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1000 साल पुराने दरगाह पर सजा उर्स और मेला, सभी धर्मों के लोग बढ़-चढ़ कर लेते हैं हिस्सा

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Published : May 30, 2022, 6:47 PM IST

बेतियाहाता नॉर्मल के निकट हजरत मुबारक खान शहीद अलैहीरहमान की मशहूर व मारूफ दरगाह है.यह दरगाह वक्फ विभाग में भी दर्ज है. ईद का चांद यानी शव्वाल माह की 26, 27 और 28 तारीख को उर्स ए पाक मनाया जाता है. जिस में भव्य मेले का आयोजन भी होता है.

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दरगाह पर सजा उर्स और मेला

गोरखपुर: बेतियाहाता नॉर्मल के निकट हजरत मुबारक खान (Hazrat Mubarak Khan) शहीद अलैहीरहमान की मशहूर व मारूफ दरगाह है. यह लगभग 1000 साल पुरानी बताई जाती है. यहां कुल 9 मदारे हैं. दरगाह का गुंबद अजमेर शरीफ दरगाह (Ajmer Sharif Dargah) की तर्ज पर बनाया गया है. यह दरगाह वक्फ विभाग में भी दर्ज है. ईद का चांद यानी शव्वाल माह की 26, 27 और 28 तारीख को उर्स ए पाक मनाया जाता है. जिस में भव्य मेले का आयोजन भी होता है. यहां हर मजहब के मानने वालों की शिरकत होती है. दरगाह सदर इकरार अहमद ने बताया कि हजरत मुबारक खान शहीद पूर्वांचल के बड़े औलिया ए किराम में शुमार होते हैं. आज भी इस दरगाह को आला मकाम हासिल है. दरगाह से सटे एक मस्जिद, ईदगाह और मदरसा भी है.

उलमा के मुताबिक हजरत मुबारक खा शहीद हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां अलैहरहमान के खलीफा और मुरीदीन में से थे. वे उन्हीं के साथ हिंदुस्तान आए. गाजी मियां ने बुराइयों को खत्म करने के लिए आपको गोरखपुर भेजा. हक और बातिल की जंग में आपने बहादुरी के साथ लड़ते-लड़ते कम उम्र में शहादत पाई आप पैदाइशी बली थे.

उर्स और मेला में उमड़ी भीड़

लगभग 156 साल पहले मियां साहब इमामबाड़ा स्टेट के सज्जादानशीन सैयद अहमद अली शाह ने अपनी किताब महबुबूत तवारीख जो 118 पन्नों की है, जो सन 1863 ईस्वी में छपी. उस में लिखते हैं कि मुबारक खा नामी नहीं दूर है. दक्कीन शहर के खूब मशहूर है. इससे पता चलता है 156 साल पहले हजरत मुबारक खान शहीद हजरत मुबारज खान के नाम से मशहूर थे.

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पूजा करती महिलाएं

बाद में उन्हें हजरत मुबारक हां शहीद कहा जाने लगा. शहरनामा किताब में लिखा है कि कुछ इतिहासकारों का मत है कि सन 1034 ईस्वी में हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां ने गोरखपुर पर अधिकार कर लिया था. बताया जाता है कि जब गाजी मियां की शहादत हुई, उसी सन में हजरत मुबारक खान की शहादत हुई.

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दरगाह पर सजा उर्स और मेला

आपके साथ आपके भाइयों ने भी शहादत पाई, जिसमें एक भाई की मजार प्रेमचंद्र पार्क रोड (Premchandra Park Road) बेतियाहाता स्थित दरगाह हजरत बाबा तबारक खान शाहिद और दूसरी मजार माधोपुर बंधे के पास हजरत सुब्हान शाहिद के नाम से मशहूर है. लोग बताते हैं कि दरगाह हजरत मुबारक खान शहीद परिसर में मौजूद सभी मजार शहीदों की है.

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दरगाह पर जुटे लोग

इसे भी पढ़ेंः ETV Bharat EXCLUSIVE: राज्यसभा नामांकन के बाद जयंत चौधरी का पहला इंटरव्यू

एक मजार पलंग साह के नाम से भी मशहूर है. शहर के सभी इलाकों में मौजूद ज्यादातर गुमनाम शहीदों की मजारों का ताल्लुक हजरत मुबारक का शहीद या 1857 की जंगे आजादी से है. ईद का चांद यानी शव्वाल माह की 26, 27 और 28 तारीख को उर्स ए पाक मनाया जाता है, जो हिंदी कैलेंडर के अनुसार 28, 29 और 30 तारीख मानी जाती है.

इसमें बड़ी संख्या में सभी धर्मों के लोग हजरत मुबारक खान शहीद के आस्थाने पर आकर अपनी-अपनी मुरादों को पूरी करते हैं. इस मेले को लेकर गोरखपुर ही नहीं आस-पास के जनपदों के लोगों को भी शव्वाल माह का इंतजार रहता है. वाइट इकरार अहमद दरगाह सदर मजार पर पिछले कई वर्षों से आ रहे डॉक्टर आमिर अहमद खान बताते हैं कि यहां पर बड़ी संख्या में हिंदू महिलाएं बाबा में आस्था रखती हैं.

उनका मानना है कि बाबा उनके हर दुख और कष्ट को हरने के साथ ही उनके परिवार में सुख समृद्धि लाते हैं. यही कारण है कि उर्स ए पाक में बड़ी संख्या में जनपद के अगल-बगल के जिलों और अन्य प्रदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग पहुचते हैं. उर्स ए पाक में आई अनीता बताती है कि वह प्रत्येक शुक्रवार को बाबा की मजार पर आकर शीश नवाती है और उनका आशीर्वाद लेती हैं. उर्स ए पाक में आकर उन्हें काफी अच्छा लग रहा है. वह पिछले 2 साल से इस उर्स में आ रही है. यहां पर कोई भेदभाव नहीं है. सभी लोग पूरी शिद्दत के साथ बाबा की पूजा अर्चना करते हैं.

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गोरखपुर: बेतियाहाता नॉर्मल के निकट हजरत मुबारक खान (Hazrat Mubarak Khan) शहीद अलैहीरहमान की मशहूर व मारूफ दरगाह है. यह लगभग 1000 साल पुरानी बताई जाती है. यहां कुल 9 मदारे हैं. दरगाह का गुंबद अजमेर शरीफ दरगाह (Ajmer Sharif Dargah) की तर्ज पर बनाया गया है. यह दरगाह वक्फ विभाग में भी दर्ज है. ईद का चांद यानी शव्वाल माह की 26, 27 और 28 तारीख को उर्स ए पाक मनाया जाता है. जिस में भव्य मेले का आयोजन भी होता है. यहां हर मजहब के मानने वालों की शिरकत होती है. दरगाह सदर इकरार अहमद ने बताया कि हजरत मुबारक खान शहीद पूर्वांचल के बड़े औलिया ए किराम में शुमार होते हैं. आज भी इस दरगाह को आला मकाम हासिल है. दरगाह से सटे एक मस्जिद, ईदगाह और मदरसा भी है.

उलमा के मुताबिक हजरत मुबारक खा शहीद हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां अलैहरहमान के खलीफा और मुरीदीन में से थे. वे उन्हीं के साथ हिंदुस्तान आए. गाजी मियां ने बुराइयों को खत्म करने के लिए आपको गोरखपुर भेजा. हक और बातिल की जंग में आपने बहादुरी के साथ लड़ते-लड़ते कम उम्र में शहादत पाई आप पैदाइशी बली थे.

उर्स और मेला में उमड़ी भीड़

लगभग 156 साल पहले मियां साहब इमामबाड़ा स्टेट के सज्जादानशीन सैयद अहमद अली शाह ने अपनी किताब महबुबूत तवारीख जो 118 पन्नों की है, जो सन 1863 ईस्वी में छपी. उस में लिखते हैं कि मुबारक खा नामी नहीं दूर है. दक्कीन शहर के खूब मशहूर है. इससे पता चलता है 156 साल पहले हजरत मुबारक खान शहीद हजरत मुबारज खान के नाम से मशहूर थे.

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पूजा करती महिलाएं

बाद में उन्हें हजरत मुबारक हां शहीद कहा जाने लगा. शहरनामा किताब में लिखा है कि कुछ इतिहासकारों का मत है कि सन 1034 ईस्वी में हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां ने गोरखपुर पर अधिकार कर लिया था. बताया जाता है कि जब गाजी मियां की शहादत हुई, उसी सन में हजरत मुबारक खान की शहादत हुई.

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दरगाह पर सजा उर्स और मेला

आपके साथ आपके भाइयों ने भी शहादत पाई, जिसमें एक भाई की मजार प्रेमचंद्र पार्क रोड (Premchandra Park Road) बेतियाहाता स्थित दरगाह हजरत बाबा तबारक खान शाहिद और दूसरी मजार माधोपुर बंधे के पास हजरत सुब्हान शाहिद के नाम से मशहूर है. लोग बताते हैं कि दरगाह हजरत मुबारक खान शहीद परिसर में मौजूद सभी मजार शहीदों की है.

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दरगाह पर जुटे लोग

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एक मजार पलंग साह के नाम से भी मशहूर है. शहर के सभी इलाकों में मौजूद ज्यादातर गुमनाम शहीदों की मजारों का ताल्लुक हजरत मुबारक का शहीद या 1857 की जंगे आजादी से है. ईद का चांद यानी शव्वाल माह की 26, 27 और 28 तारीख को उर्स ए पाक मनाया जाता है, जो हिंदी कैलेंडर के अनुसार 28, 29 और 30 तारीख मानी जाती है.

इसमें बड़ी संख्या में सभी धर्मों के लोग हजरत मुबारक खान शहीद के आस्थाने पर आकर अपनी-अपनी मुरादों को पूरी करते हैं. इस मेले को लेकर गोरखपुर ही नहीं आस-पास के जनपदों के लोगों को भी शव्वाल माह का इंतजार रहता है. वाइट इकरार अहमद दरगाह सदर मजार पर पिछले कई वर्षों से आ रहे डॉक्टर आमिर अहमद खान बताते हैं कि यहां पर बड़ी संख्या में हिंदू महिलाएं बाबा में आस्था रखती हैं.

उनका मानना है कि बाबा उनके हर दुख और कष्ट को हरने के साथ ही उनके परिवार में सुख समृद्धि लाते हैं. यही कारण है कि उर्स ए पाक में बड़ी संख्या में जनपद के अगल-बगल के जिलों और अन्य प्रदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग पहुचते हैं. उर्स ए पाक में आई अनीता बताती है कि वह प्रत्येक शुक्रवार को बाबा की मजार पर आकर शीश नवाती है और उनका आशीर्वाद लेती हैं. उर्स ए पाक में आकर उन्हें काफी अच्छा लग रहा है. वह पिछले 2 साल से इस उर्स में आ रही है. यहां पर कोई भेदभाव नहीं है. सभी लोग पूरी शिद्दत के साथ बाबा की पूजा अर्चना करते हैं.

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