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CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों को वसूली गई रकम वापस करे यूपी सरकार: सुप्रीम कोर्ट

उत्तरप्रदेश सरकार ने सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान करने वाले CAA प्रदर्शनकारियों को दिया गया नुकसान की भरपाई का नोटिस वापस ले लिया है. राज्य सरकार के एक अधिकारी ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि सर्वोच्च अदालत ने नोटिस भेजने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे. इसके बाद सरकार ने नोटिस वापस लेने का फैसला किया है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों से वसूली गई संपत्ति उन्हें वापस कर दी जानी चाहिए.

Yogi govt withdraws notice to anti-CAA protesters
Yogi govt withdraws notice to anti-CAA protesters
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Published : Feb 18, 2022, 11:01 AM IST

Updated : Feb 18, 2022, 4:47 PM IST

लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों से वसूली गई संपत्ति उन्हें वापस कर दी जानी चाहिए. उत्तर प्रदेश सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि राज्य सरकार ने संपत्ति के नुकसान की वसूली के लिए सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिस को वापस ले लिया है. इस पर जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और सूर्यकांत ने कहा कि अगर नोटिस के बाद प्रदर्शनकारियों से वसूली की गई है तो उन्हें रकम वापस किया जाना चाहिए. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध में हुए आंदोलन के दौरान तोड़फोड़ करने वालों को नोटिस भेजकर सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की क्षतिपूर्ति करने के आदेश दिए थे.

दिसंबर 2019 में सीएए के विरोध में आंदोलन कर रहे लोगों ने राज्य के कई हिस्सों में तोड़फोड़ की थी. इसके बाद सरकार ने नुकसान की भरपाई के लिए विभिन्न जिलों में एडीएम के नेतृत्व में रिकवरी क्लेम ट्रिब्यूनल बनाया था. इस ट्रिब्यूनल ने बलवाइयों को चिह्नित कर वसूली के लिए प्रदेश में 274 नोटिस जारी किए थे. लखनऊ में भी 95 प्रदर्शनकारियों को नुकसान की भरपाई के लिए नोटिस दिया गया था.

बीते दिनों 11 फरवरी को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी. इस दौरान कोर्ट ने पाया कि प्रदर्शनकारियों को क्षतिपूर्ति का नोटिस देने से पहले राज्य सरकार ने कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया था. जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के लॉ ऑफिसर से पूछा था कि सरकार एक साथ शिकायतकर्ता, गवाह और प्रोसेक्यूटर कैसे बन सकती है. पीठ ने कहा कि इस मामले में आप शिकायतकर्ता बन गए हैं, आप गवाह बन गए हैं, आप प्रोसेक्यूटर भी बन गए हैं और फिर आप लोगों की संपत्तियां कुर्क करते हैं. क्या किसी कानून के तहत इसकी अनुमति है?

इससे पहले 2009 में सर्वोच्च अदालत ने ऐसे मामलों में नुकसान का आकलन करने और दोषियों की पहचान के लिए हाई कोर्ट के वर्तमान या रिटायर्ड जज को क्लेम कमिश्नर नियुक्त करने का निर्देश दिया था.

दिसंबर 2019 में उत्तरप्रदेश में कुछ जगहों पर सीएए के विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए थे. कुछ प्रदर्शनकारियों ने लखनऊ सहित कई शहरों में सार्वजनिक संपत्ति को तोड़ दिया था और उसमें आग लगा दी थी. इसके बाद राज्य सरकार ने मोहम्मद शुजाउद्दीन बनाम यूपी राज्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2011 के फैसले के तहत क्षतिग्रस्त संपत्तियों की लागत की वसूली के लिए नोटिस जारी किए थे. हालांकि राज्य सरकार ने नोटिस जारी करने से पहले 2009 और उसके बाद 2018 में जारी सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों की अनदेखी की.

इस मामले में एस आर दानापुरी ने कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव में नोटिस वापस लेने का फैसला किया है, फिर भी यह एक स्वागत योग्य कदम है. पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी को भी राज्य सरकार ने सीएए प्रोटेस्ट के दौरान हुए नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति का नोटिस दिया गया था.

पढ़ें : फेमस यूट्यूबर ने महज 42 सेकंड में की करोड़ों की कमाई!, जानिए कैसे

लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों से वसूली गई संपत्ति उन्हें वापस कर दी जानी चाहिए. उत्तर प्रदेश सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि राज्य सरकार ने संपत्ति के नुकसान की वसूली के लिए सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिस को वापस ले लिया है. इस पर जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और सूर्यकांत ने कहा कि अगर नोटिस के बाद प्रदर्शनकारियों से वसूली की गई है तो उन्हें रकम वापस किया जाना चाहिए. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध में हुए आंदोलन के दौरान तोड़फोड़ करने वालों को नोटिस भेजकर सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की क्षतिपूर्ति करने के आदेश दिए थे.

दिसंबर 2019 में सीएए के विरोध में आंदोलन कर रहे लोगों ने राज्य के कई हिस्सों में तोड़फोड़ की थी. इसके बाद सरकार ने नुकसान की भरपाई के लिए विभिन्न जिलों में एडीएम के नेतृत्व में रिकवरी क्लेम ट्रिब्यूनल बनाया था. इस ट्रिब्यूनल ने बलवाइयों को चिह्नित कर वसूली के लिए प्रदेश में 274 नोटिस जारी किए थे. लखनऊ में भी 95 प्रदर्शनकारियों को नुकसान की भरपाई के लिए नोटिस दिया गया था.

बीते दिनों 11 फरवरी को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी. इस दौरान कोर्ट ने पाया कि प्रदर्शनकारियों को क्षतिपूर्ति का नोटिस देने से पहले राज्य सरकार ने कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया था. जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के लॉ ऑफिसर से पूछा था कि सरकार एक साथ शिकायतकर्ता, गवाह और प्रोसेक्यूटर कैसे बन सकती है. पीठ ने कहा कि इस मामले में आप शिकायतकर्ता बन गए हैं, आप गवाह बन गए हैं, आप प्रोसेक्यूटर भी बन गए हैं और फिर आप लोगों की संपत्तियां कुर्क करते हैं. क्या किसी कानून के तहत इसकी अनुमति है?

इससे पहले 2009 में सर्वोच्च अदालत ने ऐसे मामलों में नुकसान का आकलन करने और दोषियों की पहचान के लिए हाई कोर्ट के वर्तमान या रिटायर्ड जज को क्लेम कमिश्नर नियुक्त करने का निर्देश दिया था.

दिसंबर 2019 में उत्तरप्रदेश में कुछ जगहों पर सीएए के विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए थे. कुछ प्रदर्शनकारियों ने लखनऊ सहित कई शहरों में सार्वजनिक संपत्ति को तोड़ दिया था और उसमें आग लगा दी थी. इसके बाद राज्य सरकार ने मोहम्मद शुजाउद्दीन बनाम यूपी राज्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2011 के फैसले के तहत क्षतिग्रस्त संपत्तियों की लागत की वसूली के लिए नोटिस जारी किए थे. हालांकि राज्य सरकार ने नोटिस जारी करने से पहले 2009 और उसके बाद 2018 में जारी सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों की अनदेखी की.

इस मामले में एस आर दानापुरी ने कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव में नोटिस वापस लेने का फैसला किया है, फिर भी यह एक स्वागत योग्य कदम है. पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी को भी राज्य सरकार ने सीएए प्रोटेस्ट के दौरान हुए नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति का नोटिस दिया गया था.

पढ़ें : फेमस यूट्यूबर ने महज 42 सेकंड में की करोड़ों की कमाई!, जानिए कैसे

Last Updated : Feb 18, 2022, 4:47 PM IST
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