नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश सरकार ने लखीमपुर खीरी हिंसा ( Lakhimpur Kheri violence) मामले में प्रतिदिन के आधार पर राज्य की एसआईटी जांच की निगरानी उच्चतम न्यायालय की ओर से नियुक्त पूर्व न्यायाधीश से कराने के सुझाव पर सोमवार को सहमति व्यक्त की.
तीन अक्टूबर को हुई इस हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी. प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना (Chief Justice NV Ramana ), न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justices Surya Kant) और न्यायमूर्ति हिमा कोहली (Justices Kohli) की पीठ ने एसआईटी जांच में छोटी रैंक के पुलिस अधिकारियों के शामिल होने के मुद्दे को भी उठाया और उत्तर प्रदेश काडर के उन भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के अधिकारियों के नाम भी मांगे जो राज्य के मूल निवासी नहीं हैं ताकि उन्हें जांच टीम में शामिल किया जा सके.
पीठ ने कहा कि उसे संबंधित न्यायाधीश की सहमति भी लेनी होगी और इस सनसनीखेज मामले की निगरानी के लिए शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों के नाम पर भी विचार करना होगा. पीठ ने कहा कि नाम की घोषणा वह बुधवार को करेगी.
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वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी कि राज्य को शीर्ष अदालत द्वारा जांच की निगरानी के लिए अपनी पसंद के पूर्व न्यायाधीश की नियुक्ति से कोई समस्या नहीं है, लेकिन वह उत्तर प्रदेश का मूल निवासी नहीं होना चाहिए यह बात मन में नहीं होनी चाहिए क्योंकि संबंधित व्यक्ति एक प्रासंगिक कारक है.
उच्चतम न्यायालय ने आठ नवंबर को जांच पर असंतोष व्यक्त करते हुए सुझाव दिया था कि जांच में 'स्वतंत्रत और निष्पक्षता' लाने के लिए, एक 'अलग उच्च न्यायालय' के एक पूर्व न्यायाधीश को दिन-प्रतिदिन आधार पर इसकी निगरानी करनी चाहिए.
पीठ ने यह भी कहा था कि उसे भरोसा नहीं है और वह नहीं चाहती कि राज्य द्वारा नियुक्त एक सदस्यीय न्यायिक आयोग मामले की जांच जारी रखे. लखीमपुर खीरी जिले में तिकोनिया-बनबीरपुर मार्ग पर हुई हिंसा की जांच के लिए राज्य सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश प्रदीप कुमार श्रीवास्तव को नामित किया था.
(पीटीआई-भाषा)