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मशीन बंद होते ही खत्म हो जाती थी जिंदा बच निकलने की उम्मीद, ईश्वर पर यकीन और दुआएं आईं काम - Exclusive Tunnel Labours

उत्तराखंड की टनल में फंसे मजदूरों को जीवन की उम्मीद ईश्वर और देशवासियों की दुआओं पर टिकी थी. टनल से बाहर आने के बाद मजदूर खौफ का मंजर को याद करके आज भी सिहर उठते हैं. श्रावस्ती के अंकित ने टनल में बीते दिनों की बातें ईटीवी भारत से साझा कीं.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 1, 2023, 2:17 PM IST

Updated : Dec 2, 2023, 6:20 AM IST

उत्तराखंड टनल में फंसे मजदूरों से बात करते वरिष्ठ संवाददाता अखिल पांडेय.

लखनऊ : श्रावस्ती के रहने वाले अंकित महज 21 साल के हैं. उनका पूरा परिवार श्रावस्ती में रहता है. मम्मी-पापा, भाई-बहन और पत्नी घर पर हैं. कमाई का जरिया खेती किसानी है और अंकित की नौकरी है. इसी नौकरी के सिलसिले में घर-परिवार छोड़कर पिछले एक साल से काम कर रहे थे. टनल में 17 दिनों तक जिंदगी से जद्दोजहद के दौरान कई बार अंकित का विश्वास डगमगाया, लेकिन घर-परिवार के साथ देशवासियों की दुआओं का असर रहा कि चमत्कार हुआ और सभी सुरक्षित निकले. अंकित ने "ईटीवी भारत" से टनल में गुजारे दिनों के संघर्ष की आपबीती साझा की.

टनल में फंसे मजदूरों की आपबीती.
टनल में फंसे मजदूरों की आपबीती.

...ऐसा लगा कि बाहर नहीं आ पाएंगे : अंकित बताते हैं कि श्रावस्ती के लगभग 30 लोग इस कंपनी में काम करते हैं. डे नाइट की शिफ्ट लगती है. नाइट ड्यूटी के दौरान श्रावस्ती के छह लोग सुरंग में फंस गए थे, जो बच गए वह घर चले गए थे. दो-तीन दिन तक तो कोई उम्मीद ही नहीं बची थी कि हम बाहर निकल पाएंगे. कुछ दिन बाद जब पता चला कि बाहर काम शुरू हो गया है. मशीनों से काम चालू हो गया है. जब बातचीत होने लगी और भरोसा दिया जाने लगा कि बहुत जल्द आपको बाहर निकाल लिया जाएगा तो थोड़ा बहुत विश्वास बढ़ा कि अब हम लोग भी बाहर निकाल सकते हैं. जब मशीन बार-बार खराब होने की खबर आने लगी तो झटका लग रहा था. जब मशीन चालू हो जाती थी तो उम्मीद जाग जाती थी. कभी बताया जाता था कि मशीन से प्रेशर नहीं बन पा रहा है, खोदाई नहीं हो पा रही तो ऐसा लगता था कि अब नहीं निकल पाएंगे. टनल में फंसे हुए पहली बार छह दिन बाद पत्नी से बात हुई थी. पत्नी बहुत ज्यादा परेशान थी. बहुत बीमार हो गई थी. दवा शुरू हो गई थी. मैंने उसे समझाया कि टेंशन बिल्कुल मत लो. अभी फंसे हुए हैं, लेकिन हम जरूर बाहर निकल आएंगे. हमारे साथ केंद्र और उत्तराखंड सरकार है. तेजी से काम कराया जा रहा है.

टनल में फंसे थे ये मजदूर.
टनल में फंसे थे ये मजदूर.



पीने और फ्रेश होने के लिए एक ही पाइप से आता था पानी : अंकित बताते हैं कि टनल के अंदर फ्रेश होने के लिए बाहर से पानी टपकता था. वही पीने और फ्रेश होने के लिए इस्तेमाल होता था. 10 दिनों तक ऐसे चलता रहा. बाद में जब छह इंच का पाइप आया तो उसमें फ्रेश होने के लिए टूथब्रश, अंडरवियर चेंज करने के लिए कपड़े भी आए. इसके बाद सब कुछ मिलने लगा. खाने के लिए फल भी आए और ड्राई फ्रूट भी. इस तरह की व्यवस्था से किसी का स्वास्थ्य खराब नहीं हुआ. उम्मीद तो हम सभी को थी कि हम लोग निकल जरूर बाहर जाएंगे, लेकिन जब दिन ज्यादा लग रहे थे तो उम्मीद धूमिल होती जा रही थी.




दुआओं का हुआ असर : 17 दिन तक टनल में फंसे रहने के दौरान क्या गुजरी इस बारे में मिर्जापुर निवासी अखिलेश सिंह "ईटीवी भारत" से बताते हैं कि इतनी समस्या नहीं थी. हमें इतना मैसेज था कि हमारी कंपनी की पूरी टीम लगी हुई है. 16 से 17 घंटे बाद ऑक्सीजन अंदर आने लगी. खाने पीने की चीजें आनी शुरू हो गईं फिर टेंशन थोड़ी कम हो गई. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी लगातार हम लोगों से संपर्क में थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार मुख्यमंत्री से टनल के अंदर फंसे श्रमिकों का हाल-चाल ले रहे थे. 140 करोड़ देशवासियों की दुआएं हम सभी के साथ थीं. यह भारत की जीत है और हम लोग इसी वजह से बाहर निकल पाए. अखिलेश का कहना है कि सबकी सोच एक जैसी नहीं होती है. हौसला हमने बनाए रखा था. हमें यह पता था कि हमारी टीम लगी हुई है तो कुछ न कुछ तो निष्कर्ष निकलेगा ही. हमने हिम्मत नहीं तोड़ी. कुछ लोगों को जरूर लग रहा था कि नहीं निकाल पाएंगे, लेकिन वहीं पर आपस में हिम्मत बंधने वाले भी लोग थे, जो लगातार हौसला बढ़ाते रहे.

यह भी पढ़ें : उत्तराखंड में आपदा और आस्था का क्या है कनेक्शन, यहां विज्ञान को चुनौती देते हैं देवता, पढ़िये खबर

उत्तराखंड टनल में फंसे मजदूरों ने ऐसे भेजा था जिंदा होने का संदेश, सुनिए श्रमिकों की जुबानी

उत्तराखंड टनल में फंसे मजदूरों से बात करते वरिष्ठ संवाददाता अखिल पांडेय.

लखनऊ : श्रावस्ती के रहने वाले अंकित महज 21 साल के हैं. उनका पूरा परिवार श्रावस्ती में रहता है. मम्मी-पापा, भाई-बहन और पत्नी घर पर हैं. कमाई का जरिया खेती किसानी है और अंकित की नौकरी है. इसी नौकरी के सिलसिले में घर-परिवार छोड़कर पिछले एक साल से काम कर रहे थे. टनल में 17 दिनों तक जिंदगी से जद्दोजहद के दौरान कई बार अंकित का विश्वास डगमगाया, लेकिन घर-परिवार के साथ देशवासियों की दुआओं का असर रहा कि चमत्कार हुआ और सभी सुरक्षित निकले. अंकित ने "ईटीवी भारत" से टनल में गुजारे दिनों के संघर्ष की आपबीती साझा की.

टनल में फंसे मजदूरों की आपबीती.
टनल में फंसे मजदूरों की आपबीती.

...ऐसा लगा कि बाहर नहीं आ पाएंगे : अंकित बताते हैं कि श्रावस्ती के लगभग 30 लोग इस कंपनी में काम करते हैं. डे नाइट की शिफ्ट लगती है. नाइट ड्यूटी के दौरान श्रावस्ती के छह लोग सुरंग में फंस गए थे, जो बच गए वह घर चले गए थे. दो-तीन दिन तक तो कोई उम्मीद ही नहीं बची थी कि हम बाहर निकल पाएंगे. कुछ दिन बाद जब पता चला कि बाहर काम शुरू हो गया है. मशीनों से काम चालू हो गया है. जब बातचीत होने लगी और भरोसा दिया जाने लगा कि बहुत जल्द आपको बाहर निकाल लिया जाएगा तो थोड़ा बहुत विश्वास बढ़ा कि अब हम लोग भी बाहर निकाल सकते हैं. जब मशीन बार-बार खराब होने की खबर आने लगी तो झटका लग रहा था. जब मशीन चालू हो जाती थी तो उम्मीद जाग जाती थी. कभी बताया जाता था कि मशीन से प्रेशर नहीं बन पा रहा है, खोदाई नहीं हो पा रही तो ऐसा लगता था कि अब नहीं निकल पाएंगे. टनल में फंसे हुए पहली बार छह दिन बाद पत्नी से बात हुई थी. पत्नी बहुत ज्यादा परेशान थी. बहुत बीमार हो गई थी. दवा शुरू हो गई थी. मैंने उसे समझाया कि टेंशन बिल्कुल मत लो. अभी फंसे हुए हैं, लेकिन हम जरूर बाहर निकल आएंगे. हमारे साथ केंद्र और उत्तराखंड सरकार है. तेजी से काम कराया जा रहा है.

टनल में फंसे थे ये मजदूर.
टनल में फंसे थे ये मजदूर.



पीने और फ्रेश होने के लिए एक ही पाइप से आता था पानी : अंकित बताते हैं कि टनल के अंदर फ्रेश होने के लिए बाहर से पानी टपकता था. वही पीने और फ्रेश होने के लिए इस्तेमाल होता था. 10 दिनों तक ऐसे चलता रहा. बाद में जब छह इंच का पाइप आया तो उसमें फ्रेश होने के लिए टूथब्रश, अंडरवियर चेंज करने के लिए कपड़े भी आए. इसके बाद सब कुछ मिलने लगा. खाने के लिए फल भी आए और ड्राई फ्रूट भी. इस तरह की व्यवस्था से किसी का स्वास्थ्य खराब नहीं हुआ. उम्मीद तो हम सभी को थी कि हम लोग निकल जरूर बाहर जाएंगे, लेकिन जब दिन ज्यादा लग रहे थे तो उम्मीद धूमिल होती जा रही थी.




दुआओं का हुआ असर : 17 दिन तक टनल में फंसे रहने के दौरान क्या गुजरी इस बारे में मिर्जापुर निवासी अखिलेश सिंह "ईटीवी भारत" से बताते हैं कि इतनी समस्या नहीं थी. हमें इतना मैसेज था कि हमारी कंपनी की पूरी टीम लगी हुई है. 16 से 17 घंटे बाद ऑक्सीजन अंदर आने लगी. खाने पीने की चीजें आनी शुरू हो गईं फिर टेंशन थोड़ी कम हो गई. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी लगातार हम लोगों से संपर्क में थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार मुख्यमंत्री से टनल के अंदर फंसे श्रमिकों का हाल-चाल ले रहे थे. 140 करोड़ देशवासियों की दुआएं हम सभी के साथ थीं. यह भारत की जीत है और हम लोग इसी वजह से बाहर निकल पाए. अखिलेश का कहना है कि सबकी सोच एक जैसी नहीं होती है. हौसला हमने बनाए रखा था. हमें यह पता था कि हमारी टीम लगी हुई है तो कुछ न कुछ तो निष्कर्ष निकलेगा ही. हमने हिम्मत नहीं तोड़ी. कुछ लोगों को जरूर लग रहा था कि नहीं निकाल पाएंगे, लेकिन वहीं पर आपस में हिम्मत बंधने वाले भी लोग थे, जो लगातार हौसला बढ़ाते रहे.

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Last Updated : Dec 2, 2023, 6:20 AM IST
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