महराजगंज : तराई क्षेत्र होने के कारण जिले की मिट्टी को गन्ना पैदावार के लिए वरदान माना जाता है. पूर्व के गन्ना लैंड को एक जमाने में चीनी का कटोरा कहा जाता था, जहां जिले की चार-चार चीनी मिलों की हुंकार यहां की फिजाओं में भी मिठास घोल देती थी. आज की स्थिति यह है कि बदलते दौर के साथ जिले की चार चीनी मिलों गडौरा, सिसवा, घुघली, फरेंदा में से एकमात्र सिसवा चीनी मिल चालू हालत में है, बाकी तीन मिले बंद हैं.
किसानों ने बयां किया दर्द
- स्थानीय गन्ना किसान अपनी बदहाली बयां करते हुए कहते-फिरते हैं कि उनकी रोजी-रोटी घर-बार गन्ना की फसल पर निर्भर है, जिस पर किसी की नजर लग गई है.
- यह बात स्वाभाविक भी क्योंकि फसल चार्ट में गन्ना को नकदी फसल का तमगा प्राप्त है.
- इन किसानों का कहना है कि उनकी फसल का कोई खरीदार नहीं है.
- गन्ने की लहराती फसल सूखने के कगार पर जा पहुंची है.
- किसानों को औने-पौने दाम में गन्ने की खड़ी फसल का निपटारा करना पड़ता है.
- इन सबके बावजूद सरकारी बेरुखी का आलम यह है कि इन किसानों को अपने पैसों के भुगतान के लिए बरसों इंतजार भी झेलना पड़ता है.
- सूबे में जब योगी सरकार बनी थी, तब 14 दिन के भीतर गन्ना किसानों का बकाया भुगतान करने का एलान किया गया.
- इस सरकारी एलान के 14 महीने बीत जाने के बाद भी कोई अमल नहीं हुआ और किसानों का गन्ने का मूल्य अभी भी बकाया है.