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रिपोर्ट: राजधानी के 46 फीसदी मरीज जानते ही नहीं कि टीबी का इलाज होता है मुफ्त

लखनऊ केजीएमयू की रिपोर्ट के मुताबिक टीबी के अधिकतर मामलों में लोगों में जागरूकता की कमी है. यही नहीं 48 फीसदी मरीजों को नहीं पता होता कि टीबी के इलाज की कोई फीस नहीं ली जाती है.

लखनऊ केजीएमयू ने किया खुलासा.
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Published : Mar 14, 2019, 12:00 PM IST

लखनऊ: राजधानी में टीवी जैसी खतरनाक बीमारी के लिए लोगों को जागरूक करने में साल भर में करीब डेढ़ से दो लाख खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन 46 फीसदी मरीज जानते ही नहीं कि टीबी का इलाज मुफ्त में होता है. केजीएमयू द्वारा प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है.

लखनऊ केजीएमयू ने किया खुलासा.

देश में हर साल टीबी के मामलों में इजाफा हो रहा है. इससे प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में जाने चली जाती हैं. राज्य और केंद्र सरकार के स्तर पर टीबी उन्मूलन कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं. साथ ही इसके लिए जन जागरूकता अभियानों का सहारा भी लिया जाता है.

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में टीबी के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं. इसे देखते हुए राज्य सरकार ने सूबे को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य तय किया था, लेकिन हाल ही में केजीएमयू ने राज्य में टीबी से जुड़ी एक शोध रिपोर्ट जारी की है, जो सरकार की इन कोशिशों को नाकाफी साबित करती है.

इस रिपोर्ट से साफ जाहिर होता है कि प्रधानमंत्री द्वारा 2021 तक देश को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य पूरा करना फिलहाल तो मुमकिन नहीं है. विश्व स्वास्थय संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2030 तक दुनिया से टीबी जैसी घातक बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य दिया है. भारत सरकार ने इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए 2025 का लक्ष्य निर्धारित किया है.

केंद्र सरकार ने 2017-2025 के लिए क्षय रोग से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय योजना बनाई है. इसके तहत टीबी के मरीजों को उचित जांच की व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था है. जब इस पूरे मामले पर हमने जिम्मेदार लोगों से बात की और उनसे पूछा कि आखिर इतने कम बजट में टीबी से बचने का प्रचार-प्रसार कैसे संभव है, तो उन्होंने कहा कि 2025 तक लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इन हालातों को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि डेढ़ से दो लाख तक के बजट में प्रचार-प्रसार करना और टीबी जैसी खतरनाक बीमारी को पराजित करना काफी मुश्किल होता है.

लखनऊ: राजधानी में टीवी जैसी खतरनाक बीमारी के लिए लोगों को जागरूक करने में साल भर में करीब डेढ़ से दो लाख खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन 46 फीसदी मरीज जानते ही नहीं कि टीबी का इलाज मुफ्त में होता है. केजीएमयू द्वारा प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है.

लखनऊ केजीएमयू ने किया खुलासा.

देश में हर साल टीबी के मामलों में इजाफा हो रहा है. इससे प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में जाने चली जाती हैं. राज्य और केंद्र सरकार के स्तर पर टीबी उन्मूलन कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं. साथ ही इसके लिए जन जागरूकता अभियानों का सहारा भी लिया जाता है.

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में टीबी के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं. इसे देखते हुए राज्य सरकार ने सूबे को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य तय किया था, लेकिन हाल ही में केजीएमयू ने राज्य में टीबी से जुड़ी एक शोध रिपोर्ट जारी की है, जो सरकार की इन कोशिशों को नाकाफी साबित करती है.

इस रिपोर्ट से साफ जाहिर होता है कि प्रधानमंत्री द्वारा 2021 तक देश को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य पूरा करना फिलहाल तो मुमकिन नहीं है. विश्व स्वास्थय संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2030 तक दुनिया से टीबी जैसी घातक बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य दिया है. भारत सरकार ने इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए 2025 का लक्ष्य निर्धारित किया है.

केंद्र सरकार ने 2017-2025 के लिए क्षय रोग से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय योजना बनाई है. इसके तहत टीबी के मरीजों को उचित जांच की व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था है. जब इस पूरे मामले पर हमने जिम्मेदार लोगों से बात की और उनसे पूछा कि आखिर इतने कम बजट में टीबी से बचने का प्रचार-प्रसार कैसे संभव है, तो उन्होंने कहा कि 2025 तक लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इन हालातों को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि डेढ़ से दो लाख तक के बजट में प्रचार-प्रसार करना और टीबी जैसी खतरनाक बीमारी को पराजित करना काफी मुश्किल होता है.

नोट- मोबाइल न होने की वजह से ख़बर मेल द्वारा भेजी रही है

राजधानी के 46 फीसदी मरीज जानते ही नहीं कि टीबी का इलाज होता है मुफ्त

एंकर- राजधानी लखनऊ में टीवी जैसी खतरनाक बीमारी जागरूक करने के लिए साल भर में करीब डेढ़ से दो लाख खर्च किए जा रहे हैं । लेकिन46 फीसदी मरीज ही जानते ही नही की टीबी का इलाज मुफ्त में होता है।

वी.ओ- राजधानी लखनऊ में टीवी जैसी खतरनाक बीमारी जागरूक करने के लिए साल भर में करीब डेढ़ से दो लाख खर्च किए जा रहे हैं । लेकिन46 फीसदी मरीज ही जानते ही नही की टीबी का इलाज मुफ्त में होता है। इसका खुलासा केजीएमयू की शोध रिपोर्ट में हुआ है जागरूकता के इस स्तर पर राजधानी लखनऊ को 2021 में टीवी मुक्त करने का सपना संजोए बैठे हैं। लेकिन इस तरह के हालातों से साफ जाहिर होता है कि 2021 क्या प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए 2025 तक के लक्ष्य में भी राजधानी लखनऊ तो टीवी मुक्त नहीं हो पाएगा ।डब्ल्यूएचओ टीबी जैसे घातक बीमारी को खत्म करने के लिए 2030 का लक्ष्य दिया है। तो वहीं सरकार ने इस पूरी बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए सभी को 2025 का लक्ष्य दिया है। केंद्र सरकार ने 2017-2025 के लिए क्षय रोग से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय योजना बनाई है। इसके तहत टीबी के मरीजों को उचित जांच की व्यवस्था व स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। जब इस पूरे मामले पर हमने जिम्मेदारों से बात की उनसे पूछा कि आखिर इतने कम बजट में टीबी से बचने का प्रचार-प्रसार कैसे संभव है तो उन्होंने भी हालातों को भांपते हुए जवाब दिया कि 2025 तक के लक्ष्य के तरफ केंद्रित है।लेकिन इन हालातों को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि डेढ़ से दो लाख तक के बजट में प्रचार प्रसार करना जिसमें बताया गया हो टीबी जैसी खतरनाक बीमारी से को भी जिंदगी हरा सकती है। मौत को भी पराजित किया जा सकता है। काफी मुश्किल होता है।

बाइट-प्रोफेसर एम.एल.बी. भट्ट,कुलपति,के.जी.एम.यू.


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