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सुलतानपुर में इस बार टूट रहा जातीय समीकरण, अल्पसंख्यक वोटरों पर सबकी नजर

आम चुनाव एक ऐसा अवसर होता है जिसमें सत्तारूढ़ दल अपनी पांच साल की उपलब्धियों और भावी योजनाओं को जनता के बीच रखकर एक और जनादेश मांगता है. लेकिन इस चुनाव को बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक अथवा हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण पर जाते हुए देखा सकता है. एक नजर से इसे संसदीय लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत के तौर पर देखा जा सकता है.

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Published : May 10, 2019, 7:14 PM IST

सुलतानपुर में इस बार टूट रहा जातीय समीकरण

सुलतानपुर : लोकसभा चुनाव 2019 में जातीयता का मिथक टूट रहा है. भारतीय जनता पार्टी बनाम अल्पसंख्यक का मुकाबला राजनीतिक विज्ञान और साहित्यकार से जुड़े लोग मान रहे हैं. समय बदलने के साथ विकास और प्रत्याशी के क्षेत्रीयता मुद्दा बन रही है, लेकिन जातीय समीकरणों के टूटने से राजनीतिक रुझान भी बदलने लगे हैं. ऐसे में सुल्तानपुर का चुनाव बेहद दिलचस्प हो चला है. बुद्धिजीवियों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी के वोटर और अल्पसंख्यक के वोटरों के बीच यहां मतदान होना है.

मीडिया से बात करते हुए साहित्यकार राज खन्ना

भारतीय जनता पार्टी के विरोध में है अल्पसंख्यक
साहित्यकार राज खन्ना के अनुसार, अब जातीयता का विषय पुराना हो चला है.भारतीय जनता पार्टी के विरोध में अल्पसंख्यक है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के समर्थक और अल्पसंख्यकों की पार्टी के बीच मुकाबला देखा जा रहा है.सबसे ज्यादा निगाह अल्पसंख्यक मतों को लेकर है .माना जा रहा है कि अल्पसंख्यक मतों का रुझान ही निर्णायक होगा.

धर्म के मुद्दों को किनारे कर देश के लिए वोट करेंगे
कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक विज्ञान संस्थान की राजनीतिक विज्ञान की रंजना सिंह कहती हैं कि जातीयता वर्ग और धर्म के मुद्दों को किनारे कर कर लोग इस देश के लिए वोट करेंगे और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए. हम लोगों को जातीयता से कोई लेना देना नहीं होता.उन्हें अपने दैनिक उपयोग की चीजों से ही ज्यादा मतलब होता है. वह विकास चाहते हैं. राजनीतिक दल लोगों को दिग्भ्रमित करके जातीयता के भ्रम में उलझाते हैं लेकिन मतदाता अब जागरूक हो गया है. उसे इस सबसे अलग हटके व्यक्तिगत और राष्ट्र का विकास चाहिए.भारत में अपनी जाति बिरादरी वाली सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने का चलन नेताओं में देखा जाता है.


जातीयता का मुद्दा और समीकरण धीरे-धीरे पड़ने लगा है फीका

अब लोग जातीयता से अलग हटकर प्रत्याशी की अहमियत और उसके प्रभाव को मुद्दा बनाने लगे हैं. सुलतानपुर से एक तरफ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी मेनका गांधी हैं, जो कैबिनेट मंत्री रही हैं. लोगों का मानना है कि इस बार भाजपा विजयी रही तो उन्हें कोई बड़ा पद मिलेगा. सुल्तानपुर के लिए अच्छा होगा. दूसरी तरफ गठबंधन प्रत्याशी हैं जो काम कराने का दावा कर रहे हैं साथ ही भी स्थानीय हैं.

सुलतानपुर : लोकसभा चुनाव 2019 में जातीयता का मिथक टूट रहा है. भारतीय जनता पार्टी बनाम अल्पसंख्यक का मुकाबला राजनीतिक विज्ञान और साहित्यकार से जुड़े लोग मान रहे हैं. समय बदलने के साथ विकास और प्रत्याशी के क्षेत्रीयता मुद्दा बन रही है, लेकिन जातीय समीकरणों के टूटने से राजनीतिक रुझान भी बदलने लगे हैं. ऐसे में सुल्तानपुर का चुनाव बेहद दिलचस्प हो चला है. बुद्धिजीवियों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी के वोटर और अल्पसंख्यक के वोटरों के बीच यहां मतदान होना है.

मीडिया से बात करते हुए साहित्यकार राज खन्ना

भारतीय जनता पार्टी के विरोध में है अल्पसंख्यक
साहित्यकार राज खन्ना के अनुसार, अब जातीयता का विषय पुराना हो चला है.भारतीय जनता पार्टी के विरोध में अल्पसंख्यक है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के समर्थक और अल्पसंख्यकों की पार्टी के बीच मुकाबला देखा जा रहा है.सबसे ज्यादा निगाह अल्पसंख्यक मतों को लेकर है .माना जा रहा है कि अल्पसंख्यक मतों का रुझान ही निर्णायक होगा.

धर्म के मुद्दों को किनारे कर देश के लिए वोट करेंगे
कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक विज्ञान संस्थान की राजनीतिक विज्ञान की रंजना सिंह कहती हैं कि जातीयता वर्ग और धर्म के मुद्दों को किनारे कर कर लोग इस देश के लिए वोट करेंगे और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए. हम लोगों को जातीयता से कोई लेना देना नहीं होता.उन्हें अपने दैनिक उपयोग की चीजों से ही ज्यादा मतलब होता है. वह विकास चाहते हैं. राजनीतिक दल लोगों को दिग्भ्रमित करके जातीयता के भ्रम में उलझाते हैं लेकिन मतदाता अब जागरूक हो गया है. उसे इस सबसे अलग हटके व्यक्तिगत और राष्ट्र का विकास चाहिए.भारत में अपनी जाति बिरादरी वाली सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने का चलन नेताओं में देखा जाता है.


जातीयता का मुद्दा और समीकरण धीरे-धीरे पड़ने लगा है फीका

अब लोग जातीयता से अलग हटकर प्रत्याशी की अहमियत और उसके प्रभाव को मुद्दा बनाने लगे हैं. सुलतानपुर से एक तरफ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी मेनका गांधी हैं, जो कैबिनेट मंत्री रही हैं. लोगों का मानना है कि इस बार भाजपा विजयी रही तो उन्हें कोई बड़ा पद मिलेगा. सुल्तानपुर के लिए अच्छा होगा. दूसरी तरफ गठबंधन प्रत्याशी हैं जो काम कराने का दावा कर रहे हैं साथ ही भी स्थानीय हैं.

Intro:analytical political story
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लोकसभा चुनाव 2019 में जातीयता का मिथक टूट रहा है। भारतीय जनता पार्टी बनाम अल्पसंख्यक का मुकाबला राजनीतिक विज्ञान और साहित्यकार से जुड़े लोग मान रहे हैं। समय बदलने के साथ विकास और प्रत्याशी के क्षेत्रीयता मुद्दा बन रही है । लेकिन जातीय समीकरणों के टूटने से राजनीतिक रुझान भी बदलने लगे हैं । ऐसे में सुल्तानपुर का चुनाव बेहद दिलचस्प हो चला है। बुद्धिजीवियों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी के वोटर और अल्पसंख्यक के वोटरों के बीच यहां मतदान होना है।


Body:बाइट : साहित्यकार राज्य खन्ना कहते हैं कि अब जातीयता का विषय पुराना हो चला है । भारतीय जनता पार्टी के विरोध में अल्पसंख्यक है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के समर्थक और अल्पसंख्यकों की पार्टी के बीच मुकाबला देखा जा रहा है। सबसे ज्यादा निगाह अल्पसंख्यक मतों को लेकर है । माना जा रहा है कि अल्पसंख्यक मतों का रुझान ही निर्णायक होगा।


बाइट : कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक विज्ञान संस्थान की राजनीतिक विज्ञान प्रवक्ता रंजना सिंह कहती है कि जातीयता वर्ग और धर्म के मुद्दों को किनारे कर कर लोग इस देश के लिए वोट करेंगे और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए। हम लोगों को जातीयता से कोई लेना देना नहीं होता। उन्हें अपने दैनिक उपयोग की चीजों से ही ज्यादा मतलब होता है। वह विकास चाहते हैं। राजनीतिक दल लोगों को दिग्भ्रमित करके जातीयता के भ्रम में उलझा ते हैं। लेकिन मतदाता अब जागरूक हो गया है । उसे इस सबसे अलग हटके व्यक्तिगत और राष्ट्र का विकास चाहिए।


Conclusion:वॉइस ओवर : जातीयता का मुद्दा और समीकरण धीरे-धीरे फीका पड़ने लगा है। लोग जातीयता से अलग हटकर प्रत्याशी की अहमियत और उसके प्रभाव को मुद्दा बनाने लगे हैं । सुल्तानपुर से एक तरफ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी मेनका गांधी हैं । जो कैबिनेट मंत्री रही है। लोगों का मानना है कि इस बार भाजपा विजयी रही तो उन्हें कोई बड़ा पद मिलेगा। सुल्तानपुर के लिए अच्छा होगा। दूसरी तरफ गठबंधन प्रत्याशी हैं। जो काम कराने का दावा कर रहे हैं, स्थानीय हैं।



आशुतोष मिश्रा सुल्तानपुर 94 15049 256
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