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अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाता है कुआनो नदी पर पंप

बलरामपुर और गोंडा जिले की सीमा का बंटवारा करने वाली कुआंनो नदी अपने आपमें इतिहास के कई पन्नों को समेटे हुए है. यहां पर बना एक पंप हाउस अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाता है. यह पम्प हॉउस उस समय 50 गावों की सिंचाई और पानी की जरूरतों को पूरा करता था.

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Published : Feb 24, 2019, 1:32 PM IST

अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाती कुआंनो नदी

बलरामपुर: बलरामजिलेका अपना एक बड़ा इतिहास है. बलरामपुर राजवंश अपनी दानशीलता के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है.लेकिन यहां पर अंग्रेजी शासन के द्वारा करवाए काम भी इतिहास की याद दिलातेहैं. बलरामपुरऔर गोंडा जिले की सीमा का बंटवारा करने वाली कुआंनो नदीपर बना एक पंप हाउस अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाता है.यह पम्प हॉउस उस समय 50 गावों की सिंचाई और पानी की जरूरतों को पूरा करता था.

कुआंनो नदी का इतिहास, अंग्रेजों ने बनाया था खास


इस नदी की सबसे खास बात यह है कि इस काजल कभी सूखता नहीं है.यह हमेशा कल कल बहती रहती है.कभी फसलों की प्यास बुझाती है तो कभी लोगों की प्यास बुझाती है.यही पर बना है एक पंप हॉउस, जो अंग्रेजी जमाने की याद दिलाता.लेकिन मौजूदा पीढ़ी को इसका इल्म ही नहीं है. अंग्रेजी हुकूमत के दौरानकुआंनो नदी से एक 12 कमरों वाले पम्प हाउस का निर्माण करवाया गया था.साल 1931 में अंग्रेजी सरकार द्वारा शुरू किए गए इस पंप हाउस का निर्माण साल 1934 में बंद कर पूरा हुआ.

इंग्लैंड के इंजीनियरों ने किसानों तक पानी पहुंचाने के लिए कई टन, लोहे के पाइप, ट्रांसफार्मर, ऑपरेटिंग मशीन समेत अन्य संयंत्रों से भवनों को लैस करवायाथा. गांवों तक पानी को पहुंचाने के लिए पाइप लाइन बिछाई गई और नालियों का निर्माण करवाया गया. अब यह भवन खंडहर बन चुका है और अधिकांश संयंत्र व चीजें चोरी हो चुकी हैं.लेकिन नदी में पाइप अभी भी पड़ी हुई है.

एक नवयुवक ने बताया कि हमारे बाबा वगैरह इस बारे में बात तो किया करते थे.लेकिन पंप हाउस पर एक दो बार ही आना हुआ.इस पंप के द्वारा सिंचाई की बात कही जाती है.लेकिन जब से हम बड़े हुए हैं तब से यह बंद ही रहा है.

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बलरामपुर: बलरामजिलेका अपना एक बड़ा इतिहास है. बलरामपुर राजवंश अपनी दानशीलता के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है.लेकिन यहां पर अंग्रेजी शासन के द्वारा करवाए काम भी इतिहास की याद दिलातेहैं. बलरामपुरऔर गोंडा जिले की सीमा का बंटवारा करने वाली कुआंनो नदीपर बना एक पंप हाउस अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाता है.यह पम्प हॉउस उस समय 50 गावों की सिंचाई और पानी की जरूरतों को पूरा करता था.

कुआंनो नदी का इतिहास, अंग्रेजों ने बनाया था खास


इस नदी की सबसे खास बात यह है कि इस काजल कभी सूखता नहीं है.यह हमेशा कल कल बहती रहती है.कभी फसलों की प्यास बुझाती है तो कभी लोगों की प्यास बुझाती है.यही पर बना है एक पंप हॉउस, जो अंग्रेजी जमाने की याद दिलाता.लेकिन मौजूदा पीढ़ी को इसका इल्म ही नहीं है. अंग्रेजी हुकूमत के दौरानकुआंनो नदी से एक 12 कमरों वाले पम्प हाउस का निर्माण करवाया गया था.साल 1931 में अंग्रेजी सरकार द्वारा शुरू किए गए इस पंप हाउस का निर्माण साल 1934 में बंद कर पूरा हुआ.

इंग्लैंड के इंजीनियरों ने किसानों तक पानी पहुंचाने के लिए कई टन, लोहे के पाइप, ट्रांसफार्मर, ऑपरेटिंग मशीन समेत अन्य संयंत्रों से भवनों को लैस करवायाथा. गांवों तक पानी को पहुंचाने के लिए पाइप लाइन बिछाई गई और नालियों का निर्माण करवाया गया. अब यह भवन खंडहर बन चुका है और अधिकांश संयंत्र व चीजें चोरी हो चुकी हैं.लेकिन नदी में पाइप अभी भी पड़ी हुई है.

एक नवयुवक ने बताया कि हमारे बाबा वगैरह इस बारे में बात तो किया करते थे.लेकिन पंप हाउस पर एक दो बार ही आना हुआ.इस पंप के द्वारा सिंचाई की बात कही जाती है.लेकिन जब से हम बड़े हुए हैं तब से यह बंद ही रहा है.

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Intro:बलरामपुर जिले का अपना एक वृहद इतिहास है। बलरामपुर राजवंश अपनी दानशीलता के लिए पूरे देश सुप्रसिद्ध है। लेकिन यहां पर अंग्रेजी शासन के द्वारा करवाए काम भी इतिहास की याद दिलाता है।
बलरामपुर जिले और गोंडा जिले की सीमा का बंटवारा करने वाली कुआंनो नदी अपने आपमें इतिहास के कई पन्नों को समेटे हुए है। यहां पर बना एक पंप हाउस अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाता है। यह पम्प हॉउस उस समय 50 गावों की सिंचाई और पानी की जरूरतों को पूरा करता था।


Body:बलरामपुर गोंडा की सीमा को विभाजित करने वाली कुआनो नदी अपने आप में इतिहास के कई पन्नों को समेटे हुए है। इस नदी की सबसे खास बात यह है कि इस काजल कभी सूखता नहीं है। यह हमेशा कल कल बहती रहती है। कभी फसलों की प्यास बुझाती है तो कभी लोगों की प्यास बुझाती है। यही पर बना है एक पंप हॉउस, जो अंग्रेजी जमाने की याद दिलाता। लेकिन मौजूदा पीढ़ी को इसका इल्म ही नहीं है।अंग्रेजी जमाने में कुआंनो नदी से एक 12 कमरों वाले पम्प हाउस का निर्माण करवाया गया था। साल 1931 में अंग्रेजी सरकार द्वारा शुरू किए गए इस पंप हाउस का निर्माण साल 1934 में बंद कर पूरा हुआ। इंग्लैंड के इंजीनियरों ने किसानों तक पानी पहुंचाने के लिए कई टन, लोहे के पाइप, ट्रांसफार्मर, ऑपरेटिंग मशीन समेत अन्य संयंत्रों से भवनों को लैस करवाया गया था। गांवों तक पानी को पहुंचाने के लिए पाइप लाइन बिछाई गई और नालियों का निर्माण करवाया गया।
भवन खंडहर बन चुका है और अधिकांश संयंत्र व चीजें चोरी हो चुकी हैं। लेकिन नदी में पाइप अभी भी पड़ी हुई है और पंप हाउस के अवशेष पर लगी इंग्लैंड की मोहर अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाती है।


Conclusion:जिले के बालापुर में बने पंप हाउस के द्वारा लुचईया, सिरसिया, रामनगरा, खैराहनी, सिंगाही, रामपुर, खगईजोत तरावा जमुनाहा, दूल्हापुर, जोरावरपुर, सिरसिया समेत अन्य कई गांवों को सिंचाई की व्यवस्था से आच्छादित शाम दिन किया गया था। अंग्रेजी सरकार की सोच थी कि किसानों को यदि बेहतर सिंचाई की व्यवस्था मिल जाए तो वह अधिक अन्न का उत्पादन कर सकते हैं।
हमसे बात करते हुए बालापुर के एक नवयुवक ने बताया कि हमारे बाबा वगैरह इस बारे में बात तो किया करते थे। लेकिन पंप हाउस पर एक दो बार ही आना हुआ। इस पंप के द्वारा सिंचाई की बात कही जाती है। लेकिन जब से हम बड़े हुए हैं तब से यह बंद ही रहा है।
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