लखनऊ : अक्सर छोटी सी चोट लगने पर भी हम काफी परेशान हो जाते हैं और उसे जल्द ठीक करने के लिए हर जतन कर डालते हैं, लेकिन कुछ जख्म ऐसे भी होते हैं जिनके घाव न तो शारीरिक रूप से भर पाते हैं और न ही मानसिक रूप से . वहीं राजधानी लखनऊ में एक जगह ऐसी भी है जहां एसिड अटैक से पीड़ित महिलाएं जिंदगी से एक बार हारकर उसे दोबारा जीने का जज्बा सीखा रही हैं.
हम बात कर रहे हैं गोमती नगर स्थित शीरोज हैंग आउट कैफे की. यहां एसिड एटैक से पीड़ित महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी होकर जिंदगी जीने का एक अलग ही नजरिया सिखा रही हैं. यह एक ऐसी जगह है जो एसिड अटैक पीड़ित महिलाओं द्वारा चलाई जाती है. इस कैफे में स्वागत से लेकर खाने की टेबल तक आपको एसिड अटैक पीड़ित महिलाएं ही अपने आसपास नजर आएंगी.
परिवार की आर्थिक मदद में हाथ बंटा रही हाथ
छांव फाउंडेशन द्वारा शुरू की गई इस मुहिम में एसिड अटैक पीड़िताएं ही मुख्य भूमिका निभाती हैं. शीरोज हैंग आउट कैफे को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन शुरू किया गया था. 8 मार्च 2016 को शुरू हुए इस कैफे में 12 एसिड अटैक पीड़िताएं काम करती हैं. कैफे की मदद से यह महिलाएं न केवल पैसे कमा रही हैं बल्कि अपने परिवार की मदद भी कर रही हैं.
हौसलों को देख विजिटर्स भी करते हैं सलाम
शीरोज हैंग आउट कैफे में आने वाले विजिटर्स के मुताबिक यह कैफे उन्हें प्रोत्साहन देता है. उनका कहना है कि इस कैफे में काम कर रहीं एसिड अटैक पीड़िताओं के हौसले उन्हें जिंदगी जीने का एक नया नजरिया भी सिखा रही हैं.
छांव फाउंडेशन की मुहिम से मिली नई दिशा
छांव फाउंडेशन के संस्थापक लोक दीक्षित का कहना है कि एसिड अटैक होने के बाद इन महिलाओं की जिंदगी लगभग खत्म हो जाती है. इसके बाद इन्हें समाज से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता और न ही इनकी शक्ल कोई देखना पसंद करता है. ऐसे में जरूरी है कि इनके अंदर दोबारा आत्मविश्वास पैदा करना. उन्होंने बताया कि इन पीड़िताओं को सहारा देने के उद्देश्य से उन्होंने इस कैफे की नींव डाली.