लखनऊ: छत्तीसिंहपुरा जनसंहार की 22वीं बरसी पर कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने इस घटना की सीबीआई जांच की मांग की है. 20 मार्च 2000 को अमेरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा की पूर्व संध्या पर कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के छत्तीसिंहपुरा गांव में 36 सिखों की हत्या नक़ाबपोश हत्यारों ने कर दी थी.
सिख समुदाय शुरू से इस हत्याकांड की जांच न कराने के कारण अटल बिहारी बाजपेयी सरकार की भूमिका पर सवाल उठाता रहा है. फेसबुक लाइव के माध्यम से होने वाले स्पीक अप कार्यक्रम की 38वीं कड़ी में कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के नेताओं ने यह मांग की है.
अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश चेयरमैन शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 20 मार्च 2000 को शाम साढ़े सात बजे अनंतनाग के छत्तीसिंहपुरा गांव में दो दर्जन के क़रीब नक़ाबपोश हथियारबंद लोग सेना की वर्दी में घुसे और सिखों को गांव के दो गुरुद्वारों के बाहर लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया.
36 लोग घटनास्थल पर ही मारे गए जबकि नानक सिंह नाम के एक व्यक्ति किसी तरह बच गए थे. बाद में नानक सिंह ने मीडिया को बताया कि हत्यारों ने गोली चलाने से पहले 'जय माता दी' और 'भारत माता की जय' के नारे लगाए थे और आपसी संवाद में वो गोपाल, पवन, बंशी और बहादुर नाम से एक दूसरे को संबोधित कर रहे थे.
इस जनसंहार में इकलौते बचे नानक सिंह ने यह भी बताया था कि हत्यारों में से एक गोली चलाने के दौरान बोतल से शराब भी पी रहा था. शाहनवाज़ आलम ने कहा कि तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने अमरीकी संयुक्त सचिव मैडेलिन अलब्राइट की पुस्तक 'द माइटी ऐण्ड द अलमाइटी: रिफ्लेक्शन्स औन अमेरिका, गौड ऐंड वर्ल्ड एफेअर्स' की भूमिका में लिखा' 2000 में मेरे भारत दौरे के दौरान कुछ हिंदू अतिवादियों ने अपनी नाराज़गी का प्रदर्शन करते हुए 38 सिखों की हत्या कर दी.
अगर मैंने वो दौरा नहीं किया होता तो संभवतः वो सारे लोग जीवित होते लेकिन अगर मैं इस डर से दौरा नहीं करता कि धार्मिक अतिवादी यह सब कर सकते हैं तो फिर मैं अमरीका के राष्ट्रपति के बतौर अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाता'.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इस जनसंहार का मास्टरमाइंड बताते हुए पांच दिन बाद पांच मुस्लिम युवकों को पाकिस्तानी आतंकी बता कर पथरीबल में मार दिया गया जिसकी सीबीआई जांच के बाद पता चला कि वो मुठभेड़ फ़र्ज़ी थी. मारे गए पांचों युवक स्थानीय नागरिक थे जिन्हें उनके घर से उठाकर मारा गया था.
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शाहनवाज़ ने कहा कि जब जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री फ़ारुक अब्दुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत जज एसआर पांडियन से सिख जनसंहार की जांच कराने की घोषणा की तो उन्हें प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने दिल्ली बुलाकर जांच रोक देने का निर्देश दिया.
इस जनसंहार की जांच कराने के बजाय तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की दिलचस्पी सिखों को घाटी से पलायन कर जाने के लिए उकसाने का रहा जिसे स्थानीय सिखों ने नकार दिया था. शाहनवाज़ आलम ने कहा कि पथरीबल मुठभेड़ में पांच लोग मारे गए थे.
सवाल उठने पर उसकी सीबीआई जांच करा दी गयी लेकिन 36 सिखों की हत्या की सीबीआई जांच की मांग पिछले 22 सालों से सिख समुदाय कर रहा है. पर उसकी जांच नहीं कराई गई. उन्होंने कहा कि आख़िर क्या वजह है कि न तो अटल बिहारी बाजपेयी इसकी जांच के लिए तैयार हुए और न ही नरेंद्र मोदी जांच कराना चाहते हैं.
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