अयोध्या: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की पावन जन्मस्थली अयोध्या और जनकपुर का मैत्रीपूर्ण संबंध जगजाहिर है. भले ही समय बदलने के साथ ही अब दोनों ही शहरों के बीच देश की सीमा का बॉर्डर है. लेकिन त्रेता युग की इस कथा में अयोध्या और जनकपुर भारत का ही एक अभिन्न हिस्सा था. गुरुवार की सुबह रामसेवकपुरम का परिसर एक ऐतिहासिक क्षण का गवाह बना. पड़ोसी देश नेपाल के जनकपुर की काली गंडकी नदी से निकाल कर लाए गए शालिग्राम पत्थर जो अब अयोध्या में देवशिला के रूप में पूजित हो गए हैं. यह सिर्फ एक पत्थर नहीं बल्कि दोनों देशों के आपसी संबंधों को मजबूत बनाने वाले बेहद मजबूत आधार स्तंभ है. इन शिलाओं के दान को लेकर जितना समर्पण भाव नेपाल सरकार और वहां के लोगों ने दिखाया है. उससे जाहिर तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर दोनों देशों के बीच राजनीतिक व्यावसायिक संबंध और भी मजबूत हो रहे हैं.
शालिग्राम पत्थरों को नेपालवासियों ने किया विदा: 26 जनवरी को नेपाल के जनकपुर स्थित काली गंडकी नदी से निकाल कर जब जानकी मंदिर में इन शिलाओं का विधिवत पूजन अर्चन और 5 कोस की परिक्रमा पूरी करने के बाद इन्हें बड़े-बड़े ट्रॉली में रखकर अयोध्या के लिए रवाना किया गया था. तब नेपाल के जनकपुर के जानकी मंदिर के महंत राम तपेश्वर दास को भी इस बात का अहसास नहीं था कि उनका यह प्रयास आम लोगों के बीच इतना लोकप्रिय हो जाएगा. जिस दिन यह शिला नेपाल के जानकी मंदिर से रवाना हुई. उसी दिन से लेकर भारत की सीमा तक पहुंचने के बीच लाखों नेपाली नागरिकों ने बेहद प्रेम उत्साह के साथ शिलाओं का स्वागत अभिनंदन और पुष्प वर्षा कर इन्हें भारत के लिए रवाना किया. यह यात्रा जिस शहर से होकर गुजरी. वहां जाम लग गया, लोग सड़कों के किनारे खड़े नजर आए. मानो जिस प्रकार से त्रेता युग में मां जानकी जनकपुर से विदा होकर अयोध्या आई थी. उसी प्रकार से इन शिलाओं को भी लोग भक्ति भाव के साथ अयोध्या विदा कर रहे हो.
375 किलोमीटर की दूरी तय करने में लगे 6 दिन: भारत की सीमा में प्रवेश करते ही भारत के नागरिकों ने भी इन शिलाओं का स्वागत उसी प्रकार किया, जिस प्रकार से मां जानकी के विदा होकर आने पर अयोध्या वासियों ने उसका स्वागत किया था. जगह-जगह पर स्वागत कैंप बनाकर पुष्प वर्षा की गई. सड़कों के किनारे हाथों में पुष्प लेकर लोग इन शिलाओं की प्रतीक्षा करते नजर आए. यह भावपूर्ण दृश्य कहीं न कहीं त्रेता युग की उस कथा को पुनर्जीवित कर रहा था, जिसमें भगवान राम और मां जानकी के विवाह और दोनों देशों के बीच के परस्पर प्रेम संबंधों का मार्मिक जिक्र है. लगभग 375 किलोमीटर की दूरी को तय करने में 6 दिन का लंबा वक्त बीत गया. गुरुवार की देर रात जब यह शिला खंड अयोध्या पहुंचे तो दृश्य ऐसा था मानो साक्षात भगवान राम के स्वरूप ही अयोध्या आ गए हो.
विश्व के मानचित्र पर प्रगाढ़ हुए भारत और नेपाल के संबंध: नेपाल के जनकपुर के नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष रामनरेश चौधरी की माने तो यह सिर्फ भगवान राम के प्रति नेपाल वासियों की आस्था करने का एक प्रयास नहीं था बल्कि दोनों देशों के आपसी प्रेम संबंध को और मजबूत बनाने वाली कड़ी थी. जिस प्रकार से दोनों देशों के बीच रोटी बेटी का रिश्ता है. आज इस आध्यात्मिक प्रयास से इस रिश्ते को और मजबूती मिली है. अयोध्या और नेपाल में कोई फर्क नहीं है. अयोध्या में भगवान राम ने जन्म लिया और लुंबिनी में भगवान बुद्ध ने जन्म लिया. दोनों ही देश आस्था और अध्यात्म के पर्याय हैं. जिस प्रकार से नेपाल वासियों ने जनकपुर वासियों ने मां सीता को विदा किया था. उस प्रकार इन पत्थरों को भी विदा किया है. दोनों देशों के बीच एक मजबूत संबंधों को जन्म देने वाला प्रयास है. इससे आर्थिक राजनैतिक व्यवसायिक हर तरह के संबंध मजबूत होंगे और पूरे विश्व में भारत और नेपाल के संबंध अच्छे मित्र राष्ट्र के रूप में बनेगी.
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