हैदराबाद: 2-3 जुलाई को तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में आयोजित बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने देशभर से बीजेपी नेता दक्षिण भारत पहुंचे थे. उत्तराखंड बीजेपी के सभी दिग्गज भी इस बैठक में शामिल हुए. बैठक के साथ ही इन नेताओं ने हैदराबाद और आसपास के इलाकों का दौरा भी किया. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी बैठक के बाद हैदराबाद स्थित एशिया की सबसे बड़ी रामोजी फिल्म सिटी पहुंचे. इस मौके पर ईटीवी भारत के साथ उन्होंने कई प्रमुख मुद्दों पर बात की.
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से बातचीत की शुरुआत झारखंड हाईकोर्ट के उस फैसले के साथ की गई जिसमें TSR को क्लीन चिट देते हुए उनका नाम याचिका से हटाने का आदेश हुआ है. एक दिन पहले ही ये सुनवाई वर्ष 2018 में सरकार गिराने की साजिश और ब्लैकमेल करने के मामले में आरोपित उमेश शर्मा की याचिका पर हुई थी. झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने याचिका से त्रिवेंद्र सिंह रावत का नाम हटाने का निर्देश दिया है.
सवाल: झारखंड हाईकोर्ट से आपको जिस मामले में क्लिन चिट मिली है, वो क्या पूरा मामला था. कैसे ये संज्ञान में आया था. उसे रचा कैसे गया था?
त्रिवेंद्र सिंह रावत: वो पूरा एक षड्यंत्र था. मैं उसमें कभी पार्टी था ही नहीं. एक तथाकथित पत्रकार और खुद को सोशल एक्टिविस्ट कहने वाले व्यक्ति ने मनगढ़ंत आरोप लगाया था. पहले उन्होंने उत्तराखंड हाईकोर्ट में ये केस डाला था. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी तब कहा था इसमें मेरा कोई मतलब नहीं है तो फिर किस तरह से आरोप लगाया गया. फिर उस व्यक्ति ने हाईकोर्ट को एफिडेविट दिया कि वो सारे आरोपों को वापस ले रहे हैं.
अब जब उत्तराखंड हाईकोर्ट से उन्होंने मुंह के खाई तो वो झारखंड हाईकोर्ट पहुंच गए. वहां पर किसी व्यक्ति ने उनके खिलाफ एक मुकदमा डाला था. उन्होंने उस मुकदमे में हमको भी मिला दिया. कोर्ट ने जब देखा तो कहा कि मेरा इससे कोई मतलब नहीं है और कोर्ट ने मुझे याचिका से बाहर कर दिया. एक तरीके से कोर्ट का बहुत अच्छा जजमेंट रहा है. जो कोर्ट से अपेक्षा की जाती है उसी तरह का निर्णय रहा है. जो लोग इस तरह के षड्यंत्र करते हैं उनको भी सबक मिला है कि आप किसी पर भी मनगढ़ंत आरोप नहीं लगा सकते. मुझे चिंता ये थी कि मेरे 40 साल के राजनीतिक करियर में हमारे ऊपर प्रश्नचिन्ह लग गया था, आज उसको कोर्ट ने समाप्त करने का काम किया है.
सवाल: आप लोग राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के लिए यहां हैदराबाद आए थे. तेलंगाना के लिए तैयारी भी एक बड़ी चुनौती है. यहां के सीएम ने आप लोगों को कहा है कि यहां आए हैं तो कुछ सीख लीजिए. कई दिनों से आप लोग यहां पर प्रवास पर हैं, क्या-क्या सीखे हैं अभी तक?
त्रिवेंद्र सिंह रावत: जो हमारे सीनियर लीडर्स और कुछ मिनिस्टर्स हैं उनको पार्टी ने नेशनल एक्जीक्यूटिव मीटिंग से 4 दिन पहले यहां पर भेजा था और कहा था कि या पार्टी वर्करों से मिलिए, उनके साथ बैठिए और विचार-विमर्श कीजिए. इन सभी लोगों ने चार-पांच दिन का समय यहां पर बिताया और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ जनता से भी मिले. अब यहां के सीएम केसीआर जो भी कहते हैं, वो एक पॉलिटिकल पार्टी हैं, हर किसी को कहने का अधिकार है. लेकिन इस बार हम ये कह सकते हैं कि तेलंगाना में बड़ा भारी चेंज होगा.
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सवाल: चुनौती भी आपके लिए बड़ी भारी है. जिस स्किल्ड इंडिया की आप बात करते हैं या आधुनिक भारत की बात करते हैं. उस पर यहां के सीएम कहते हैं कि हैदराबाद पहले से ही स्किल्ड और आगे रहा है. आप उनपर योजनाओं का नाम बदलने के आरोप लगाते हैं लेकिन आप तो शहरों का नाम बदलते हैं.
त्रिवेंद्र सिंह रावत: यहां के सीएम ने तमाम भारत सरकार की योजनाओं का नाम बदला है, जो नैतिक रूप से सही नहीं है. वहीं, शहरों का नाम बदलने की अलग बात है, उसमें प्राचीनता है और उसके ऐतिहासिक कारण है. आक्रांताओं ने देश के आराध्य केंद्रों को भ्रष्ट करने का प्रयास किया और तब उनके नाम बदले गए, वहां तोड़फोड़ की गई. उन नामों को हमने पुनर्जीवित किया है. ये अलग चीज है. लेकिन योजनाओं का नाम बदलकर अपने नाम पर कर देना ये उचित नहीं है क्योंकि इन योजनाओं की 100 फीसदी फंडिंग भारत सरकार कर रही है. लोकतंत्र में ये ठीक है, एक संघीय लोकतांत्रिक देश में हम ये कर सकते हैं लेकिन परंपरा कहती है कि ऐसा किया नहीं जाना चाहिए.
सवाल: जहां तक नाम बदलने की बात है तो आप पर राजनीतिक आरोप भी लगते हैं कि मध्यप्रदेश में सरकार ने तोड़फोड़ करके आपने मुख्यमंत्री बदल दिया. महाराष्ट्र में आपने तोड़फोड़ कर पार्टी बदल दी, मुख्यमंत्री का नाम बदल दी. नाम बदलते और तोड़फोड़ करने का आरोप तो आप पर लगता है.
त्रिवेंद्र सिंह रावत: ये लोग अपने कुनबों को संभाल नहीं पा रहे हैं. हमने किसी को नहीं तोड़ा. शिवसेना का एक मुख्य पार्ट शिंदे गुट अलग चला गया. भारतीय जनता पार्टी ने तो अपना मुखिया भी नहीं बनाया. वो अपने कुनबे को संभाल नहीं पा रहे हैं. उनका सीधा-सीधा आरोप है कि जो ठाकरे हैं वो अपनी पार्टी को संभाल कर नहीं चल पाए. बाला साहेब ने जिस हिंदुत्व के मुद्दे पर शिवसेना को खड़ा किया था उससे वो पूरी तरह भटक गए और तुष्टीकरण में लग गए जैसे कांग्रेस और एनसीपी जैसे अन्य दल हैं. इसलिए उनका वैचारिक मतभेद हुआ. इसी मतभेद के कारण वो अलग हुए हैं. भारतीय जनता पार्टी ने तो महाराष्ट्र में दोबारा चुनाव होने से बचाया है.
सवाल: राजनीति में बीजेपी राज्य के अनुसार नीति बना लेती है, समझौता कर लेती है. अगर हम कश्मीर में ना जाएं सीधे उत्तराखंड चले तो ये राज्य प्रयोगशाला बन गया है. मुख्यमंत्रियों को एक के बाद एक जिस तरीके से बदला गया है. वहीं बदलाव की राजनीति भी उत्तराखंड में दिखती है, आप पर ये भी आरोप हैं कि आप हरीश रावत के साथ फोटो में दिखते हैं.
त्रिवेंद्र सिंह रावत: उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जहां पर दोनों पार्टियां, चाहे वो कांग्रेस हो या बीजेपी, दोनों के नेता हंसते मुस्कुराते बात करते हैं. देश में ऐसा कहीं किसी दूसरे राज्य में नहीं होता.
सवाल: आप की नीति जो दिल्ली से चलती है क्या वह उत्तराखंड में बदल जाती है? आप कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं और कांग्रेसी नेता के साथ हंसते मुस्कुराते आपकी फोटो सामने आती है.
त्रिवेंद्र सिंह रावत: कांग्रेस मुक्त भारत का मतलब है कांग्रेस की विचारधारा से मुक्ति. उस विचारधारा से हम देश को मुक्त करना चाहते हैं जिसने देश को कमजोर करने का काम किया है, देश को खोखला करने का काम किया है. हमारी किसी व्यक्ति से कोई लड़ाई नहीं है. नाराजगी अगर किसी से है तो देश के लिए है. हमारे देश सबसे पहले है, हमारे लिए पार्टी भी सेकेंडरी है और अपना स्थान तो बहुत पीछे है.
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सवाल: राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि 2018 में आपने मध्य प्रदेश और राजस्थान गंवाया. 2019 में झारखंड आपके हाथ से निकल गया फिर महाराष्ट्र निकला. अब भाजपा के नीति में ये बदलाव आ गया है कि वो कांग्रेस मुक्त भारत नहीं कांग्रेसी नीति मुक्त भारत कह रहे हैं.
त्रिवेंद्र सिंह रावत: हमेशा विरोध नीतियों का ही है. पहले भी वही विरोध था, परिवारवाद का विरोध है. परिवारवाद राजतंत्र का B कॉपी हो गया है, इसलिए हम उससे मुक्त भारत की बात करते हैं. कांग्रेस की नीतियों से मुक्त भारत की बात करते हैं. जहां तक मध्य प्रदेश और राजस्थान में हार की बात है तो ये भी देखना होगा कि पूर्वोत्तर राज्य आज हमारे हाथों में आया है. उत्तराखंड में दोबारा हम अपनी सरकार बना पाए हैं. गुजरात हमने जीता हैं. अब हिमाचल में भी उत्तराखंड की तरह इतिहास बदलेगा.
सवाल: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक सपना है कि उत्तराखंड को वहां खड़ा कर देना है जहां वो अन्य राज्यों से काफी आगे होगा. लेकिन उत्तराखंड में तो पहला मुख्यमंत्री कोई नीति बनाता है और दूसरा उससे सहमत नहीं होता है. देवस्थानम बोर्ड का जिस तरह फैसला पलटा गया उससे सवाल उठते हैं.
त्रिवेंद्र सिंह रावत: कई बार ऐसा होता है कि सरकार ने कोई निर्णय लिया लेकिन वो जनता को नहीं समझा पाते. अब आम जनता ये चीज महसूस कर रही है कि देवस्थानम बोर्ड की आवश्यकता है. जैसे इस समय यात्रा चल रही है तो लोगों की प्रतिक्रिया सामने आ रही है. आज ये मुद्दा प्रदेश में बहस का विषय है, लेकिन तब हम कहीं ना कहीं जनता को और वहां के पुरोहित समाज को समझा पाने में नाकाम रहे कि इसमें उनके हितों के साथ कहीं खिलवाड़ नहीं हो रहा है, उनका जो अधिकार है बना हुआ है.
जो बदरी-केदार मंदिर समिति है वो पहले से ही यात्रा गवर्न करती है, उसमें हमने 2 स्थानों यमुनोत्री और गंगोत्री को और जोड़ा ताकि चारों धाम एकीकृत हो जाए. एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को उसका सीईओ बनाया गया ताकि उसकी अच्छी मॉनिटरिंग हो सके और फंडिग भी अच्छी होगी. मुख्यमंत्री उसके पदेन अध्यक्ष होंगे. आंध्र प्रदेश में तिरुपति देवस्थानम बोर्ड है उसके भी अध्यक्ष मुख्यमंत्री हुआ करते हैं लेकिन ये सवाल उठे कि हिंदू तीर्थ है वहां ईसाई कैसे अध्यक्ष हो सकता है. इसलिए हमने चारधाम देवस्थानम बोर्ड में ये ख्याल रखा गया कि जो भी अध्यक्ष होगा वो हिंदू ही होगा.
सवाल: उत्तराखंड में आप देवस्थानम बोर्ड को नहीं समझा पाए और देश को अग्निवीर योजना के बारे में नहीं समझा पाए.
त्रिवेंद्र सिंह रावत: देखिए, वो लोग सड़क पर हैं जो वास्तव में उस कैटेगरी से बाहर हो गए हैं. उसका एक राजनीतिक विरोध हो रहा है.
सवाल: नूपुर शर्मा केस को भी आप पूरे देश को नहीं समझा पाए.
त्रिवेंद्र सिंह रावत: नूपुर शर्मा केस को पूरे देश ने समझा है. जो भी देश भर में प्रतिक्रिया आ रही है वो भी सब देख रहे हैं. नूपुर शर्मा की डिबेट में जिन सज्जन के साथ बहस हो रही थी उनको नूपुर शर्मा ने कई बार कहा था कि हम भी ऐसा कह सकते हैं लेकिन जब उनकी समझ में नहीं आया तो नूपुर शर्मा ने वो कहा जो मुस्लिम ग्रंथ में है. उन्होंने जो कहा उसे देश से अच्छी तरह समझा है.
सवाल: नूपुर शर्मा केस में बीजेपी की नीति क्या थी.
त्रिवेंद्र सिंह रावत: इसमें बीजेपी की नीति थी किसी के बारे में भी जो हमारे आराध्य हैं या किसी भी धर्म के आराध्य हैं, हम सर्व धर्म सम्भाव में विश्वास रखते हैं. ये बात सच है कि अगर किसी की भावनाएं आहत होती हैं तो उसे नहीं बोलना चाहिए.
सवाल: दिल्ली और उत्तराखंड में क्या सचमुच बीजेपी में सब कुछ एक जैसा चल रहा है या विरोध अभी भी है.
त्रिवेंद्र सिंह रावत: ऐसा बिल्कुल नहीं है बीजेपी एकजुट है. सरकार पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में बहुत अच्छा काम कर रही है, क्योंकि अभी सरकार को दोबारा सत्ता में आए कुछ ही दिन हुए हैं. युवा मुख्यमंत्री हैं और उनके नेतृत्व में सरकार बहुत बेहतर काम सरकार करेगी.
सवाल: जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड के लिए 10 साल वाला टारगेट रखा है, उसे समझना चाहेंगे.
त्रिवेंद्र सिंह रावत: प्रधानमंत्री ने कहा है कि जो अगला दशक होगा वो उत्तराखंड का होगा. जो आज ऑल वेदर रोड बनी है, पहाड़ों पर रेल कनेक्टिविटी हुई है, एयर सर्विस हुई है, इनकी आज से 20 साल पहले साल कार्यसमिति बैठक में चर्चा हो चुकी है. साल 2001 में जब नरेंद्र मोदी एक संगठन महामंत्री और उत्तराखंड के प्रभारी थे तब उन्होंने ये विषय कार्यसमिति बैठक में रखा था और तब सौभाग्य से ये बैठक बदरीनाथ में ही हुई थी. उन्होंने अभी ये घोषणा की है, उसपर काम होगा. प्रधानमंत्री जो बोलते हैं वो बोलकर भूलते नहीं है, एक-एक बात उनकी डायरी में नोट होती है.
कौन हैं त्रिवेंद्र सिंह रावत:
- 1979 में राजनीतिक सफर शुरू किया और इसी वर्ष त्रिवेंद्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े.
- 1981 में संघ के प्रचारक के रूप में काम करने का संकल्प लिया.
- 1985 में देहरादून महानगर के प्रचारक बने.
- 1993 में वो भाजपा के क्षेत्रीय संगठन मंत्री.
- 1997 में भाजपा प्रदेश संगठन महामंत्री बने.
- 2002 में भाजपा प्रदेश संगठन महामंत्री बने.
- 2002 विधानसभा चुनाव में डोईवाला विधानसभा से विजयी हुए.
- 2007 में डोईवाला विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीते. भारतीय जनता पार्टी के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने.
- 2017 में दोबारा डोईवाला विधानसभा से जीत. 17 मार्च 2017 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री नियुक्त हुए.