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उन्नाव: जिला महिला अस्पताल में नहीं रुक रहा नवजातों की मौत का सिलसिला

जिले के महिला अस्पताल में नवजातों की मौत का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है. वहीं इस मामले पर जिला अस्पताल के सीएमएस ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि अस्पताल में जो मौतें हुई हैं, उनमें से ज्यादातर मामले प्राइवेट अस्पताल से रेफर किए हुए हैं.

महिला अस्पताल में होने वाली मौतों की जिम्मेदारी खुद लेने से बचती नजर आई महिला सीएमएस
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Published : May 26, 2019, 12:44 PM IST

Updated : May 26, 2019, 12:54 PM IST

उन्नाव: जिले के महिला अस्पताल में एसएनसीयू (सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट) में भर्ती नवजातों की मौत का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है और बीते चार माह में 50 नवजातों की सांस थम चुकी है. वहीं प्रसव के दौरान 18 बच्चों की मौत हुई है. इस तरह चार माह में महिला अस्पताल में 68 नवजात अलग-अलग कारणों से दुनिया में आने के साथ ही मौत के मुंह में समा चुके हैं.

जिला महिला अस्पताल में 68 नवजातों की मौत का मामला.

जानिए क्या है पूरा मामला

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने नवजात बच्चों के बेहतर इलाज के लिए महिला जिला अस्पताल में एसएनसीयू खोल रखा है.
  • यहां तीन नर्सों की तैनाती भी की गई है और जीवन रक्षक उपकरण के साथ ही दवाएं भी उपलब्ध हैं.
  • नवजातों की देखरेख के लिए दो बाल रोग विशेषज्ञ महिला अस्पताल में नियुक्त हैं.
  • इन व्यवस्थाओं के बाद भी 1 जनवरी से 30 अप्रैल तक 4 माह में 50 बच्चों की इलाज के दौरान मौत हो चुकी है.
  • वहीं दूसरी तरफ महिला अस्पताल में इसी अवधि में प्रसव के दौरान 18 बच्चों की मौत हो चुकी है.
  • इनमें कुछ बच्चे मृत पैदा होने वाले या फिर जन्म के कुछ देर बाद ही मौत का मुंह देख चुके हैं.
  • वहीं मौतों को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने के बजाय अस्पताल प्रशासन इसे सामान्य हालात बता रहा है .
  • इसे लेकर जब ईटीवी भारत ने महिला जिला अस्पताल की सीएमएस अंजू दुबे से बातचीत की तो उन्होंने बच्चों की मौत की जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया.
  • वहीं उन्होंने बताया कि जिन बच्चों की डिलीवरी बाहर सीएचसी, पीएचसी और प्राइवेट अस्पतालों में होती है और उस अंतराल में जब केस बिगड़ जाता है तो यहां रेफर कर दिया जाता है, जिसके चलते ये आंकड़ा बढ़ गया है.

उन्नाव: जिले के महिला अस्पताल में एसएनसीयू (सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट) में भर्ती नवजातों की मौत का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है और बीते चार माह में 50 नवजातों की सांस थम चुकी है. वहीं प्रसव के दौरान 18 बच्चों की मौत हुई है. इस तरह चार माह में महिला अस्पताल में 68 नवजात अलग-अलग कारणों से दुनिया में आने के साथ ही मौत के मुंह में समा चुके हैं.

जिला महिला अस्पताल में 68 नवजातों की मौत का मामला.

जानिए क्या है पूरा मामला

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने नवजात बच्चों के बेहतर इलाज के लिए महिला जिला अस्पताल में एसएनसीयू खोल रखा है.
  • यहां तीन नर्सों की तैनाती भी की गई है और जीवन रक्षक उपकरण के साथ ही दवाएं भी उपलब्ध हैं.
  • नवजातों की देखरेख के लिए दो बाल रोग विशेषज्ञ महिला अस्पताल में नियुक्त हैं.
  • इन व्यवस्थाओं के बाद भी 1 जनवरी से 30 अप्रैल तक 4 माह में 50 बच्चों की इलाज के दौरान मौत हो चुकी है.
  • वहीं दूसरी तरफ महिला अस्पताल में इसी अवधि में प्रसव के दौरान 18 बच्चों की मौत हो चुकी है.
  • इनमें कुछ बच्चे मृत पैदा होने वाले या फिर जन्म के कुछ देर बाद ही मौत का मुंह देख चुके हैं.
  • वहीं मौतों को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने के बजाय अस्पताल प्रशासन इसे सामान्य हालात बता रहा है .
  • इसे लेकर जब ईटीवी भारत ने महिला जिला अस्पताल की सीएमएस अंजू दुबे से बातचीत की तो उन्होंने बच्चों की मौत की जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया.
  • वहीं उन्होंने बताया कि जिन बच्चों की डिलीवरी बाहर सीएचसी, पीएचसी और प्राइवेट अस्पतालों में होती है और उस अंतराल में जब केस बिगड़ जाता है तो यहां रेफर कर दिया जाता है, जिसके चलते ये आंकड़ा बढ़ गया है.
Intro:महिला अस्पताल के सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट एसएनसीयू में भर्ती बीमार नवजात की मौत का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है 4 माह में 50 नवजात की सांस थम चुकी है वहीं प्रसव के दौरान 18 बच्चों की मौत हुई है इस तरह 4 माह में महिला अस्पताल में 68 नवजात अलग-अलग कारणों से दुनिया में आने के साथ ही मौत के मुंह में समा चुके हैं।


Body:वहीं ईटीवी भारत के स्पेशल ऑपरेशन जिला अस्पताल ने जब यह खबर उठाई की जिला महिला चिकित्सालय बना मौत का अस्पताल तो अधिकारियों के हाथ पैर फूलने लगे वहीं महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ अंजू दुबे ने जिला अस्पताल में होने वाली मौतों की जिम्मेदारी खुद लेने से इंकार करते हुए उन्होंने बताया कि यहां पर जो मौतें हो रही हैं उनमें अहम कारण जिन बच्चों की डिलीवरी बाहर सीएचसी पीएचसी व प्राइवेट अस्पतालों में होती है वहीं जो केस बिगड़ जाता है तो उनको यहां रेफर कर दिया जाता है यदि वही डिलीवरी यहां जिला अस्पताल में हो तो शायद यह मौत का आंकड़ा और कम हो जाएगा लेकिन आपको बताना चाहूंगा जिला अस्पताल में 4 महीनों में प्रसव कक्ष में ही जनवरी फरवरी-मार्च व अप्रैल में क्रमशः5, 4 ,6 व 3 मौतें हो गई हैं आखिर इन मौतों की जिम्मेदारी कौन लेगा क्योंकि यह मौतें तो जिला अस्पताल के ही प्रसव कक्ष में हुई हैं।


Conclusion:राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने नवजात बच्चों के बेहतर इलाज के लिए महिला जिला अस्पताल में एसएनसीयू खोल रखा है यहां 3 रनों की तैनाती है जीवन रक्षक उपकरणों और दवाएं भी उपलब्ध है नवजात की देखरेख के लिए दो बाल रोग विशेषज्ञ महिला अस्पताल में है इन व्यवस्थाओं के बाद भी 1 जनवरी से 30 अप्रैल तक 4 माह में एसएनसीयू में 50 बच्चों की इलाज के दौरान मौत हो चुकी है वहीं दूसरी तरफ महिला अस्पताल में इसी अवधि में प्रसव के दौरान 18 बच्चों की मौत हो चुकी है इनमें मृत पैदा होने वाले या फिर जन्म के कुछ देर बाद मरने वाले बच्चे शामिल हैं मौतों को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने के बजाय अस्पताल प्रशासन इसे सामान्य ले रहा है सीएमएस का कहना है कि एसएनसीयू व प्रसव कक्ष में मरने वाले बच्चों में लगभग 35 दूसरे अस्पतालों से रिफर होकर आने वाले हैं।

वहीं मीडिया से बात करते हुए महिला जिला अस्पताल की सीएमएस डॉ अंजू दुबे ने बताया कि यह जो मौतें हैं बहुत कम है वहीं उन्होंने इन मौतों की मेन वजह अस्पताल में मशीनरी व स्वास्थ्य कर्मियों की कमी तथा दूसरे अस्पतालों से रिफर होकर जिला अस्पताल आने वाली महिलाएं जिनका प्रसव दूसरे अस्पतालों में हुआ है, है। वहीं इन मौतों की जिम्मेदारी से खुद साफ-साफ बचती नजर आयीं।

बाइट:--डॉ अंजू दुबे सीएमएस जिला महिला अस्पताल।
Last Updated : May 26, 2019, 12:54 PM IST

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