गोरखपुर: विश्व को आपसी प्रेम, एकता और सद्भावना का पाठ पढ़ाने वाले महान संत कबीर दास का सिर्फ हिंदू और मुस्लिम समाज ही अनुयायी नहीं है, बल्कि उनका सिख समाज से भी गहरा नाता है. इसका सबसे बड़ा प्रमाण गोरखपुर-संत कबीर नगर की सीमा पर शिरोमणि गुरद्वारा प्रबंध कमेटी द्वारा स्थापित किया गया विश्व का पहला 'कबीर साहिब गुरुद्वारा' है. यहां से पूरी दुनिया को शांति, सद्भाव और भाईचारे का बड़ा संदेश दिया जा रहा है.
कबीर की निर्वाण स्थली 'मगहर' से आमी नदी के पूर्वी छोर पर यह गुरुद्वारा नेशनल हाई-वे 28 के किनारे बसा हुआ है, जोकि राहगीरों के लिए ठौर-ठिकाने का काम करता है, तो वहीं गुरुद्वारे के लंगर से भूखे को रोटी मिल जाती है. गुरु नानक देव और कबीर दोनों की उम्र में तो काफी अंतर था, लेकिन कबीर के विचार और वाणी से गुरु नानक देव बहुत प्रभावित थे. यही वजह है कि गुरुवाणी में भी कबीर के कथन और वचन का उपयोग हुआ है.
कबीर साहब के नाम पर स्थापित इस गुरुद्वारे में उनके दिए हुए उपदेशों को तरजीह दी जाती है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर ने जब कबीर साहब के नाम पर पूर्वांचल के हिस्से में गुरुद्वारे की स्थापना के बारे में सोचा तो उसे आमी नदी का पूर्वी छोर बेहद अच्छा लगा. क्योंकि इसके पश्चिमी छोर पर कबीर की निर्माण स्थली मगहर स्थापित है. इस गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब के साथ-साथ कबीर के दोहों से मानव कल्याण का संदेश दिया जाता है, जहां सदगुरु कबीर ने आपसी ऊंच-नीच, छुआछूत और भेदभाव को समाज से मिटाने की कोशिश की. गुरुद्वारे में बड़ी शिद्दत से हर धर्म, जाति और मजहब के लोग आकर मत्था टेकते हैं.
गुरुद्वारे के ग्रंथी कहते हैं कि कबीर साहब और गुरु नानक देव की उम्र में करीब 60 वर्ष का अंतर था. इनके बीच चार बार सत्संग हुआ था, जो स्थान ननकाना, अमरकंटक, बनारस और मगहर के रूप में जाना जाता है. संत कबीर से गुरु नानक देव ने सत्संग की दीक्षा ली थी, जिसका उल्लेख गुरु ग्रंथ साहिब में मिलता है. शायद इसीलिए गुरु ग्रंथ साहिब में 34 महापुरुषों की वाणी के साथ-साथ सबसे ज्यादा महत्व कबीर दास जी की वाणी को दिया गया है.
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