तम ने घाटमपुर में अपने गांव में एक नहर में पानी न होने का मुद्दा उठा दिया. करीब 15 मिनट तक बहस होती रही. इसी तरह से 4 किलोमीटर लंबी सड़क पर 40 मिनट की बहस हुई. इसी तरह से छोटे-छोटे सवालों पर लंबी बहस हुई है. जिससे बड़े सवाल दब के रह जा रहे हैं. रोजाना प्रश्न पहर में 7 से 8 सवालों पर चर्चा नहीं हो पाती है. जिससे अनेक सदस्य जो बड़े मुद्दे लेकर आते हैं उनकी बात सदन के गलियारों में फाइलों के माध्यम से ही घूमती रह जाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि निश्चित तौर पर विधान परिषद का यह उद्देश्य नहीं था जो उत्तर प्रदेश में इस बार हो गया है. बहुत छोटे मुद्दे उठाए जा रहे हैं जो कि सदन की सेहत के लिए दुरुस्त नहीं.
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विधान परिषद में सदन का अहम वक्त खराब हो रहा है. जिसमें नितांत व्यक्तिगत सवाल उठाए जा रहे हैं. जिसका खराब असर हो रहा है. इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का कहना है कि निश्चित तौर पर अगर एमएलसी विधान परिषद जैसे सदन में बहुत छोटे मुद्दे उठा रहे हैं तो वह उन अधिकारियों से नहीं मिल रहे हैं जो स्थानीय स्तर पर इन कामों को करने के लिए जिम्मेदार हैं. निश्चित तौर पर यह निकाय की व्यवस्था पर भी सवाल है. उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था बिल्कुल भी उचित नहीं है. भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संजय चौधरी का इस बारे में कहना है कि निश्चित तौर पर उच्च सदन केवल बड़े मुद्दों को उठाने के लिए था ताकि प्रदेश की जनता के कल्याण के लिए सवाल उठाए जा सकें. मगर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज की तारीख में विपक्ष के विधायक व्यक्तिगत मामलों को उठाकर समय का दुरुपयोग कर रहे हैं और जनता के कल्याण के लिए बड़े मुद्दे नहीं उठा रहे हैं.
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