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माफिया से नेता बने अतीक अहमद की कहानी, चार दशक तक चले आतंक का 10 सेकेंड में कैसे हुआ अंत - माफिया अतीक अहमद

माफिया अतीक अहमद की जब हत्या की गई तब वह 61 साल का था. इससे पहले करीब चार दशक तक उसकी माफियागिरी का साम्राज्य चला. कैसे वह माफिया बना और कैसे नेता, जानिए इस पूरी रिपोर्ट में....

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Published : Apr 18, 2023, 3:42 PM IST

प्रयागराज: माफिया अतीक अहमद ने महज 17 साल की उम्र में पहली बार हत्या की घटना को अंजाम दिया था. उसका जन्म 10 अगस्त 1962 को हुआ था. 15 अप्रैल 2023 की रात को सरकारी अस्पताल में मेडिकल चेकअप करने के लिए अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को जब ले जाया जा रहा था तभी मीडिया के वेष में आए बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग करके दोनों को मौत के घाट उतार दिया. 61 साल के अतीक अहमद पर उसकी हत्या से पहले 102 मुकदमे दर्ज किए जा चुके थे. माफिया से नेता बने अतीक अहमद के खिलाफ आखिरी मुकदमा मार्च में दर्ज किया गया था.

शूटरों ने अतीक अशरफ को उसके ही अंदाज में मारा: अतीक अहमद और अशरफ के ऊपर कई लोगों की सरेआम हत्या करवाए जाने का आरोप लगता रहा है. जिस तरह से अतीक अहमद और अशरफ दूसरे लोगों को शूटरों से मरवाते थे. ठीक उसी अंदाज में शनिवार की रात को तीन शूटरों ने पुलिस कस्टडी में होने के बावजूद माफिया बंधुओं को गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतार दिया. अतीक अशरफ को मारने वाले शूटरों ने पहले से योजना बनाई थी और उसी योजना के अनुसार उन्होंने घटना को अंजाम भी दिया. इसके साथ ही 10 सेकेंड से भी कम समय में वारदात को करने के बाद तीनों ने सरेंडर कर दिया.

दसवीं फेल था माफिया अतीक: अतीक अहमद चकिया इलाके का रहने वाला था. पढ़ाई के दौरान से ही वह लड़ाकू किस्म का था. उसका पढ़ने में मन नहीं लगता था. अतीक अहमद दसवीं की परीक्षा में फेल हुआ, जिसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी. जिस उम्र में बच्चे खेलते हैं उसी 17 साल की उम्र में अतीक ने जरायम की दुनिया में कदम रख दिया था. 1979 में अतीक ने पहली हत्या की थी, जिसके बाद अतीक जुर्म की दुनिया में आगे ही बढ़ता गया और उसके खिलाफ 102 केस दर्ज हो चुके हैं.

राजनीति की दुनिया में रखा कदम: जुर्म की दुनिया में रसूख बढ़ने के बाद अतीक अहमद ने राजनीति की दुनिया में कदम रख दिया. राजनीति की दुनिया में भी अतीक अहमद को उसी तरह से सफलता मिलनी शुरू हो गई, जैसी जुर्म की दुनिया में मिलती थी. जुर्म और राजनीति की दुनिया में सफलता मिलने के बाद अतीक अहमद ने पूर्वांचल समेत यूपी के अलग अलग इलाके में सरकारी ठेकेदारी, खनन के साथ ही रियल स्टेट के कारोबार में एंट्री कर ली थी. जिससे इन धंधों में भी अतीक की मर्जी के बिना कोई काम नहीं कर सकता था.

जब पुलिस ने पहली बार खोली थी अतीक की हिस्ट्रीशीट: इसी के साथ 1990 के बाद से अतीक अहमद रंगदारी और उगाही भी शुरू कर चुका था. पिछले 30 साल से प्रयागराज और आसपास के जिलों के हर बड़े कारोबारी को अतीक अहमद को उसका हिस्सा देना पड़ता था. बताया जाता है की 30 साल पहले 1992 में पुलिस ने पहली बार अतीक अहमद की हिस्ट्रीशीट खोली थी. जिसमें जानकारी दी गई थी कि अतीक अहमद के खिलाफ यूपी में इलाहाबाद के अलावा लखनऊ, कौशाम्बी, चित्रकूट के अलावा बिहार में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के मामले हो गए थे. बाहुबली अतीक के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले प्रयागराज जिले में ही दर्ज हुए हैं. अतीक अहमद की मौत होने तक उसके खिलाफ कुल 102 केस दर्ज हो चुके थे.

2005 में राजू पाल की हत्या के बाद अतीक नहीं जीता कोई चुनाव: बसपा विधायक राजू पाल की 2005 में जब हत्या हुई थी, उस वक्त अतीक अहमद प्रयागराज की फूलपुर लोकसभा सीट से सांसद था. जिसके बाद हुई बदनामी के कारण सपा ने 2007 के विधानसभा चुनाव में उसे पार्टी से टिकट नहीं दिया. इसके साथ ही पार्टी से भी बाहर कर दिया था. यही वो समय था जिसके बाद से अतीक अहमद ने लोकसभा से लेकर विधानसभा तक चुनाव में दांव आजमाया लेकिन, उसे किसी भी चुनाव में कामयाबी नहीं मिली.

बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के बाद अतीक अहमद को राजनीति में असफलता ही हाथ लगी और 2017 में अतीक अहमद के जेल जाने के बाद उसका राजनीतिक करियर लगभग समाप्त होना शुरू हो गया था. जिसका आभास होते ही अतीक अहमद ने अपनी पत्नी शाइस्ता परवीन को दो साल पहले राजनीति की दुनिया में एआईएमआईएम के जरिए एंट्री करवा दी थी. अतीक अहमद की सेटिंग का ही नतीजा था कि 5 जनवरी को शाइस्ता परवीन बसपा में शामिल हो गई और महापौर के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने में जुट गई थी. लेकिन, उमेश पाल हत्याकांड से शाइस्ता का राजनीतिक सफर शुरू होने से पहले ही रुक गया.

मायावती की सरकार ने 2007 में शुरू की थी अतीक के खिलाफ कार्रवाई: यूपी में बसपा की सरकार बनने और मायावती के सीएम बनने के बाद अतीक अहमद के खिलाफ कार्रवाई का सिलसिला 2007 में शुरू हुआ था. मायावती के राज में अतीक अहमद के खिलाफ कानूनी शिकंजा कसने के साथ ही उसके साम्राज्य को ढहाने की कार्रवाई शुरू की गई थी. यही नहीं गिरफ्तारी के डर से बाहुबली सांसद अतीक फरार हो गया था.

उसके घर कार्यालय सहित कई जगहों की प्रॉपर्टी को न्यायालय के आदेश पर कुर्क किया गया था. इसके साथ ही अतीक अहमद के फरार होने के बाद उसके ऊपर 20 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया था. 20 हजार के इनामी सांसद की गिरफ्तारी के लिए पूरे देश में अलर्ट जारी कर दिया गया था. लेकिन, मायावती के डर से अतीक अहमद ने दिल्ली में समर्पण कर दिया था.

उमेश पाल बन गया अतीक अहमद का काल: गुजरात के साबरमती जेल में बंद अतीक को उमेश पाल अपहरण कांड में सजा सुनाई जानी थी. लेकिन, ठीक उसके पहले 24 फरवरी को उमेश पाल को उसके दो गनर के साथ गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतार दिया गया. इस मामले में अतीक अहमद के साथ ही उसके पूरे परिवार को आरोपी बनाया गया. इसी बीच एमपी एमएलए कोर्ट ने अतीक अहमद और उसके वकील खान शौलत हनीफ और दिनेश पासी को आजीवन कारावास की सजा सुना दी. इसी बीच अतीक अहमद को पुलिस ने कस्टडी रिमांड पर लिया था और पुलिस कस्टडी रिमांड के पूरा होने से पहले ही अतीक और अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई.

ये भी पढ़ेंः पति के जनाजे में शामिल न होने पर शाइस्ता परवीन को लेकर हो रहीं कई तरह की चर्चाएं, पुलिस टीमें फिर हुईं सक्रिय

प्रयागराज: माफिया अतीक अहमद ने महज 17 साल की उम्र में पहली बार हत्या की घटना को अंजाम दिया था. उसका जन्म 10 अगस्त 1962 को हुआ था. 15 अप्रैल 2023 की रात को सरकारी अस्पताल में मेडिकल चेकअप करने के लिए अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को जब ले जाया जा रहा था तभी मीडिया के वेष में आए बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग करके दोनों को मौत के घाट उतार दिया. 61 साल के अतीक अहमद पर उसकी हत्या से पहले 102 मुकदमे दर्ज किए जा चुके थे. माफिया से नेता बने अतीक अहमद के खिलाफ आखिरी मुकदमा मार्च में दर्ज किया गया था.

शूटरों ने अतीक अशरफ को उसके ही अंदाज में मारा: अतीक अहमद और अशरफ के ऊपर कई लोगों की सरेआम हत्या करवाए जाने का आरोप लगता रहा है. जिस तरह से अतीक अहमद और अशरफ दूसरे लोगों को शूटरों से मरवाते थे. ठीक उसी अंदाज में शनिवार की रात को तीन शूटरों ने पुलिस कस्टडी में होने के बावजूद माफिया बंधुओं को गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतार दिया. अतीक अशरफ को मारने वाले शूटरों ने पहले से योजना बनाई थी और उसी योजना के अनुसार उन्होंने घटना को अंजाम भी दिया. इसके साथ ही 10 सेकेंड से भी कम समय में वारदात को करने के बाद तीनों ने सरेंडर कर दिया.

दसवीं फेल था माफिया अतीक: अतीक अहमद चकिया इलाके का रहने वाला था. पढ़ाई के दौरान से ही वह लड़ाकू किस्म का था. उसका पढ़ने में मन नहीं लगता था. अतीक अहमद दसवीं की परीक्षा में फेल हुआ, जिसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी. जिस उम्र में बच्चे खेलते हैं उसी 17 साल की उम्र में अतीक ने जरायम की दुनिया में कदम रख दिया था. 1979 में अतीक ने पहली हत्या की थी, जिसके बाद अतीक जुर्म की दुनिया में आगे ही बढ़ता गया और उसके खिलाफ 102 केस दर्ज हो चुके हैं.

राजनीति की दुनिया में रखा कदम: जुर्म की दुनिया में रसूख बढ़ने के बाद अतीक अहमद ने राजनीति की दुनिया में कदम रख दिया. राजनीति की दुनिया में भी अतीक अहमद को उसी तरह से सफलता मिलनी शुरू हो गई, जैसी जुर्म की दुनिया में मिलती थी. जुर्म और राजनीति की दुनिया में सफलता मिलने के बाद अतीक अहमद ने पूर्वांचल समेत यूपी के अलग अलग इलाके में सरकारी ठेकेदारी, खनन के साथ ही रियल स्टेट के कारोबार में एंट्री कर ली थी. जिससे इन धंधों में भी अतीक की मर्जी के बिना कोई काम नहीं कर सकता था.

जब पुलिस ने पहली बार खोली थी अतीक की हिस्ट्रीशीट: इसी के साथ 1990 के बाद से अतीक अहमद रंगदारी और उगाही भी शुरू कर चुका था. पिछले 30 साल से प्रयागराज और आसपास के जिलों के हर बड़े कारोबारी को अतीक अहमद को उसका हिस्सा देना पड़ता था. बताया जाता है की 30 साल पहले 1992 में पुलिस ने पहली बार अतीक अहमद की हिस्ट्रीशीट खोली थी. जिसमें जानकारी दी गई थी कि अतीक अहमद के खिलाफ यूपी में इलाहाबाद के अलावा लखनऊ, कौशाम्बी, चित्रकूट के अलावा बिहार में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के मामले हो गए थे. बाहुबली अतीक के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले प्रयागराज जिले में ही दर्ज हुए हैं. अतीक अहमद की मौत होने तक उसके खिलाफ कुल 102 केस दर्ज हो चुके थे.

2005 में राजू पाल की हत्या के बाद अतीक नहीं जीता कोई चुनाव: बसपा विधायक राजू पाल की 2005 में जब हत्या हुई थी, उस वक्त अतीक अहमद प्रयागराज की फूलपुर लोकसभा सीट से सांसद था. जिसके बाद हुई बदनामी के कारण सपा ने 2007 के विधानसभा चुनाव में उसे पार्टी से टिकट नहीं दिया. इसके साथ ही पार्टी से भी बाहर कर दिया था. यही वो समय था जिसके बाद से अतीक अहमद ने लोकसभा से लेकर विधानसभा तक चुनाव में दांव आजमाया लेकिन, उसे किसी भी चुनाव में कामयाबी नहीं मिली.

बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के बाद अतीक अहमद को राजनीति में असफलता ही हाथ लगी और 2017 में अतीक अहमद के जेल जाने के बाद उसका राजनीतिक करियर लगभग समाप्त होना शुरू हो गया था. जिसका आभास होते ही अतीक अहमद ने अपनी पत्नी शाइस्ता परवीन को दो साल पहले राजनीति की दुनिया में एआईएमआईएम के जरिए एंट्री करवा दी थी. अतीक अहमद की सेटिंग का ही नतीजा था कि 5 जनवरी को शाइस्ता परवीन बसपा में शामिल हो गई और महापौर के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने में जुट गई थी. लेकिन, उमेश पाल हत्याकांड से शाइस्ता का राजनीतिक सफर शुरू होने से पहले ही रुक गया.

मायावती की सरकार ने 2007 में शुरू की थी अतीक के खिलाफ कार्रवाई: यूपी में बसपा की सरकार बनने और मायावती के सीएम बनने के बाद अतीक अहमद के खिलाफ कार्रवाई का सिलसिला 2007 में शुरू हुआ था. मायावती के राज में अतीक अहमद के खिलाफ कानूनी शिकंजा कसने के साथ ही उसके साम्राज्य को ढहाने की कार्रवाई शुरू की गई थी. यही नहीं गिरफ्तारी के डर से बाहुबली सांसद अतीक फरार हो गया था.

उसके घर कार्यालय सहित कई जगहों की प्रॉपर्टी को न्यायालय के आदेश पर कुर्क किया गया था. इसके साथ ही अतीक अहमद के फरार होने के बाद उसके ऊपर 20 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया था. 20 हजार के इनामी सांसद की गिरफ्तारी के लिए पूरे देश में अलर्ट जारी कर दिया गया था. लेकिन, मायावती के डर से अतीक अहमद ने दिल्ली में समर्पण कर दिया था.

उमेश पाल बन गया अतीक अहमद का काल: गुजरात के साबरमती जेल में बंद अतीक को उमेश पाल अपहरण कांड में सजा सुनाई जानी थी. लेकिन, ठीक उसके पहले 24 फरवरी को उमेश पाल को उसके दो गनर के साथ गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतार दिया गया. इस मामले में अतीक अहमद के साथ ही उसके पूरे परिवार को आरोपी बनाया गया. इसी बीच एमपी एमएलए कोर्ट ने अतीक अहमद और उसके वकील खान शौलत हनीफ और दिनेश पासी को आजीवन कारावास की सजा सुना दी. इसी बीच अतीक अहमद को पुलिस ने कस्टडी रिमांड पर लिया था और पुलिस कस्टडी रिमांड के पूरा होने से पहले ही अतीक और अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई.

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