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गोरखपुर जेल में मनाई गई पंडित 'राम प्रसाद बिस्मिल' की जयंती

भारतीय क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल की 123वीं जयंती 11 जून को गोरखपुर जेल में मनाई गई. वो क्रांतिकारी के अलावा बेहतरीन लेखक भी थे. इतिहासरों के अनुसार अपनी लिखी किताबों से उन्होंने धन कमाया और फिर उससे क्रांति के लिए हथियार खरीदे थे.

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Published : Jun 11, 2020, 1:12 PM IST

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क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल की 123 वीं जयंती मनाई गई.

गोरखपुर: अखिल भारतीय क्रांतिकारी संघर्ष मोर्चा और गुरुकृपा संस्थान के बैनर तले गुरुवार को बलिदान स्थल मण्डलीय कारागार में पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की 123वीं जयंती मनायी गई. रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 1897 में आज के ही दिन 11 जून को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था. उनकी माता का नाम मूलारानी और पिता का मुरलीधर था.

क्रांति की प्रेरणास्थल है गोरखपुर जेल

गुरु कृपा संस्था के अध्यक्ष बृजेश राम त्रिपाठी ने बिस्मिल की मूर्ति की साफ-सफाई कर दीप जलाया और आरती की. उन्होंने कहा कि गोरखपुर जेल क्रांति की प्रेरणास्थल है. आजादी की ज्योति यहीं से होकर निकलती है. उन्होंने कहा कि ‘बिस्मिल’ से मिलने गोरखपुर जेल पहुंचीं उनकी मां ने डबडबाई आंखें देखकर उनसे पूछा था कि अगर ‘तुझे रोकर ही फांसी चढ़ना था तो क्रांति की राह क्यों चुनी.

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गोरखपुर जेल में रामप्रसाद बिस्मिल की प्रतिमा.

राम और अज्ञात के नाम से विख्यात थे बिस्मिल

अंग्रेजों ने ऐतिहासिक काकोरी कांड में मुकदमे के नाटक के बाद 19 दिसंबर 1927 को उन्हें गोरखपुर जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था, लेकिन बहुत कम ही लोग जानते हैं कि इस सरफरोश क्रांतिकारी के बहुआयामी व्यक्तित्व में संवेदशील कवि, शायर, साहित्यकार और इतिहासकार के साथ एक बहुभाषी अनुवादक का भी निवास था. लेखन और कविकर्म के लिए ‘बिस्मिल’ के अलावा दो और उपनाम थे- ‘राम’ और ‘अज्ञात’. उनके 30 साल के जीवनकाल में 11 पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें से सभी किताबों को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया.

इतिहासकारों के मुताबिक बिस्मिल’ के क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत 1913 में अपने समय के आर्य समाज और वैदिक धर्म के प्रमुख प्रचारकों में एक भाई परमानंद की गिरफ्तारी और प्रसिद्ध गदर षड्यंत्र मामले में फांसी की सजा के बाद हुई. साथ ही ब्रिटिश साम्राज्य के समूल विनाश की प्रतिज्ञा कर I WISH DOWN FALL OF THE BRITISH UMPAIRE क्रांतिकारी बनने का फैसला कर लिया. इसके लिए उन्होंने जरूरी हथियार अपनी पुस्तकों की बिक्री से प्राप्त रुपये से ही खरीदे थे.

गोरखपुर: अखिल भारतीय क्रांतिकारी संघर्ष मोर्चा और गुरुकृपा संस्थान के बैनर तले गुरुवार को बलिदान स्थल मण्डलीय कारागार में पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की 123वीं जयंती मनायी गई. रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 1897 में आज के ही दिन 11 जून को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था. उनकी माता का नाम मूलारानी और पिता का मुरलीधर था.

क्रांति की प्रेरणास्थल है गोरखपुर जेल

गुरु कृपा संस्था के अध्यक्ष बृजेश राम त्रिपाठी ने बिस्मिल की मूर्ति की साफ-सफाई कर दीप जलाया और आरती की. उन्होंने कहा कि गोरखपुर जेल क्रांति की प्रेरणास्थल है. आजादी की ज्योति यहीं से होकर निकलती है. उन्होंने कहा कि ‘बिस्मिल’ से मिलने गोरखपुर जेल पहुंचीं उनकी मां ने डबडबाई आंखें देखकर उनसे पूछा था कि अगर ‘तुझे रोकर ही फांसी चढ़ना था तो क्रांति की राह क्यों चुनी.

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गोरखपुर जेल में रामप्रसाद बिस्मिल की प्रतिमा.

राम और अज्ञात के नाम से विख्यात थे बिस्मिल

अंग्रेजों ने ऐतिहासिक काकोरी कांड में मुकदमे के नाटक के बाद 19 दिसंबर 1927 को उन्हें गोरखपुर जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था, लेकिन बहुत कम ही लोग जानते हैं कि इस सरफरोश क्रांतिकारी के बहुआयामी व्यक्तित्व में संवेदशील कवि, शायर, साहित्यकार और इतिहासकार के साथ एक बहुभाषी अनुवादक का भी निवास था. लेखन और कविकर्म के लिए ‘बिस्मिल’ के अलावा दो और उपनाम थे- ‘राम’ और ‘अज्ञात’. उनके 30 साल के जीवनकाल में 11 पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें से सभी किताबों को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया.

इतिहासकारों के मुताबिक बिस्मिल’ के क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत 1913 में अपने समय के आर्य समाज और वैदिक धर्म के प्रमुख प्रचारकों में एक भाई परमानंद की गिरफ्तारी और प्रसिद्ध गदर षड्यंत्र मामले में फांसी की सजा के बाद हुई. साथ ही ब्रिटिश साम्राज्य के समूल विनाश की प्रतिज्ञा कर I WISH DOWN FALL OF THE BRITISH UMPAIRE क्रांतिकारी बनने का फैसला कर लिया. इसके लिए उन्होंने जरूरी हथियार अपनी पुस्तकों की बिक्री से प्राप्त रुपये से ही खरीदे थे.

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