प्रयागराज: मुजफ्फनगर के कटौली थाने की पुलिस पर आरोप है कि एक व्यक्ति पर 23 सालों में 49 फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए. इस मामले में यूपी डीजीपी और मुजफ्फनगर एसएसपी इलाहाबाद हाईकोर्ट में पेश हुए. उन्होंने हलफनामा दाखिल किया और अदालत को बताया कि याची का दावा सही नहीं है. याचिका में जो कहा गया है और समर्थन में जो कागजात लगाए गए हैं, उनमें विरोधाभास है.
इस पर कोर्ट ने याची के अधिवक्ता को जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया है. कोर्ट ने अगली सुनवाई पर डीजीपी को पेश होने से छूट दी. प्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कोर्ट को बताया कि याची ने जिन मुकदमों में खुद को बरी बताया है, दरअसल उनमें वो सजायाफ्ता है. याचिका में लगाए गए दस्तावेजों से ही यह पता चलता है. फर्जी मुकदमे दर्ज करने की बात मनगंढ़त है.
इससे पूर्व कोर्ट ने फर्जी मुकदमों को लेकर सख्त रुख अपनाया. कोर्ट ने पिछली सुनवाई में डीजीपी और मुजफ्फनगर एसएसपी को तलब किया था. कोर्ट ने कहा था कि यह केवल जमानत का मसला नहीं है, बल्कि अनुशासित पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर उठे सवालों के जवाब का है. कोर्ट ने कहा था कि हर आदमी के जीवन की कीमत समान है. बीता दिन लौट कर वापस नहीं आता. जीवन पर लगे दाग मुआवजे से धुल नहीं सकते.
कोर्ट ने कहा था पिछले 23 सालों में पुलिस ने याची पर 49 आपराधिक केस दर्ज किये. अधिकांश में वह बरी हो गया. कुछ में पुलिस ने गलती मानी और केस वापस ले लिया. मानवाधिकार आयोग ने भी पुलिस पर याची के पक्ष में दस हजार रुपए का हर्जाना लगाया था. कोर्ट के निर्देश पर याची का आपराधिक केस चार्ट पेश किया गया.
थाना कटौली में 49 केस दर्ज होने का खुलासा हुआ. याची का दावा था कि 45 मामलों में से 11 में वो बरी हो चुका है. 9 केस पुलिस ने वापस ले लिये. दो केस में गलती से शामिल किया गया. एक केस में एनएसए लगाया गया है, जो रद्द हो चुका है. 21 केस में वो जमानत पर है. एक में अग्रिम जमानत मिली हुई है. याची व उसकी पत्नी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को फर्जी केस में फंसाने की शिकायत की थी. इसकी जांच के बाद पुलिस पर हर्जाना लगाया गया था. मंगलवार को पुलिस ने याची की कहानी को मनगढ़ंत करार दिया.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप