अलीगढ़: 1945 में बना तस्वीर महल सिनेमा हॉल दशकों तक न सिर्फ लोगों का मनोरंजन कराया बल्कि शहर में आए नए लोगों के लिए एक लैंडमार्क भी बन गया था. समय के साथ भारतीय सिनेमा की स्थिति बदली और मल्टीप्लेक्स के जमाने में तस्वीर जैसे सिनेमा हॉल जैसे हॉल बीते जमाने की बात हो गए. लिहाजा अलीगढ़ का मशहूर तस्वीर सिनेमा अब शॉपिंग मॉल में बदल जाएगा.
बंद होने के बाद अब तक यह सिनेमा हॉल करीब 7 बार बिक चुके इस सिनेमा हॉल की शुरुआत नवाब तुफ़ैल अहमद साहब ने की थी. जो इस सिनेमा हॉल के फाउंडर थे. अब इस सिनेमा हॉल की इमारत जर्जर हो गई है. सिंगल स्क्रीन सिनेमा के स्वर्ण काल में यह सिनेमा घर कभी शहर की शान होती थी और अनूपशहर रोड पर बने चौराहे की पहचान माना जाता था. तस्वीर महल सिनेमा हॉल सात दशक से ज्यादा पुराना है.
शहर की शान अब बनेगा कामर्शियल कॉम्प्लेक्स
- 1945 में बने "तस्वीर महल सिनेमा हॉल" की पहचान अब बदलने वाली है.
- आजादी से पहले बने तस्वीर महल सिनेमा हॉल को तोड़कर अब मल्टी शॉपिंग सेंटर बनेगा.
- इस सिनेमा हॉल की शुरुआत नवाब तुफ़ैल अहमद साहब ने की थी, जो इस सिनेमा हॉल के फाउंडर थे .
- कहा जाता है कि इसमें स्क्रीन के सामने चेयर इस तरह लगाई गई थी कि कहीं भी दर्शक बैठ जाए उसे स्क्रीन का व्यू एक जैसा देखेने को मिलता है.
- तस्वीर महल अलीगढ़ का पहला सिनेमा हॉल था जहां फैमिली बॉक्स में बैठकर परिवार के लोग फिल्म का आनंद ले सकते थे.
कहा जाता है कि इसमें स्क्रीन के सामने चेयर इस तरह लगाई गई थी कहीं भी दर्शक बैठ जाए. उसे स्क्रीन का व्यू एक जैसा देखेने को मिलता है. सिनेमा हॉल में सबसे पहले परिवार को एक साथ देखने के लिए यहां फैमिली बॉक्स बनाया गया था. तस्वीर महल पहला सिनेमा हॉल है जहां फैमिली बॉक्स में बैठकर परिवार के लोग फिल्म का आनंद ले सकते थे . अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हजारों छात्रों की यादों में तस्वीर महल सिनेमा हॉल बसता है.
इस सिनेमा हॉल के करीब में ढाबा भी बना है. जहां छात्र भोजन के बाद फिल्म भी देखते थे. यहां एक से एक हिट फिल्मों का प्रदर्शन किया गया. मुग़ल-ए-आज़म , बॉबी जैसे बड़े बड़े बैनर की फिल्में यहां लगती थी. कहा जाता है कि जिस समय बॉबी फिल्म रिलीज हो रही थी, सबसे पहले प्रिंट अलीगढ़ आया था और दिल्ली से लोग फिल्म को देखने के लिए आये थे . उस समय 100 रुपये में फिल्म के ब्लैक में टिकट बिके थे. वही दिलीप कुमार की हिट फिल्में यहां लगती थी.
जब प्यार किसी से होता है (1961), चौदहवीं का चांद (1960), जंगली (1961), दो बदन (1966), घुंघट (1960), खिलौना (1970), हमसे बढ़कर कौन (1981), गाइड (1965), दीवार (1975) , बॉबी (1973) यह वो तमाम फिल्में है जिनके शो हाउसफुल होते थे. इस सिनेमाघर को खरीदने वाले शाहनवाज का कहना है कि टैक्स में रियायत नहीं होने से नुकसान हुआ है और पिक्चर हॉल बंद हो गया. वहीं तकनीक का विस्तार हो गया. घरों में डिश टीवी, लैपटॉप, मोबाइल आ गए . लेकिन सिनेमा हॉल वही का वही इस्टैबलिश्ड है. फिल्म का प्रिंट महंगा होता है. लेकिन इसमें कोई रियायत नहीं मिलती. सरकार नर्सिंग होम, पेट्रोल पंप को सुविधा देती है . लेकिन सिनेमाघरों को कभी कोई सुविधा नहीं दी गई . इसलिए सिनेमा हॉल बंद करना पड़ा. शाहनवाज ने बताया कि यह जगह बहुत कीमती है . सिनेमा हॉल से भविष्य नहीं चल पाएगा. इसलिए अब यहां कमर्शियल कंपलेक्स बनाने का प्रोजेक्ट है . लेकिन इस काम्प्लेक्स में मिनी थिएटर जरूर बनाएंगे.