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सहरी के लिए आज भी जिंदा है बरसों पुरानी यह रवायत

बरेली शहर में रमजान के पाक महीने की रौनक देखते ही बनती है. यहां एक तरफ शाम-ए-गुलज़ार होती है तो वहीं दूसरी तरफ लोगों को सहरी के लिए जगाने के लिए पुरानी रवायत और खास अंदाज को कुछ लोगों ने आज भी जिंदा रखा हुआ है.

रमजान पर पुरानी परंपरा
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Published : May 18, 2019, 9:57 AM IST

बरेली: पहले मोबाइल और अलार्म घड़ियां नहीं होती थीं, ऐसे में रोजेदारों को सहरी के लिए उठाने के लिए रात में लगभग 2 बजे कुछ लोग ढोल नगाड़े लेकर दरवाजे-दरवाज़े जाते थे.

ढोल नगाड़े बजाकर लोगों को जगाया जाता है.

आज भी जिंदा है खास अंदाज और पुरानी रवायत

  • बरसों पुरानी इस रवायत को बरेली शहर में कुछ परिवारों ने आज भी जिंदा रखा हुआ है.
  • यह लोग रमजान की रातों में सहरी के वक्त हाथों में ढोल लेकर गली-गली निकलते हैं.
  • इसके साथ-साथ लोगों को जगाने के लिए आवाजें भी लगाते हैं.
  • ऐसे ही एक लोग से बात की गई तो उन्होंने बताया कि रमज़ान के पाक महीने में अल्लाह खुश होते हैं.
  • हमें इसके लिए कोई मेहनताना नहीं मिलता है.
  • इसे तो बस समाज सेवा के तौर पर करते हैं.
  • ढोल-नगाड़े बजाने वालों ने बताया कि कुछ लोग ईद के मौके पर ईदी जरूर देते हैं.
  • ऐसे लोगों को कुछ लोग ढोकदार भी कहकर बुलाते हैं.

बरेली: पहले मोबाइल और अलार्म घड़ियां नहीं होती थीं, ऐसे में रोजेदारों को सहरी के लिए उठाने के लिए रात में लगभग 2 बजे कुछ लोग ढोल नगाड़े लेकर दरवाजे-दरवाज़े जाते थे.

ढोल नगाड़े बजाकर लोगों को जगाया जाता है.

आज भी जिंदा है खास अंदाज और पुरानी रवायत

  • बरसों पुरानी इस रवायत को बरेली शहर में कुछ परिवारों ने आज भी जिंदा रखा हुआ है.
  • यह लोग रमजान की रातों में सहरी के वक्त हाथों में ढोल लेकर गली-गली निकलते हैं.
  • इसके साथ-साथ लोगों को जगाने के लिए आवाजें भी लगाते हैं.
  • ऐसे ही एक लोग से बात की गई तो उन्होंने बताया कि रमज़ान के पाक महीने में अल्लाह खुश होते हैं.
  • हमें इसके लिए कोई मेहनताना नहीं मिलता है.
  • इसे तो बस समाज सेवा के तौर पर करते हैं.
  • ढोल-नगाड़े बजाने वालों ने बताया कि कुछ लोग ईद के मौके पर ईदी जरूर देते हैं.
  • ऐसे लोगों को कुछ लोग ढोकदार भी कहकर बुलाते हैं.
Intro:बरेली। वैसे तो रमज़ान में रौनक अपने आप में होती है लेकिन बरेली शहर में इस पाक महीने की रौनक देखते ही बनती है। यहां एक तरफ शाम-ए-गुलज़ार होती है वहीं दूसरी तरफ रात में लोगों को सहरी के लिए जगाने के लिए पुरानी परंपरा को यहां के कुछ लोगों ने आज भी जिंदा रखा हुआ है।


Body:ढोल-नगाड़े से जगाते हैं रोज़ेदारों को

बात अगर पुराने जमाने की करें तो पहले मोबाइल और अलार्म घड़ियां नहीं होती थीं। लोग रोज़ा भी रखते थे। ऐसे रोज़ेदारों को सहरी के लिए उठाने को रात में लगभग 2 बजे कुछ लोग ढोल नगाड़े लेकर दरवाजे-दरवाज़े जाते थे।

आज भी जिंदा है पुरानी परंपरा

पुरानी बरसों की इस परंपरा को बरेली शहर में कुछ परिवारों ने आज भी जिंदा रखा हुआ है। यह लोग रमज़ान की रातों में सहरी के वक़्त हाथों में ढोल लेकर गली-गली निकलते हैं। इसके साथ-साथ लोगों को जगाने के लिए आवाज़े भी लगाते हैं।

नहीं मिलता कोई मेहनताना

ऐसे ही एक लोग से बात की गई तो उन्होंने बताया कि रमज़ान के पाक महीने में अल्लाह खुश होता है। हमें इसके लिए कोई मेहनताना नहीं मिलता है। इसे तो बस समाज सेवा के तौर पर करते हैं।

ईद पर मिल जाती है ईदी

ढोल-नगाड़े बजाने वालों ने खुश होकर बताया कि कुछ लोग ईद के मौके पर ईदी ज़रूर देते हैं। उन्होंने बताया कि दिन में यह लोग अपना काम करते हैं और रात में सहरी के लिए लोगों को उठाने का काम भी करते हैं। ऐसे लोगों को कुछ लोग ढोकदार भी कहकर बुलाते हैं।




Conclusion:रमज़ान के पाक महीने में खुदा की इबादत की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि खुदा इन दिनों में सबकी दुआ क़बूल करता है।

अनुराग मिश्र
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name: Story on Ramzaan
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