लखनऊ : एक डाकू जो पुलिस वालों की हत्याकर खुश होता था. उसने अपनी दहशत कायम रखने के लिये एक दारोगा के सामने ही उसकी पत्नी के साथ दुष्कर्म किया और फिर पत्नी के सामने दारोगा की हत्याकर शरीर के टुकडे़-टुकडे़ कर दिये. उसी डाकू की मौत की वजह बनी थी एक बाबा की भविष्यवाणी, जो उसने एक आइपीएस अधिकारी के सामने कर दी थी. ठीक 65 दिन बाद उसी IPS ने डाकू को मार गिराया.
वो दौर था 1970-80 के दशक का. जब बीहड़ के इलाकों में डाकूओं के गैंग (gang of robbers) पुलिस के लिये सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रहे थे, इसी दौरान 7 अगस्त 1981 डाकू छविराम ने एटा जिले के अलीगंज थाना क्षेत्र में नथुआपुर गांव में दिनदहाड़े 11 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी. पूरे जिलें में आग लगी हुई थी. ऐसे में तत्कालीन सरकार किसी ऐसे पुलिस अधिकारी को जिले की कमान सौंपना चाहती थी, जो डाकुओं से बिना डरे लोहा ले सके. तभी पुलिस मुख्यालय से हमीरपुर जिले के एसपी आईपीएस विक्रम सिंह का नाम सरकार को सुझाया गया. तत्कालीन मुख्यमंत्री बीपी सिंह ने आईपीएस विक्रम सिंह को तत्काल हमीरपुर से हेलीकॉप्टर के जरिए एटा भेज दिया और तुरंत ज्वाइनिंग के लिए हुक्म दिया.
गाड़ी में पुलिस लिखने से डरते थे लोग : पूर्व डीजीपी व तत्कालीन एटा एसपी विक्रम सिंह (Former DGP Vikram Singh) बताते हैं कि जैसे ही सरकार ने हुक्म दिया कि आप एटा के एसपी की कमान सम्भालिये तो मैं फौरन एटा रवाना हो गया, यह जानते हुये कि वहां के हालात क्या हैं. वहां हालात ऐसे थे कि लोग कहते थे कि आप अपनी गाड़ी के आगे पुलिस अधीक्षक न लिखिए अगर डकैतों ने देख लिया तो आपकी हत्या कर देंगे. उस जिले में दहशत का माहौल इस कदर था कि थानों में सभी पुलिसकर्मी हथियार लेकर छत पर सोते थे. विक्रम सिंह बताते हैं जब वो एटा पहुंचे तो उन्होने कहा कि 'वर्दी पर नेम प्लेट भी रहेगी, गाड़ी के आगे पुलिस अधीक्षक भी लिखा रहेगा. जब मौत आनी होगी आयेगी ही, देखा जायेगा.' वो बताते हैं कि इसी दौरान एटा में जनसंघ के पूर्व विधायक रहे सतीश चन्द्र शर्मा का डाकुओं ने अपहरण कर लिया था और वो ढूंढे़ नहीं मिल रहे थे.
एसपी से बाबा ने की भविष्यवाणी : एक रोज एसपी कार्यालय में विक्रम सिंह अपने मातहतों के साथ पूर्व विधायक सतीश चंद्र शर्मा (former MLA Satish Chandra Sharma) की तलाश के लिए रणनीति बना रहे थे, तभी एक संतरी अंदर आता है और बोलता है कि सर एक बाबा आपसे मिलने की जिद कर रहा है. मैंने कई बार मना किया कि साहब बिजी हैं बाद में आना लेकिन, फिर भी वह कह रहा है कि मैं मिलकर ही यहां से जाऊंगा. विक्रम सिंह बताते हैं कि मैं और मेरी टीम पहले से ही सतीश चंद्र शर्मा को लेकर परेशान थे, ऊपर से बाबा की जिद ने और परेशानी में डाल दिया, हालांकि मैने बाबा को अन्दर भेजने के लिये कहा. बाबा कमरे में आते ही कहते हैं कि आप अपने पुलिसकर्मियों के साथ जो बातें कर रहे थे वो मैने सुनी हैं, इसलिए ज्यादा वक्त न लेते हुए सीधे आपको यह बताना चाहता हूं जिसकी खोज आप कर रहे हैं वह मर चुका है, उनकी लाश कुछ दिन बाद ऊपर आ जाएगी. यही नहीं जिसने उसका कत्ल किया है उसे आप ही मारेंगे. बाबा की बात सुनते ही आश्चर्य हुआ साथ ही हंसी भी आई. मैने बाबा को जाने के लिये कह दिया और फिर से काम में लग गया.
15 दिन में सच हुई भविष्यवाणी : विक्रम सिंह बताते हैं उस दिन से करीब 15 दिन बाद उनकी टीम को जानकारी मिली कि सतीश चंद्र शर्मा की लाश बीहड़ में बरामद हुई है. बताया गया कि श्वानों ने लाश को खाने के लिये मिट्टी खोदी थी, जिससे वो ऊपर आ गयी. तभी मुझे बाबा की बात ध्यान में आई, जिसमें उन्होंने कहा था जिसको मैं ढूंढ़ रहा हूं वह मर चुका है और उसकी लाश कुछ दिन बाद ऊपर आ जाएगी. उन्होने कहा कि जांच में आया कि सतीश चंद्र शर्मा को मारने वाला उस वक्त का खूंखार डकैत महावीर था.
दारोगा के सामने पत्नी का किया रेप : महावीर के बारे में कहा जाता था कि वह पुलिस वालों की हत्या करने में खुश होता था. एक बार तो एटा-बदायूं के बीच जंगलों में नदी पार कर रहे दारोगा व उसकी पत्नी का महावीर डाकू ने अपहरण कर लिया. महावीर ने दारोगा के सामने ही उसकी पत्नी का बलात्कार किया और फिर दारोगा की हत्या का लाश के टुकड़े कर दिये थे. विक्रम सिंह कहते हैं कि महावीर क्रूर व साइकोपैथ किलर था.
जब गन्ने के खेत में हुआ महावीर से आमना-सामना : सतीश चन्द्र शर्मा की लाश मिलने के करीब 65 दिन बाद 20 मार्च 1982 की बात है. मुखबिर ने थाने आकर खबर दी कि डाकू महावीर साथी डाकुओं के साथ जहान नगर गांव में पहुंचेगा. विक्रम सिंह बताते हैं कि टिप मिलते ही उन्होंने पीएससी और डिप्टी एसपी अमर सिंह के साथ मिलकर टीम गठित की और दिन के एक बजे मौके पर पहुंच गये. महावीर को पुलिस के आने की भनक लगी तो पास में ही गन्ने के खेत में जाकर छिप गया. हमने भी अपनी टीम के साथ गन्ने के खेत के बाहर ही डेरा डाल लिया था. महावीर की तरफ से फायरिंग हुई तो पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई की. एनकाउंटर होते होते शाम के 4 बज चुके थे. अंधेरा होने को था, अब हमें इस बात का डर था कि अगर लाइट कम हुई और ड्रैगन लाइट आते-आते देर हो गई तो हमारे फोर्स के लोग मारे जा सकते हैं और डाकू जो हर परिस्थिति में हमले को तैयार रहते हैं वह अंधेरे का फायदा उठाकर हम पर भारी पड़ सकते हैं. ऐसे में मैं एनकाउंटर को ज्यादा लंबा खींचना नहीं चाहता था, लेकिन महावीर इतना शातिर और चालाक था कि गन्ने के खेत में उसकी मूवमेंट किसी को पता ना चल सके इसके लिए एक कोने में बैठ गया. अब ऐसे में गन्ने के खेत में जाने का मतलब मौत को दावत देना. जैसे तैसे हमारी पुलिस टीम अंदर जाने की कोशिश करती महावीर फायरिंग कर देता.
विक्रम सिंह बताते हैं कि महावीर बिल्कुल कंट्रोल फायरिंग कर रहा था यही नहीं फायरिंग करने के तुरंत बाद वह अपनी जगह बदल दे रहा था. जिसके बाद डिप्टी एसपी अमर सिंह ने मुझसे आकर कहा कि सर अगर हम ऐसे ही डरते रहे तो महावीर अंधेरे का फायदा उठाकर हमारे लड़कों को नुकसान पहुंचा सकता है. इसके चलते यह फैसला लिया गया कि अब हम लोग गन्ने के खेत में जाकर महावीर को चारों ओर से घेरेंगे और उसके बाद एनकाउंटर में ढेर कर देंगे. करीब चार घंटे मुठभेड़ चलने के बाद हमारी टीम धीरे धीरे गन्ने के खेत के अंदर घुसती है. पीएससी की तीन टुकड़ियों को महावीर को घेरने के लिए खेत के तीनों ओर से अंदर भेजा जाता है, वहीं एक ओर से मैं और मेरी टीम महावीर की तरफ टारगेट कर रहे थे.
फायरिंग की आवाज सुनकर दारोगा बता देते थे बंदूक का नाम : विक्रम सिंह बताते हैं कि मेरी टीम में ऐसे जांबाज सब इंस्पेक्टर मौजूद थे जो फायरिंग की आवाज मात्र से यह बता देते थे कि डाकू पिस्टल से फायरिंग कर रहे हैं या फिर राइफल से चल रही है. यही नहीं वह यहां तक बता देते थे कि फायरिंग कितने मीटर दूर से हो रही है, जिसके चलते हम लोगों को अंधेरे में भी ज्यादा मुश्किलों का सामना करना नहीं पड़ा. आखिरकार महावीर और उसके एक साथी को हमारी टीम ने मार गिराया.
महावीर की मौत के बाद जिले भर में मनी दिवाली : डर का दूसरा नाम बन चुका महावीर अब खत्म हो चुका था, ऐसे में एटा जिले के लोगों ने राहत की सांस ली. महावीर का एनकाउंटर करने वाले टीम के स्वागत में जिले के लोग सड़कों पर उतर आए थे. विक्रम सिंह बताते हैं कि जब वो लोग एनकाउंटर कर वापस आ रहे थे लोग नारे लगा रहे थे 'एसएसपी एटा की पहचान शेर का बच्चा आलीशान'. विक्रम सिंह कहते हैं कि लोगों के डर को जाते देख और उनकी खुशियों को देख उनकी आंखों में आंसू आ गए थे कि आज उन्होंने ऐसे डाकू को मारा, जिसने आम लोगों से लेकर पुलिसकर्मियों तक दहशत कायम कर रखी थी
राइफल की बट पर लिख रखा था 'डाकू महावीर' : विक्रम सिंह बताते हैं कि महावीर डाकू को अपने डकैत होने पर काफी घमंड था उसे इस बात की ठसक थी कि पुलिस उससे कांपती है. इसी के चलते जैसे डॉक्टर अपने बैग में अपने नाम के साथ आगे डॉक्टर लिखकर चलता था, वैसे ही वह अपनी रायफल के बट पर लिखा हुआ रखा था डाकू महावीर.