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लखनऊ: जिंदगी जीने का अलग नजरिया सीखा रहीं एसिड अटैक से प्रभावित महिलाएं - acid attack

लखनऊ के गोमती नगर स्थित शीरोज हैंग आउट कैफे में एसिड एटैक पीड़ित महिलाएं लोगों को जिंदगी जीने का अलग नजरिया सिखा रही हैं. इस कैफे में कुल 12 एसिड पीड़िताएं काम करती हैं.

जीने का अलग नजरिया सिखा रहीं एसिड पीड़िताएं.
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Published : Mar 8, 2019, 6:07 PM IST

लखनऊ : अक्सर छोटी सी चोट लगने पर भी हम काफी परेशान हो जाते हैं और उसे जल्द ठीक करने के लिए हर जतन कर डालते हैं, लेकिन कुछ जख्म ऐसे भी होते हैं जिनके घाव न तो शारीरिक रूप से भर पाते हैं और न ही मानसिक रूप से . वहीं राजधानी लखनऊ में एक जगह ऐसी भी है जहां एसिड अटैक से पीड़ित महिलाएं जिंदगी से एक बार हारकर उसे दोबारा जीने का जज्बा सीखा रही हैं.

जीने का अलग नजरिया सिखा रहीं एसिड पीड़िताएं.

हम बात कर रहे हैं गोमती नगर स्थित शीरोज हैंग आउट कैफे की. यहां एसिड एटैक से पीड़ित महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी होकर जिंदगी जीने का एक अलग ही नजरिया सिखा रही हैं. यह एक ऐसी जगह है जो एसिड अटैक पीड़ित महिलाओं द्वारा चलाई जाती है. इस कैफे में स्वागत से लेकर खाने की टेबल तक आपको एसिड अटैक पीड़ित महिलाएं ही अपने आसपास नजर आएंगी.

परिवार की आर्थिक मदद में हाथ बंटा रही हाथ

छांव फाउंडेशन द्वारा शुरू की गई इस मुहिम में एसिड अटैक पीड़िताएं ही मुख्य भूमिका निभाती हैं. शीरोज हैंग आउट कैफे को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन शुरू किया गया था. 8 मार्च 2016 को शुरू हुए इस कैफे में 12 एसिड अटैक पीड़िताएं काम करती हैं. कैफे की मदद से यह महिलाएं न केवल पैसे कमा रही हैं बल्कि अपने परिवार की मदद भी कर रही हैं.

हौसलों को देख विजिटर्स भी करते हैं सलाम

शीरोज हैंग आउट कैफे में आने वाले विजिटर्स के मुताबिक यह कैफे उन्हें प्रोत्साहन देता है. उनका कहना है कि इस कैफे में काम कर रहीं एसिड अटैक पीड़िताओं के हौसले उन्हें जिंदगी जीने का एक नया नजरिया भी सिखा रही हैं.

छांव फाउंडेशन की मुहिम से मिली नई दिशा

छांव फाउंडेशन के संस्थापक लोक दीक्षित का कहना है कि एसिड अटैक होने के बाद इन महिलाओं की जिंदगी लगभग खत्म हो जाती है. इसके बाद इन्हें समाज से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता और न ही इनकी शक्ल कोई देखना पसंद करता है. ऐसे में जरूरी है कि इनके अंदर दोबारा आत्मविश्वास पैदा करना. उन्होंने बताया कि इन पीड़िताओं को सहारा देने के उद्देश्य से उन्होंने इस कैफे की नींव डाली.

लखनऊ : अक्सर छोटी सी चोट लगने पर भी हम काफी परेशान हो जाते हैं और उसे जल्द ठीक करने के लिए हर जतन कर डालते हैं, लेकिन कुछ जख्म ऐसे भी होते हैं जिनके घाव न तो शारीरिक रूप से भर पाते हैं और न ही मानसिक रूप से . वहीं राजधानी लखनऊ में एक जगह ऐसी भी है जहां एसिड अटैक से पीड़ित महिलाएं जिंदगी से एक बार हारकर उसे दोबारा जीने का जज्बा सीखा रही हैं.

जीने का अलग नजरिया सिखा रहीं एसिड पीड़िताएं.

हम बात कर रहे हैं गोमती नगर स्थित शीरोज हैंग आउट कैफे की. यहां एसिड एटैक से पीड़ित महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी होकर जिंदगी जीने का एक अलग ही नजरिया सिखा रही हैं. यह एक ऐसी जगह है जो एसिड अटैक पीड़ित महिलाओं द्वारा चलाई जाती है. इस कैफे में स्वागत से लेकर खाने की टेबल तक आपको एसिड अटैक पीड़ित महिलाएं ही अपने आसपास नजर आएंगी.

परिवार की आर्थिक मदद में हाथ बंटा रही हाथ

छांव फाउंडेशन द्वारा शुरू की गई इस मुहिम में एसिड अटैक पीड़िताएं ही मुख्य भूमिका निभाती हैं. शीरोज हैंग आउट कैफे को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन शुरू किया गया था. 8 मार्च 2016 को शुरू हुए इस कैफे में 12 एसिड अटैक पीड़िताएं काम करती हैं. कैफे की मदद से यह महिलाएं न केवल पैसे कमा रही हैं बल्कि अपने परिवार की मदद भी कर रही हैं.

हौसलों को देख विजिटर्स भी करते हैं सलाम

शीरोज हैंग आउट कैफे में आने वाले विजिटर्स के मुताबिक यह कैफे उन्हें प्रोत्साहन देता है. उनका कहना है कि इस कैफे में काम कर रहीं एसिड अटैक पीड़िताओं के हौसले उन्हें जिंदगी जीने का एक नया नजरिया भी सिखा रही हैं.

छांव फाउंडेशन की मुहिम से मिली नई दिशा

छांव फाउंडेशन के संस्थापक लोक दीक्षित का कहना है कि एसिड अटैक होने के बाद इन महिलाओं की जिंदगी लगभग खत्म हो जाती है. इसके बाद इन्हें समाज से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता और न ही इनकी शक्ल कोई देखना पसंद करता है. ऐसे में जरूरी है कि इनके अंदर दोबारा आत्मविश्वास पैदा करना. उन्होंने बताया कि इन पीड़िताओं को सहारा देने के उद्देश्य से उन्होंने इस कैफे की नींव डाली.

Intro:नोट- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उपयोग करने हेतु स्पेशल स्टोरी

लखनऊ। अक्सर छोटी सी चोट लगने पर हम काफी परेशान हो जाते हैं और उस चोट के लिए काफी जतन करने लगते हैं कि वह जल्द से जल्द ठीक हो जाए। लेकिन कुछ जख्म ऐसे होते हैं जिन के घाव न बाहरी रूप से भर पाते हैं और न ही दिल पर लगे चोट कहीं कोई मरहम मिल पाता है। हम बात कर रहे हैं एसिड अटैक पीड़ितों की, जिन्होंने जिंदगी से एक बार हार कर दोबारा उसे जीने का जज्बा सीखा है और अपने पैरों पर खड़े होने का हौसला रखती हैं।


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लखनऊ के गोमती नगर स्थित शीरोज हैंग आउट कैफे एक ऐसी जगह है जहां एक बार आने वाला इंसान दोबारा जरूर आता है। यह एक ऐसी जगह है जो एसिड अटैक पीड़ित महिलाओं द्वारा चलाई जाती है। छांव फाउंडेशन द्वारा शुरू की गई इस मुहिम में एसिड अटैक पीड़िताएं ही मुख्य भूमिका निभाती हैं। इस कैफे में स्वागत से लेकर खाने की टेबल तक यह एसिड अटैक पीड़िताएं ही आपको अपने आसपास मिलेंगी। इसे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन ही इसे शुरू भी किया गया था। 8 मार्च 2016 को लखनऊ में शुरू हुए इस कैफे में 12 एसिड अटैक पीड़िताएं काम करती हैं। इस कैफे की बदौलत वह न केवल अपनी जिंदगी को दोबारा ढर्रे पर लेकर आ रही हैं, बल्कि साथ ही साथ एक नई जिंदगी भी जी रही हैं। इन पीड़ितों के अनुसार, अटैक के बाद उनकी जिंदगी खत्म हो गई थी, लेकिन इस कैफे में काम करने के बाद से वह न केवल पैसे कमा रही हैं बल्कि साथ ही अपने परिवार को मदद कर रही हैं, खुद खड़ी हो रही हैं और अपने साथ-साथ दूसरों को भी खड़े होने का और खुद के लिए लड़ने का जज्बा भी दे रही हैं।

शीरोज हैंग आउट कैफे में आने वाले विजिटर्स की जुबानी सुनें तो पहली बार आई एक विजिटर के अनुसार, यह कैफे उन्हें प्रोत्साहन देता है और साथ ही यहां पर काम करने वाली एसिड अटैक पीड़िताओं ने उन्हें जिंदगी जीने का एक नया नजरिया भी सिखाया है।

अच्छा फाउंडेशन के संस्थापक आलोक दीक्षित का कहना है एसिड अटैक होने के बाद इन महिलाओं की जिंदगी लगभग खत्म हो जाती है, क्योंकि समाज से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता और सबसे जरूरी बात कि कोई भी इनकी शक्ल देखना नहीं चाहता। ऐसे में इन को मुख्यधारा से जोड़ना जितना जरूरी है, उससे कहीं ज्यादा जरूरी है इनके अंदर दोबारा आत्मविश्वास पैदा करना और इसीलिए यह कैफे चलाने की शुरुआत की गई। पिछले 3 सालों में यहां पर काम करने वाली कई एसिड अटैक पीड़ित महिलाओं ने न केवल हुनर सीखा है बल्कि साथ ही यह अपने परिवार को एक बेटे और परिवार के मुखिया की तरह संभालती हैं।


Conclusion:पैकेज

रामांशी मिश्रा
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