नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में तमिलनाडु के मंत्री वी सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी को बरकरार रखने के मद्रास हाई कोर्ट के 14 जुलाई के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी तथा उनकी पत्नी की याचिकाओं पर शुक्रवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से जवाब मांगा. न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति एम सुंदरेश की पीठ ने याचिकाओं पर ईडी को नोटिस जारी किया और मामले पर अगली सुनवाई के लिए 26 जुलाई की तारीख तय की.
मंत्री और उनकी पत्नी ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष न्यायालय में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं. बालाजी की गिरफ्तारी को बरकरार रखने के अलावा हाई कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में एक सत्र अदालत द्वारा उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजने के फैसले को भी वैध करार दिया था. धन शोधन का यह मामला राज्य परिवहन विभाग में नौकरी के बदले नकदी के कथित घोटाले से निकला है और यह कथित घोटाला उस समय का है जब बालाजी परिवहन मंत्री थे.
बालाजी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर अदालत को विचार करना है - दो न्यायाधीशों की पीठ ने खंडित फैसला दिया था, फिर तीसरे न्यायाधीश ने परस्पर विरोधी दृष्टिकोण का निपटारा किया और अब मामला शीर्ष अदालत के समक्ष है.
सिब्बल ने कहा कि यदि वे पुलिस अधिकारी नहीं हैं, तो ईडी अधिकारी सीआरपीसी की धारा 167 के तहत उनके मुवक्किल को हिरासत में नहीं ले सकते हैं और इसलिए, उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजना होगा और बताया कि उनका मुवक्किल 15 दिनों तक अस्पताल में था, जिसे बाहर रखा जाना चाहिए. सिब्बल ने कहा कि इस मामले पर विस्तार से सुनवाई की जरूरत है.
ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) न्यायिक हिरासत का प्रावधान नहीं करता है. मेहता ने कहा कि किसी व्यक्ति को सिर्फ न्यायिक हिरासत में भेजने के लिए उसे गिरफ्तार करने का कोई मतलब नहीं है और गिरफ्तारी की पूरी बात ही निरर्थक हो जाएगी. मेहता ने कहा कि 15 दिन की अवधि खत्म हो गई है और वह अस्पताल में हैं, लेकिन उच्च न्यायालय ने माना है कि ईडी को उन्हें हिरासत में लेने का अधिकार है और इस बात पर जोर दिया कि मामले की जांच करना उनका कर्तव्य है..