नई दिल्ली : भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) एनवी रमना (NV Ramana) ने शुक्रवार को मौखिक रूप से कहा कि उन्होंने संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में नौकरशाहों, विशेष रूप से पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अत्याचार और शिकायतों की जांच के लिए एक पैनल बनाने के बारे में सोचा था. उन्होंने कहा कि किस तरह से नौकरशाही विशेष रूप से पुलिस अधिकारी इस देश में कैसा व्यवहार कर रहे हैं?
मुख्य न्यायाधीश ने कहा,'मैं एक समय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में नौकरशाहों, विशेष रूप से पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अत्याचारों और शिकायतों (atrocities and complaints against bureaucrats) की जांच के लिए एक स्थायी समिति (standing committee to examine) बनाने के बारे में सोच रहा था.. मैं इसे सुरक्षित रखना चाहता हूं और इसे अभी नहीं करना चाहता.'
न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justices Surya Kant) और न्यायमूर्ति हिमा कोहली (Hima Kohli) की पीठ भी छत्तीसगढ़ के निलंबित अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक गुरजिंदर पाल सिंह द्वारा राजद्रोह, जबरन वसूली, और आय से अधिक संपत्ति मामले में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उनके खिलाफ आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग की गई थी .
27 सितंबर को शीर्ष अदालत ने सिंह के वकील से कहा कि उनके मुवक्किल हर मामले में गिरफ्तारी से सुरक्षा नहीं ले सकते हैं. उन्होंने बताया कि जब लोग पैसे लोना शुरू करते हैं, तो चीजें गलत मोड़ लेती हैं.
कोर्ट ने कहा कि हम ऐसे अधिकारियों को सुरक्षा क्यों प्रदान करें? मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की और कहा कि ऐसे पुलिस अधिकारियों को संरक्षित नहीं किया जाना चाहिए, उन्हें जेल में होना चाहिए.
26 अगस्त को शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से एक परेशान करने वाले की ओर इशारा किया था। प्रवृत्ति, जहां पुलिस अधिकारी, सत्ताधारी पार्टी का पक्ष लेते हैं, बाद में जब एक और दूसरी राजनीतिक पार्टी सत्ता में आती है तो उन्हें निशाना बनाया जाता है.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि जब कोई राजनीतिक दल सत्ता में होता है, तो पुलिस अधिकारी उसका साथ देते हैं .... फिर, जब कोई नई पार्टी सत्ता में आती है, तो सरकार उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करती है.
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यह एक नया चलन है, जिसे रोकने की जरूरत है. छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के आदेशों (Chhattisgarh High Court orders) के खिलाफ शीर्ष अदालत के समक्ष तीन विशेष अनुमति याचिकाएं दायर की गई हैं, जहां अदालत ने गुरजिंदर पाल सिंह के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया.
सिंह के खिलाफ राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (Anti-Corruption Bureau) द्वारा लिखित शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया गया था कि उन्होंने आय से अधिक संपत्ति अर्जित की थी. उसके पास से कुछ दस्तावेज जब्त किए गए, जो सरकार के खिलाफ साजिश में उसके शामिल होने की ओर इशारा कर रहे थे.
(आईएएनएस)