लखनऊ : पारिवारिक न्यायालय में मौजूदा समय में तलाक की अर्जियां बढ़ गई हैं. अब रोजाना 500 से अधिक केस दर्ज हो रहे हैं. कई वजहों से अलग होने के लिए लोग तलाक ले रहे हैं. ऐसे मामलों में एक केस वर्षों तक चलता रहता है. इससे परेशान होकर वादी साफ तौर पर कहते हैं कि हमें पारिवारिक न्यायालय में तलाक के लिए नहीं आना चाहिए था. लाखों की संख्या में केस पेंडिंग हैं. फैमिली कोर्ट में तलाक, बच्चे की कस्टडी, गुजारा भत्ता, घरेलू हिंसा से सम्बंधित केस ज्यादा आते हैं. इनमें से ज्यादातर नए शादीशुदा जोड़े होते हैं या फिर जिन्होंने एक साथ 30 साल बिता लिए उनके तलाक के केस आते हैं.
वकीलों का कहना है कि जो रिश्ते टूट रहे हैं, उनके पीछे वजह बहुत छोटी होती है. आजकल ज्यादातर तलाक के कारणों में इंटरनेट की बड़ी भूमिका है. पारिवारिक न्यायालय में रोजाना करीब 100 से अधिक केस दर्ज होते हैं, जबकि सुनवाई या मामले का फैसला एक भी केस का नहीं होता है. तारीखें बदलती रहती हैं और केस वर्षों चलता रहता है. कोरोना की तीसरी लहर आने के बाद कोर्ट दो महीने से बंद था फिर ऑनलाइन कोर्ट चलने लगे, लेकिन अब कोर्ट खुल चुके हैं. वरिष्ठ वकील सिद्धांत कुमार बीते 30 सालों से इस प्रोफेशन में हैं. उन्होंने तरह तरह के केस सॉल्व किए हैं. वकील सिद्धांत कुमार ने बताया कि फैमिली कोर्ट में जो मामले आते हैं उनमें कोई समानता नहीं होती है. सभी केस की अलग-अलग वजह होती हैं, भले ही मकसद एक हो.
वरिष्ठ वकील घनश्याम ने बताया कि "वैसे तो पारिवारिक न्यायालय में तमाम तरीके के केस हैं. बच्चे की कस्टडी, गुजारा भत्ता और तलाक का केस. तलाक के नए-नए केस सामने आते हैं. इसकी वजह सुनकर हम खुद हैरान हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि फरवरी महीने में उनके पास 6 केस आ चुके हैं, जिन्होंने लव मैरिज की और फिर एक महीने बाद तलाक के लिए फाइल किया. इसके पीछे की प्रमुख वजह ईगो है. फरवरी में लगभग 700 से अधिक केस फाइल हुए हैं."
अधिवक्ता घनश्याम बताते हैं कि "साल 2018 से पहले सिर्फ दो कोर्ट पारिवारिक न्यायालय में थे, लेकिन कोविड से पहले नौ पारिवारिक कोर्ट और बने. वर्तमान में फैमिली कोर्ट में 11 कोर्ट हैं. इसमें से केवल सात कोर्ट चल रहे हैं. फिलहाल सारे केस पेंडिंग हैं और तारीखें बदलती रहती हैं. उनके पास कई केस करीब नौ सालों से चल रहे हैं, जिसका फैसला आज तक नहीं हुआ है."
वरिष्ठ वकील सिद्धांत कुमार बताते हैं कि "30 वर्षों के एक्सपीरियंस में ज्यादातर कोशिश रही है कि पति पत्नी का समझौता करा दिया जाए, लेकिन जब बात ज्यादा बिगड़ जाती है या आपसी मतभेद ज्यादा हो जाता है तो केस को हाथ में लेते हैं. कोरोना काल में घरेलू हिंसा के मामले ज्यादा दर्ज हुए हैं. कोरोना काल में जब पति-पत्नियों ने जब घर पर ज्यादा समय बिताया है, उसी बीच छोटी-छोटी बातों पर नोकझोंक की वजह से ऐसे मामले सामने आए हैं. कोर्ट खुलते ही तलाक के लिए लोग आने लगे. समझौता की जगह लोगों ने तलाक को ज्यादा प्राथमिकता दी है. क्योंकि जब पति पत्नी के बीच में अच्छा तालमेल न हो, एक-दूसरे के साथ बातों को छिपाने की आदत हो. एक्स्ट्रा लव और ऑनलाइन चैटिंग के कारण रिश्ता टूट रहा है."
सबसे ज्यादा भरण-पोषण के मामले लंबित हैं. जबकि, दूसरे पायदान पर लव मैरिज केस के 356 मामले लंबित हैं. वकीलों का कहना है कि भरण-पोषण के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाली नवविवाहिता से लेकर 70 से 80 वर्ष की महिलाएं भी शामिल हैं. करीब 300 मामलों में महिलाओं ने अपने नाबालिग बच्चे के लिए भी भरण-पोषण की मांग रखी है.
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वकील घनश्याम यादव ने बताया कि दो दशक से ज्यादा समय से वह पारिवारिक न्यायालय में केस लड़ते हैं. इस दौरान कई तरह के केस देखने को मिलते हैं. ज्यादातर केस ऐसे आते हैं जिसमें पति और पत्नी में इगो के चलते रिश्ते टूट रहे हैं. हालांकि पहले ऐसे केस नहीं आते थे, लेकिन साल 2017 से ऐसे केस न्यायालय में बढ़ गए हैं. जहां पति-पत्नी एक दूसरे को समझ नहीं पाते और इगो के चलते रिश्ते टूट रहे हैं.