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काशी में मौजूद है 300 साल पुराना जगन्नाथ मंदिर, जानें क्यों है यह खास - उत्तर प्रदेश समाचार

शिव की नगरी काशी गंगा, घाट और गलियों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. काशी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है. यहां के हर चौराहे, गली और घरों में ऐतिहासिक मंदिर हैं. इन्हीं में एक है जगन्नाथ मंदिर.

जगन्नाथ मंदिर
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Published : Jun 26, 2019, 10:37 AM IST

वाराणसी: काशी के दक्षिणी छोर पर अस्सी घाट से 300 मीटर दूर भगवान जगन्नाथ का प्राचीन मंदिर स्थित है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां भगवान जगन्नाथ की बिल्कुल वैसी ही प्रतिमा है जैसे पूरी के जगन्नाथ मंदिर में है. मान्यता है कि जो भक्त पूरी नहीं जा पाते वह यहां दर्शन कर उसी फल की प्राप्ति करते हैं जो पुरी में जाकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन से प्राप्त होती है. मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ विराजमान है.

17वीं सदी का है यह मंदिर.

साधारण सा दिखने वाला यह मंदिर बेहद प्राचीन और ऐतिहासिक है

  • मंदिर में तीनों ग्रहों के अलावा भगवान राम और राधा कृष्ण की भी प्रतिमा है.
  • इसके साथ ही यहां भगवान नरसिंह की प्रतिमा विराजमान है.
  • भगवान जगन्नाथ के साथी भगवान गरुण जी की प्रतिमा भी यहां विराजमान है.
  • सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार जेष्ठ पूर्णिमा पर भगवान को स्नान कराया जाता है.
  • उसके बाद वह 14 दिनों तक बीमार पड़ते हैं. उसी 14 दिन बीमारी में इन्हें विशेष आयुर्वेदिक का भोग लगाया जाता है.

जब भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होते हैं तो वह भ्रमण के लिए निकलते हैं. उसी दिन से 3 दिन की रथ यात्रा मेला का शुभारंभ होता है. मंदिर के पुरोहित राधेश्याम पांडेय बताते हैं कि यह मंदिर 17वीं सदी का है. पूरी के एक पुजारी यहां आकर बस गए थे. कालांतर में काशी नरेश ने 52 बीघा जमीन दी थी, जिसमें इस मंदिर की स्थापना हुई.

वाराणसी: काशी के दक्षिणी छोर पर अस्सी घाट से 300 मीटर दूर भगवान जगन्नाथ का प्राचीन मंदिर स्थित है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां भगवान जगन्नाथ की बिल्कुल वैसी ही प्रतिमा है जैसे पूरी के जगन्नाथ मंदिर में है. मान्यता है कि जो भक्त पूरी नहीं जा पाते वह यहां दर्शन कर उसी फल की प्राप्ति करते हैं जो पुरी में जाकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन से प्राप्त होती है. मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ विराजमान है.

17वीं सदी का है यह मंदिर.

साधारण सा दिखने वाला यह मंदिर बेहद प्राचीन और ऐतिहासिक है

  • मंदिर में तीनों ग्रहों के अलावा भगवान राम और राधा कृष्ण की भी प्रतिमा है.
  • इसके साथ ही यहां भगवान नरसिंह की प्रतिमा विराजमान है.
  • भगवान जगन्नाथ के साथी भगवान गरुण जी की प्रतिमा भी यहां विराजमान है.
  • सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार जेष्ठ पूर्णिमा पर भगवान को स्नान कराया जाता है.
  • उसके बाद वह 14 दिनों तक बीमार पड़ते हैं. उसी 14 दिन बीमारी में इन्हें विशेष आयुर्वेदिक का भोग लगाया जाता है.

जब भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होते हैं तो वह भ्रमण के लिए निकलते हैं. उसी दिन से 3 दिन की रथ यात्रा मेला का शुभारंभ होता है. मंदिर के पुरोहित राधेश्याम पांडेय बताते हैं कि यह मंदिर 17वीं सदी का है. पूरी के एक पुजारी यहां आकर बस गए थे. कालांतर में काशी नरेश ने 52 बीघा जमीन दी थी, जिसमें इस मंदिर की स्थापना हुई.

Intro:शिव की नगरी काशी गंगा ,घाट और गलियों के लिए देश ही नही बल्कि दुनियां में मशहूर है लेकिन इन सब के साथ काशी की एक पहचान मंदिरो के शहर के रूप में भी है । इसी काशी में हर गली ,चौराहे और घरों में ऐतिहासिक मंदिर भी है । इन्ही में एक है जगन्नाथ मंदिर । काशी के दक्षिणी क्षोर पर अस्सी घाट से 300 मीटर दूर स्थित है भगवान जगन्नाथ का प्राचीन मंदिर इस मंदिर की खास बात ये है कि यहां भगवान जगन्नाथ की बिल्कुल वैसी ही प्रतिमा है जैसे पूरी के जगन्नाथ मंदिर में है । मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ विराजमान है ।


Body:वैसे तो मंदिर बहुत ही साधारण हैं लेकिन इसे देखकर ही लगता है यह ऐतिहासिक मंदिर है मंदिर में तीनों ग्रहों के अलावा भगवान राम की प्रतिमा है राधा कृष्ण की प्रतिमा है और उसके साथ एक भव्य और काफी बड़ा जिसे कहा जाता है यह भारत का दूसरा बड़ा भगवान नरसिंह की प्रतिमा है।भगवान जगन्नाथ के साथी बाहर गरुण जो की भी प्रतिमा विराजमान है।

मंदिर के पुरोहित राधेश्याम पांडेय ने बताया किया मंदिर 17 वी सदी की है पूरी एक पुजारी यहां आकर बस गए कालांतर में काशी नरेश ने 52 बीघा जमीन उसके बाद अति प्राचीन मंदिर स्थापना हुई आज भी हम उस परंपरा के तहत जेष्ठ पूर्णिमा को भगवान को स्नान कराया जाता है उसके बाद वह 14 दिनों तक बीमार पड़ते हैं उसी 14 दिन बीमारी में इन्हें विशेष आयुर्वेदिक काडाका भोग लगाया जाता है। जब भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होते हैं तो वह शहर भ्रमण के लिए निकलते हैं तो उसी दिन से बनारस के लक्खा महिलाओं में शुमार 3 दिन की रथयात्रा मेला का शुभारंभ होता है।


Conclusion:मंदिर के सेवक और पूर्व पार्षद गोविंद शर्मा ने बताया यह मंदिर लगभग 300 साल पुराना है भगवान जगन्नाथ का यह पावन मंदिर अति प्राचीन है कहा यह भी जाता है कि भारत में जितने भी मंदिर हैं।वह सारे मन्दिर काशी में मौजूद है। ऐसे में जो भी भक्त पूरी नहीं जा पाते वह भगवान का दर्शन यहां कर लेते हैं उन्हें उसी फल की प्राप्ति होती है जो उड़ीसा पुरी में जाकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन से प्राप्त होती है।

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