नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में ‘एल्डरमैन’ नामित करने का अधिकार देने का मतलब है कि वह निर्वाचित नगर निकाय को अस्थिर कर सकते हैं और शीर्ष अदालत ने साथ ही इस बात पर हैरानी जतायी कि क्या यह नामांकन केंद्र के लिए इतना बड़ा चिंता का विषय है. प्रधान न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की पीठ ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में ‘एल्डरमैन’ को नामित करने के उपराज्यपाल के अधिकार को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए यह बात कही. एमसीडी के 250 निर्वाचित और 10 नामित सदस्य हैं.
आम आदमी पार्टी (आप) ने पिछले साल दिसंबर में हुए नगर निकाय चुनाव में 134 वार्ड में जीत हासिल की थी और एमसीडी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 15 साल के शासन को खत्म कर दिया था. चुनाव में भाजपा ने 104 सीट जीतीं और कांग्रेस ने नौ सीट अपने नाम कीं. पीठ ने कहा, "क्या एमसीडी में 12 विशिष्ट लोगों का नामांकन केंद्र के लिए इतना चिंता का विषय है? दरअसल, उपराज्यपाल को यह अधिकार देने का मतलब होगा कि वह लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई नगर समितियों को अस्थिर कर सकते हैं क्योंकि उनके (एल्डरमैन के) पास मतदान के अधिकार भी होंगे."
उपराज्यपाल के कार्यालय की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने दिल्ली के संदर्भ में कहा कि यह ध्यान रखना जरूरी है कि 69वां संशोधन आया और जीएनसीटीडी अधिनियम को अधिसूचित किया गया, जिसमें दिल्ली के शासन को लेकर व्यवस्था दी गई है. वर्ष 1991 के 69वें संशोधित अधिनियम ने केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के रूप में तैयार कर एक विशेष दर्जा दिया गया है. पीठ ने जैन से कहा कि उनका प्रतिवेदन से तात्पर्य है कि एमसीडी एक स्व:शासित संस्थान है और उपराज्यपाल जब अनुच्छेद 239एए के तहत मंत्रिपरिषद की सहायता तथा सलाह पर कार्य करते हैं तो उनकी भूमिका यहां प्रशासक की भूमिका से अलग है. अधिनियम का जिक्र करते हुए जैन ने कहा कि कुछ अधिकार हैं जो प्रशासकों को दिए जाते हैं और कुछ अन्य सरकार को दिए जाते हैं.
न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने जैन से पूछा कि क्या उनका मतलब है कि प्रशासक को दिए गए अधिकार राज्य से अलग हैं और राज्य सरकार को नहीं दिए जा सकते. दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि एमसीडी में लोगों को नामांकित करने के लिए राज्य सरकार को कोई अलग अधिकार नहीं दिया गया है और पिछले 30 वर्षों से उपराज्यपाल द्वारा शहर सरकार की सहायता तथा परामर्श पर ‘एल्डरमैन’ को नामित करने की प्रथा का पालन किया गया है. उन्होंने कहा, "एलजी कभी भी ‘एल्डरमैन’ को अपने अधिकार में नियुक्त नहीं करते." उन्होंने कहा कि नामांकन हमेशा राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है, लेकिन केंद्र सरकार की सहायता व परामर्श पर.
प्रावधानों का जिक्र करते हुए सिंघवी ने कहा कि जहां एक फाइल राज्य सरकार को चिन्हित की जाती है, तो वह उसका अंतिम पड़ाव होता है लेकिन जब वह उपराज्यपाल को चिह्नित की जाती है, उन्हें राज्य सरकार की सहायता व परामर्श पर कार्य करना होता है. जैन ने इस बात पर हस्तक्षेप करते हुए कहा कि अगर प्रक्रिया 30 वर्ष से चली आ रही है तो उसका मतलब यह नहीं है कि वह सही है. सिंघवी ने कहा कि यदि जैन के तर्क को स्वीकार किया जाता है, तो इतने समय से इस प्रक्रिया का पालन करने वाले सभी उपराज्यपाल गलत हैं.
पीठ ने कहा कि उपराज्यपाल को 'एल्डरमैन' को नामित करने का अधिकार देने का मतलब होगा कि वह लोकतांत्रिक रूप से चुने गए एमसीडी को अस्थिर कर सकते हैं क्योंकि इन (एल्डरमैन को) को स्थायी समितियों में नियुक्त किया जाता है और उनके पास मतदान के अधिकार भी होते हैं. जैन ने हालांकि दलील दी कि ‘एल्डरमैन’ के पास इतने अधिकार नहीं होते. इस पर सिंघवी ने जैन के दावों का विरोध किया और कहा कि वार्ड समितियों में 'एल्डरमैन’ नियुक्त किए गए हैं और उनके पास ऐसी समितियों में मतदान का अधिकार है. इसके बाद पीठ ने सिंघवी और जैन दोनों को दो दिन में लिखित प्रतिवेदन दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि वह याचिका पर फैसला सुनाएंगे.
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सवाल किया था कि निर्वाचित सरकार की सहायता तथा परामर्श के बिना दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में 10 ‘एल्डरमैन’ को नामित करने के लिए उपराज्यपाल के संविधान तथा कानून के तहत 'अधिकार का स्रोत' क्या है. शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आम आदमी पार्टी (आप) ने एमसीडी में उपराज्यपाल द्वारा नामित ‘एल्डरमैन’ की नियुक्तियों को चुनौती दी है.
(पीटीआई-भाषा)