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यूपी विधानसभा चुनाव : क्या पांचवे चरण में भाजपा का रामजी करेंगे बेड़ा पार?

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Published : Feb 26, 2022, 8:07 PM IST

उत्तर प्रदेश में पांचवें चरण का चुनाव रविवार को है. धर्मनगरी अयोध्या समेत इसके आसपास के जिलों में मतदान होगा. भाजपा के लिए इस बार अयोध्या की सीट जीतना प्रतिष्ठा का सवाल है. राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस बार ये मुद्दा कितना प्रभावी साबित होगा ये तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे. पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्र का विश्लेषण.

Will Lord Ram help BJP do an encore in the fifth phase
राम मंदिर

लखनऊ : अगर रोड शो के आकार से किसी पार्टी की हार या जीत को जोड़कर देखा जाए तो समाजवादी पार्टी अयोध्या में जीत रही है. शुक्रवार को भगवान राम की धरती पर अखिलेश यादव का रोड शो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रोड शो से दो किलोमीटर लंबा बताया गया. हालांकि एक तथ्य ये भी है कि रोड शो और चुनावी रैलियों में जुटने वाली भीड़ हमेशा वोट में तब्दील नहीं हो सकती.अयोध्या ही है जहां से भाजपा ने यूपी के साथ देशभर की राजनीति में यह 'ध्रुव स्थान' बनाया है, लेकिन इस बार वह खुद को मुश्किल स्थिति में पा रही है.

हिंदुओं को केंद्र में रखकर रैली की गई. पांचवें चरण में अयोध्या के साथ ही सुल्तानपुर, प्रयागराज, चित्रकूट, प्रतापगढ़, कौशाम्बी, बाराबंकी, बहराइच, श्रावस्ती और गोंडा में मतदान होना है. कुल 2.24 करोड़ मतदाता 624 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे.

चुनावी लड़ाई के इस दौर में कुछ महत्वपूर्ण उम्मीदवारों में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य शामिल हैं, जो कौशाम्बी के सिराथू निर्वाचन क्षेत्र में अपना दल (के) उम्मीदवार पल्लवी पटेल के खिलाफ खड़े हैं. वहीं, मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह (इलाहाबाद पश्चिम) और नंद गोपाल नंदी (इलाहाबाद दक्षिण) से चुनाव मैदान में हैं. इस चरण में जहां सभी जिलों का अपना-अपना महत्व है, वहीं अयोध्या का अधिक महत्व है, क्योंकि राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह पहला चुनाव है. बीजेपी ने 2017 में जिले की सभी पांच सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार भी उस प्रदर्शन को बरकरार रखने की पूरी कोशिश कर रही है. अयोध्या सीट पर पवन पांडे (सपा) का मुकाबला भाजपा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता से है, जो सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं.

मतदाता मोहभंग की खबरों के बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने विशेष रूप से इस पवित्र शहर पर मतदाताओं को लुभाने के लिए ध्यान केंद्रित किया है. नौकरशाही को ज्यादा नियंत्रण की इजाजत देने समेत योगी सरकार के सभी नकारात्मक पहलुओं को दूर किया जा रहा है. इतना ही नहीं, आरएसएस नेता अरुण कुमार और यूपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने खुद मतदाताओं को दूसरे खेमे में जाने से रोकने के लिए मुद्दों को हल करने की कोशिश की है.

राम जन्मभूमि मुद्दा कानूनी रूप से सुलझ चुका है और भव्य मंदिर निर्माण का निर्माण हो रहा है. ऐसे में भाजपा इस मुद्दे का इस्तेमाल वोटरों को रिझाने में नहीं कर पा रही है. अयोध्या के मतदाताओं के अन्य मुद्दे हैं जैसे विकास, संदिग्ध सौदे जिसमें नौकरशाहों और राजनेताओं ने कुछ लाख में 2 करोड़ रुपये की जमीन खरीदी गई, भाजपा नेताओं का सुलभ न होना आदि. कास्ट फैक्टर और सपा के शासन की कानून-व्यवस्था भी चर्चा के बिंदु हैं. फिर भी जैसा कि योगी आदित्यनाथ ने कहा, अयोध्या हिंदू पहचान का प्रतीक है, इसलिए अयोध्या हारना बड़ा नुकसान होगा.

ईवीएम का बटन दबाते समय हिंदू इस बात का ध्यान रखें यह सुनिश्चित करने के लिए विश्व हिंदू परिषद राम जन्मभूमि और राम-लला की मिट्टी प्रसाद के रूप में मतदाताओं के बीच बांट रही है, ताकि भाजपा के प्रति उनकी पूर्ण निष्ठा सुनिश्चित हो सके. राम-लला के नाम पर मतदाता निष्ठा बहुत असरकारी नहीं हो सकती है. अयोध्या क्षेत्र में विभिन्न वर्गों के 3.79 लाख मतदाताओं के गुस्से को देखते हुए पार्टी को सपा के पवन पांडेय से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

अयोध्या से 100 किमी से अधिक दूरी पर स्थित बहराइच सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाका है, जहां भाजपा ने हिंदुओं को प्रेरित करने के लिए अपना हिंदू कार्ड खेला है. पार्टी ने यहां एक मध्ययुगीन हिंदू महाराज सुहेलदेव का आह्वान किया है, जिन्होंने 1033 की लड़ाई में एक मुगल आक्रमणकारी गाजी सैय्यद सालार मसूद को मारा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ ने सुहेलदेव की नायक के रूप में तारीफ कर उसका लाभ पाने का प्रयास किया है. मोदी ने जहां सुहेलदेव की विशाल प्रतिमा का वादा किया है, वहीं योगी आदित्यनाथ ने उनके नाम पर कई योजनाएं शुरू की हैं. असदुद्दीन ओवैसी ने सालार मसूद की दरगाह शरीफ के दौरे के साथ एआईएमआईएम के चुनाव अभियान की शुरुआत की थी. भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने भाजपा पर महाराजा सुहेलदेव के नाम पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाया.

बहराइच एक मुस्लिम बहुल जिला है जहां मुस्लिम आबादी 56.07 प्रतिशत की तुलना में हिंदुओं की आबादी 42.40 प्रतिशत है. भाजपा को अल्पसंख्यक समुदाय का ध्रुवीकरण मदद कर सकता है बशर्ते अनुसूचित जाति, बौद्ध, सिख और ईसाई का भी उसे वोट मिले. सत्तारूढ़ दल ने 2017 में सात विधानसभा सीटों में से छह पर जीत हासिल की थी, लेकिन उस प्रदर्शन को दोहराना मुश्किल लग रहा है.

वहीं, कुंडा से छह बार के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ ​​राजा भैया एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं. राजा भैया की बदनामी उन कहानियों से हुई, जिनमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में विरोध करने वालों को अपने निजी तालाब में मगरमच्छों को खिला दिया. मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए राजा भैया को जेल में डाल दिया था. वह अपनी सातवीं संभावित जीत के लिए जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं. कांग्रेस पार्टी की आराधना मिश्रा अपने पिता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी के गढ़ रामपुर खास से चुनाव लड़ रही हैं. यह एक ऐसी सीट है जिस पर कांग्रेस की जीत निश्चित दिख रही है. यह उस निराशा को दूर करने की तरह है जिसका सामना पार्टी को अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में करना पड़ सकता है. आराधना मिश्रा की अगर जीत होती है तो इसका श्रेय तिवारी को जाएगा, जो कभी रामपुर खास से चुनाव नहीं हारे.

पढ़ें- यूपी : बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा, पर किसकी झोली में जाएंगे बेरोजगार ?

(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. यहां व्यक्त किए गए तथ्य और राय ईटीवी भारत के विचारों को नहीं दर्शाते हैं)

लखनऊ : अगर रोड शो के आकार से किसी पार्टी की हार या जीत को जोड़कर देखा जाए तो समाजवादी पार्टी अयोध्या में जीत रही है. शुक्रवार को भगवान राम की धरती पर अखिलेश यादव का रोड शो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रोड शो से दो किलोमीटर लंबा बताया गया. हालांकि एक तथ्य ये भी है कि रोड शो और चुनावी रैलियों में जुटने वाली भीड़ हमेशा वोट में तब्दील नहीं हो सकती.अयोध्या ही है जहां से भाजपा ने यूपी के साथ देशभर की राजनीति में यह 'ध्रुव स्थान' बनाया है, लेकिन इस बार वह खुद को मुश्किल स्थिति में पा रही है.

हिंदुओं को केंद्र में रखकर रैली की गई. पांचवें चरण में अयोध्या के साथ ही सुल्तानपुर, प्रयागराज, चित्रकूट, प्रतापगढ़, कौशाम्बी, बाराबंकी, बहराइच, श्रावस्ती और गोंडा में मतदान होना है. कुल 2.24 करोड़ मतदाता 624 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे.

चुनावी लड़ाई के इस दौर में कुछ महत्वपूर्ण उम्मीदवारों में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य शामिल हैं, जो कौशाम्बी के सिराथू निर्वाचन क्षेत्र में अपना दल (के) उम्मीदवार पल्लवी पटेल के खिलाफ खड़े हैं. वहीं, मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह (इलाहाबाद पश्चिम) और नंद गोपाल नंदी (इलाहाबाद दक्षिण) से चुनाव मैदान में हैं. इस चरण में जहां सभी जिलों का अपना-अपना महत्व है, वहीं अयोध्या का अधिक महत्व है, क्योंकि राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह पहला चुनाव है. बीजेपी ने 2017 में जिले की सभी पांच सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार भी उस प्रदर्शन को बरकरार रखने की पूरी कोशिश कर रही है. अयोध्या सीट पर पवन पांडे (सपा) का मुकाबला भाजपा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता से है, जो सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं.

मतदाता मोहभंग की खबरों के बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने विशेष रूप से इस पवित्र शहर पर मतदाताओं को लुभाने के लिए ध्यान केंद्रित किया है. नौकरशाही को ज्यादा नियंत्रण की इजाजत देने समेत योगी सरकार के सभी नकारात्मक पहलुओं को दूर किया जा रहा है. इतना ही नहीं, आरएसएस नेता अरुण कुमार और यूपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने खुद मतदाताओं को दूसरे खेमे में जाने से रोकने के लिए मुद्दों को हल करने की कोशिश की है.

राम जन्मभूमि मुद्दा कानूनी रूप से सुलझ चुका है और भव्य मंदिर निर्माण का निर्माण हो रहा है. ऐसे में भाजपा इस मुद्दे का इस्तेमाल वोटरों को रिझाने में नहीं कर पा रही है. अयोध्या के मतदाताओं के अन्य मुद्दे हैं जैसे विकास, संदिग्ध सौदे जिसमें नौकरशाहों और राजनेताओं ने कुछ लाख में 2 करोड़ रुपये की जमीन खरीदी गई, भाजपा नेताओं का सुलभ न होना आदि. कास्ट फैक्टर और सपा के शासन की कानून-व्यवस्था भी चर्चा के बिंदु हैं. फिर भी जैसा कि योगी आदित्यनाथ ने कहा, अयोध्या हिंदू पहचान का प्रतीक है, इसलिए अयोध्या हारना बड़ा नुकसान होगा.

ईवीएम का बटन दबाते समय हिंदू इस बात का ध्यान रखें यह सुनिश्चित करने के लिए विश्व हिंदू परिषद राम जन्मभूमि और राम-लला की मिट्टी प्रसाद के रूप में मतदाताओं के बीच बांट रही है, ताकि भाजपा के प्रति उनकी पूर्ण निष्ठा सुनिश्चित हो सके. राम-लला के नाम पर मतदाता निष्ठा बहुत असरकारी नहीं हो सकती है. अयोध्या क्षेत्र में विभिन्न वर्गों के 3.79 लाख मतदाताओं के गुस्से को देखते हुए पार्टी को सपा के पवन पांडेय से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

अयोध्या से 100 किमी से अधिक दूरी पर स्थित बहराइच सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाका है, जहां भाजपा ने हिंदुओं को प्रेरित करने के लिए अपना हिंदू कार्ड खेला है. पार्टी ने यहां एक मध्ययुगीन हिंदू महाराज सुहेलदेव का आह्वान किया है, जिन्होंने 1033 की लड़ाई में एक मुगल आक्रमणकारी गाजी सैय्यद सालार मसूद को मारा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ ने सुहेलदेव की नायक के रूप में तारीफ कर उसका लाभ पाने का प्रयास किया है. मोदी ने जहां सुहेलदेव की विशाल प्रतिमा का वादा किया है, वहीं योगी आदित्यनाथ ने उनके नाम पर कई योजनाएं शुरू की हैं. असदुद्दीन ओवैसी ने सालार मसूद की दरगाह शरीफ के दौरे के साथ एआईएमआईएम के चुनाव अभियान की शुरुआत की थी. भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने भाजपा पर महाराजा सुहेलदेव के नाम पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाया.

बहराइच एक मुस्लिम बहुल जिला है जहां मुस्लिम आबादी 56.07 प्रतिशत की तुलना में हिंदुओं की आबादी 42.40 प्रतिशत है. भाजपा को अल्पसंख्यक समुदाय का ध्रुवीकरण मदद कर सकता है बशर्ते अनुसूचित जाति, बौद्ध, सिख और ईसाई का भी उसे वोट मिले. सत्तारूढ़ दल ने 2017 में सात विधानसभा सीटों में से छह पर जीत हासिल की थी, लेकिन उस प्रदर्शन को दोहराना मुश्किल लग रहा है.

वहीं, कुंडा से छह बार के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ ​​राजा भैया एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं. राजा भैया की बदनामी उन कहानियों से हुई, जिनमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में विरोध करने वालों को अपने निजी तालाब में मगरमच्छों को खिला दिया. मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए राजा भैया को जेल में डाल दिया था. वह अपनी सातवीं संभावित जीत के लिए जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं. कांग्रेस पार्टी की आराधना मिश्रा अपने पिता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी के गढ़ रामपुर खास से चुनाव लड़ रही हैं. यह एक ऐसी सीट है जिस पर कांग्रेस की जीत निश्चित दिख रही है. यह उस निराशा को दूर करने की तरह है जिसका सामना पार्टी को अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में करना पड़ सकता है. आराधना मिश्रा की अगर जीत होती है तो इसका श्रेय तिवारी को जाएगा, जो कभी रामपुर खास से चुनाव नहीं हारे.

पढ़ें- यूपी : बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा, पर किसकी झोली में जाएंगे बेरोजगार ?

(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. यहां व्यक्त किए गए तथ्य और राय ईटीवी भारत के विचारों को नहीं दर्शाते हैं)

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