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गुजरात दंगा: PM मोदी को क्लीन चिट के खिलाफ जाकिया जाफरी की याचिका खारिज - गुजरात दंगों के मामले परसुप्रीम कोर्ट

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने ये फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने सात महीने पहले 9 दिसंबर 2021 को जाकिया जाफरी की याचिका पर मैराथन सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था.

सुप्रीम कोर्ट , zakia jafri plea in 2002 gujarat riots
सुप्रीम कोर्ट , zakia jafri plea in 2002 gujarat riots
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Published : Jun 24, 2022, 10:54 AM IST

Updated : Jun 24, 2022, 7:07 PM IST

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी. यह याचिका गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने दायर की थी. न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की एक पीठ ने मामले को दोबारा शुरू करने के सभी रास्ते बंद करते हुए कहा कि जांच के दौरान एकत्रित की गई समाग्री से मुसलमानों के खिलाफ सामूहिक हिंसा भड़काने के लिए सर्वोच्च स्तर पर आपराधिक षड्यंत्र रचने संबंधी कोई संदेह उत्पन्न नहीं होता है.

पीठ ने कहा कि जकिया की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. अदालत ने किसी गुप्त उद्देश्य के लिए मामले को जारी रखने की गलत मंशा का जिक्र करते हुए कहा कि जो प्रक्रिया का इस तरह से गलत इस्तेमाल करते हैं, उन्हें कटघरे में खड़ा करके उनके खिलाफ कानून के दायरे में कार्रवाई की जानी चाहिए.

एसआईटी ने आठ फरवरी, 2012 को (अब प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों सहित 63 अन्य लोगों को क्लीन चिट देते हुए एक क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसमें कहा गया था कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने योग्य सबूत नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि एसआईटी अपनी जांच के दौरान एकत्रित सभी सामग्रियों पर विचार करने के बाद इस राय पर पहुंची थी.

जकिया ने उच्च न्यायालय के पांच अक्टूबर, 2017 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अदालत ने एसआईटी की रिपोर्ट के खिलाफ उनकी याचिका को खारिज कर दिया था. पीठ ने 452 पृष्ठ के अपने आदेश में कहा, 'हम मामले की जांच के सिलसिले में कानून के उल्लंघन और अंतिम रिपोर्ट को लेकर मजिस्ट्रेट तथा उच्च न्यायालय के रुख के खिलाफ अपीलकर्ता के प्रतिवेदन से सहमत नहीं हैं.'

एसआईटी के कार्य की सराहना:
शीर्ष अदालत ने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में विशेष जांच दल (एसआईटी) के 'अथक प्रयासों के लिए उसकी सराहना की और कहा कि उसने बेहतरीन काम किया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि 2002 में संबंधित अवधि के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ सामूहिक हिंसा करने और भड़काने को लेकर बड़े आपराधिक षड्यंत्र (उच्चतम स्तर पर) के संबंध में आठ फरवरी, 2012 को अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने में एसआईटी के दृष्टिकोण में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है. पीठ ने कहा कि यह मजबूत तर्क द्वारा समर्थित है, विश्लेषणात्मक सोच को उजागर करता है और आरोपों को खारिज करने के लिए सभी पहलुओं से निष्पक्ष रूप से विचार करता है.

पीठ ने कहा, संबंधित अवधि के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ राज्य भर में बड़े पैमाने पर हिंसा का कारण बनने या भड़काने के लिए बड़ा आपराधिक षड्यंत्र किए जाने के संबंध में संबंधित आरोपों के एसआईटी द्वारा किए गए विश्लेषण के बाद हमें इस तरह की राय को स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि नामित आरोपियों के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता. पीठ ने कहा कि उच्चतम स्तर पर एक बड़े षड्यंत्र के आरोप के संबंध में नयी सामग्री, सूचना की उपलब्धता पर आगे की जांच का सवाल उठता, जो इस मामले में सामने नहीं आयी. शीर्ष अदालत ने कहा कि एसआईटी को अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में हुई घटनाओं सहित नौ अपराधों की जांच का जिम्मा सौंपा गया था.

पीठ ने कहा कि उन सभी मामलों में जांच की प्रगति के संबंध में स्थिति रिपोर्ट शीर्ष अदालत को प्रस्तुत की गई थी और एसआईटी द्वारा उचित जांच के पूरा होने के बारे में अदालत की संतुष्टि के बाद दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत संबंधित मामलों में रिपोर्ट दाखिल करने के बाद अपराध में शामिल व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया गया. पीठ ने कहा कि एसआईटी के सदस्यों द्वारा ईमानदारी, निष्पक्षता और इन सभी मामलों में शीर्ष अदालत की संतुष्टि के साथ किए गए कार्य के बावजूद अपीलकर्ता की दलील एसआईटी सदस्यों की निष्ठा और ईमानदारी को कमतर बताने की तरह है.

पीठ ने कहा, हम एसआईटी अधिकारियों की टीम द्वारा चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में किए गए अथक कार्य के लिए उनकी सराहना करते हैं और हमारा मानना है कि उन्होंने सफलतापूर्वक इस कार्य को अंजाम दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह निश्चित रूप से एक बड़ी साजिश के आरोपों की उचित जांच करने में एसआईटी की विफलता का मामला नहीं है. पीठ ने कहा, यह रेखांकित करने की आवश्यकता नहीं है कि इस अदालत द्वारा जटिल अपराधों की जांच करने की सिद्ध क्षमता वाले अनुभवी वरिष्ठ अधिकारियों की एसआईटी का गठन किया गया था.

पीठ ने कहा कि जकिया जाफरी के पति की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या सहित इस संबंध में प्रत्येक दर्ज अपराध की अदालत द्वारा नियुक्त एसआईटी द्वारा विधिवत जांच की गई और ऐसे अपराधों में शामिल आरोपियों की पहचान की गई तथा उन्हें अदालत के समक्ष मुकदमे का सामना करना पड़ा. पीठ ने कहा कि मजिस्ट्रेट के साथ उच्च न्यायालय ने एसआईटी द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है.

यह भी पढ़ें- हैदरपोरा मुठभेड़: आमिर माग्रे का शव निकालने की याचिका पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

पीठ ने कहा कि संदेह पैदा करने लायक कोई सामग्री नहीं है (अगर इस मजबूत संदेह को छोड़ दें और यह आधार कि नामित अपराधियों ने बड़ी साजिश का अपराध किया था) जिससे कि खासकर नौकरशाहों, राजनेताओं, लोक अभियोजकों, विश्व हिंदू परिषद (विहिप), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), बजरंग दल या राज्य के राजनीतिक प्रतिष्ठान के सदस्यों के लिए किसी स्तर पर सभी संबंधितों की बैठक का संकेत मिले. पीठ ने कहा कि संबंधित अवधि के दौरान राज्य भर में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ सामूहिक हिंसा फैलाने और उसे भड़काने के लिए उच्चतम स्तर पर साजिश करने के संबंध में कोई सामग्री नहीं है.

गुजरात दंगों में हुई थी एहसान जाफरी की मौत
कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में मारे गए 68 लोगों में शामिल थे. इससे एक दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 लोग मारे गए थे. इन घटनाओं के बाद ही गुजरात में दंगे भड़क गए थे. इन दंगों में 1044 लोग मारे गए थे, जिसमें से अधिकतर मुसलमान थे. इस संबंध में विवरण देते हुए, केंद्र सरकार ने मई 2005 में राज्यसभा को सूचित किया था कि गोधरा कांड के बाद के दंगों में 254 हिंदू और 790 मुस्लिम मारे गए थे.

शीर्ष अदालत ने जकिया की याचिका पर पिछले साल नौ दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था. शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान एसआईटी ने कहा था कि जकिया के अलावा किसी ने भी 2002 दंगे मामले में हुई जांच पर सवाल नहीं उठाए हैं. इससे पहले जकिया के वकील ने कहा था कि 2006 मामले में उनकी शिकायत है कि एक बड़ी साजिश रची गई, जिसमें नौकरशाही की निष्क्रियता और पुलिस की मिलीभगत थी और अभद्र भाषा एवं हिंसा को बढ़ावा दिया गया.

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी. यह याचिका गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने दायर की थी. न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की एक पीठ ने मामले को दोबारा शुरू करने के सभी रास्ते बंद करते हुए कहा कि जांच के दौरान एकत्रित की गई समाग्री से मुसलमानों के खिलाफ सामूहिक हिंसा भड़काने के लिए सर्वोच्च स्तर पर आपराधिक षड्यंत्र रचने संबंधी कोई संदेह उत्पन्न नहीं होता है.

पीठ ने कहा कि जकिया की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. अदालत ने किसी गुप्त उद्देश्य के लिए मामले को जारी रखने की गलत मंशा का जिक्र करते हुए कहा कि जो प्रक्रिया का इस तरह से गलत इस्तेमाल करते हैं, उन्हें कटघरे में खड़ा करके उनके खिलाफ कानून के दायरे में कार्रवाई की जानी चाहिए.

एसआईटी ने आठ फरवरी, 2012 को (अब प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों सहित 63 अन्य लोगों को क्लीन चिट देते हुए एक क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसमें कहा गया था कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने योग्य सबूत नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि एसआईटी अपनी जांच के दौरान एकत्रित सभी सामग्रियों पर विचार करने के बाद इस राय पर पहुंची थी.

जकिया ने उच्च न्यायालय के पांच अक्टूबर, 2017 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अदालत ने एसआईटी की रिपोर्ट के खिलाफ उनकी याचिका को खारिज कर दिया था. पीठ ने 452 पृष्ठ के अपने आदेश में कहा, 'हम मामले की जांच के सिलसिले में कानून के उल्लंघन और अंतिम रिपोर्ट को लेकर मजिस्ट्रेट तथा उच्च न्यायालय के रुख के खिलाफ अपीलकर्ता के प्रतिवेदन से सहमत नहीं हैं.'

एसआईटी के कार्य की सराहना:
शीर्ष अदालत ने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में विशेष जांच दल (एसआईटी) के 'अथक प्रयासों के लिए उसकी सराहना की और कहा कि उसने बेहतरीन काम किया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि 2002 में संबंधित अवधि के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ सामूहिक हिंसा करने और भड़काने को लेकर बड़े आपराधिक षड्यंत्र (उच्चतम स्तर पर) के संबंध में आठ फरवरी, 2012 को अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने में एसआईटी के दृष्टिकोण में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है. पीठ ने कहा कि यह मजबूत तर्क द्वारा समर्थित है, विश्लेषणात्मक सोच को उजागर करता है और आरोपों को खारिज करने के लिए सभी पहलुओं से निष्पक्ष रूप से विचार करता है.

पीठ ने कहा, संबंधित अवधि के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ राज्य भर में बड़े पैमाने पर हिंसा का कारण बनने या भड़काने के लिए बड़ा आपराधिक षड्यंत्र किए जाने के संबंध में संबंधित आरोपों के एसआईटी द्वारा किए गए विश्लेषण के बाद हमें इस तरह की राय को स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि नामित आरोपियों के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता. पीठ ने कहा कि उच्चतम स्तर पर एक बड़े षड्यंत्र के आरोप के संबंध में नयी सामग्री, सूचना की उपलब्धता पर आगे की जांच का सवाल उठता, जो इस मामले में सामने नहीं आयी. शीर्ष अदालत ने कहा कि एसआईटी को अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में हुई घटनाओं सहित नौ अपराधों की जांच का जिम्मा सौंपा गया था.

पीठ ने कहा कि उन सभी मामलों में जांच की प्रगति के संबंध में स्थिति रिपोर्ट शीर्ष अदालत को प्रस्तुत की गई थी और एसआईटी द्वारा उचित जांच के पूरा होने के बारे में अदालत की संतुष्टि के बाद दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत संबंधित मामलों में रिपोर्ट दाखिल करने के बाद अपराध में शामिल व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया गया. पीठ ने कहा कि एसआईटी के सदस्यों द्वारा ईमानदारी, निष्पक्षता और इन सभी मामलों में शीर्ष अदालत की संतुष्टि के साथ किए गए कार्य के बावजूद अपीलकर्ता की दलील एसआईटी सदस्यों की निष्ठा और ईमानदारी को कमतर बताने की तरह है.

पीठ ने कहा, हम एसआईटी अधिकारियों की टीम द्वारा चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में किए गए अथक कार्य के लिए उनकी सराहना करते हैं और हमारा मानना है कि उन्होंने सफलतापूर्वक इस कार्य को अंजाम दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह निश्चित रूप से एक बड़ी साजिश के आरोपों की उचित जांच करने में एसआईटी की विफलता का मामला नहीं है. पीठ ने कहा, यह रेखांकित करने की आवश्यकता नहीं है कि इस अदालत द्वारा जटिल अपराधों की जांच करने की सिद्ध क्षमता वाले अनुभवी वरिष्ठ अधिकारियों की एसआईटी का गठन किया गया था.

पीठ ने कहा कि जकिया जाफरी के पति की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या सहित इस संबंध में प्रत्येक दर्ज अपराध की अदालत द्वारा नियुक्त एसआईटी द्वारा विधिवत जांच की गई और ऐसे अपराधों में शामिल आरोपियों की पहचान की गई तथा उन्हें अदालत के समक्ष मुकदमे का सामना करना पड़ा. पीठ ने कहा कि मजिस्ट्रेट के साथ उच्च न्यायालय ने एसआईटी द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है.

यह भी पढ़ें- हैदरपोरा मुठभेड़: आमिर माग्रे का शव निकालने की याचिका पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

पीठ ने कहा कि संदेह पैदा करने लायक कोई सामग्री नहीं है (अगर इस मजबूत संदेह को छोड़ दें और यह आधार कि नामित अपराधियों ने बड़ी साजिश का अपराध किया था) जिससे कि खासकर नौकरशाहों, राजनेताओं, लोक अभियोजकों, विश्व हिंदू परिषद (विहिप), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), बजरंग दल या राज्य के राजनीतिक प्रतिष्ठान के सदस्यों के लिए किसी स्तर पर सभी संबंधितों की बैठक का संकेत मिले. पीठ ने कहा कि संबंधित अवधि के दौरान राज्य भर में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ सामूहिक हिंसा फैलाने और उसे भड़काने के लिए उच्चतम स्तर पर साजिश करने के संबंध में कोई सामग्री नहीं है.

गुजरात दंगों में हुई थी एहसान जाफरी की मौत
कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में मारे गए 68 लोगों में शामिल थे. इससे एक दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 लोग मारे गए थे. इन घटनाओं के बाद ही गुजरात में दंगे भड़क गए थे. इन दंगों में 1044 लोग मारे गए थे, जिसमें से अधिकतर मुसलमान थे. इस संबंध में विवरण देते हुए, केंद्र सरकार ने मई 2005 में राज्यसभा को सूचित किया था कि गोधरा कांड के बाद के दंगों में 254 हिंदू और 790 मुस्लिम मारे गए थे.

शीर्ष अदालत ने जकिया की याचिका पर पिछले साल नौ दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था. शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान एसआईटी ने कहा था कि जकिया के अलावा किसी ने भी 2002 दंगे मामले में हुई जांच पर सवाल नहीं उठाए हैं. इससे पहले जकिया के वकील ने कहा था कि 2006 मामले में उनकी शिकायत है कि एक बड़ी साजिश रची गई, जिसमें नौकरशाही की निष्क्रियता और पुलिस की मिलीभगत थी और अभद्र भाषा एवं हिंसा को बढ़ावा दिया गया.

Last Updated : Jun 24, 2022, 7:07 PM IST
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