हैदराबाद : देश की नदियों की जल गुणवत्ता (water quality) मानदंडों को पूरा नहीं करता या यूं कहें कि नदियों में प्रदूषण के हालात चिंताजनक हैं. पानी की गुणवत्ता के आकलन में पाया गया है कि 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में नदियां और धाराएं पानी की गुणवत्ता के मानदंडों को पूरा नहीं करती हैं. जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) के आधार पर पांच श्रेणियों की बात की जाए तो देश की 323 नदियों के 351 हिस्से प्रदूषित हैं.
सबसे खराब स्थिति महाराष्ट्र की है. यहां सबसे अधिक 53 प्रदूषित जल धाराएं हैं. इसके बाद असम में 44, मध्य प्रदेश में 22, केरल में 21, गुजरात में 20, ओडिशा में 19 और पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में 17-17 प्रदूषित नदी खंड (river stretches) हैं.
नदियों में प्रदूषण का प्रमुख कारण
देश में जल प्रदूषण के प्रमुख कारण शहरीकरण, औद्योगीकरण, खेती में उपयोग किए जाने वाले रसायन और औद्योगिक अपशिष्ट हैं. अधिकांश भारतीय नदियां जहरीले अवशेषों से पटी हुई हैं. चमड़ा, उर्वरक, रसायन और प्लास्टिक उद्योगों से बगैर साफ किया हुआ पानी नदियों में डाला जा रहा है. यहां तक कि गांवों और छोटे शहरों में सीवर के माध्यम से गंदे पानी को नदियों में बहा दिया जाता है. नदी के किनारे प्लास्टिक कवर और नगरपालिका के ठोस कचरे से अटे पड़े हैं.
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तेजी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगीकरण ने समस्या को और बढ़ा दिया है. मार्च, 2021 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, देश में शहरी क्षेत्रों से सीवेज उत्पादन 72,368 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) होने का अनुमान है, जिसके मुकाबले 31,841 एमएलडी की सीवेज उपचार क्षमता उपलब्ध थी.
सरकार की जल प्रदूषण नियंत्रण की कवायद
वर्ष 1974 में भारत में जल प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम अधिनियम लागू हुआ. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन एवं निर्वाह) अधिनियम 1989, खतरनाक रासायनिक का निर्माण, भंडारण और आयात नियम 1989, वन संरक्षण अधिनियम 1970, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 और जैविक विविधता अधिनियम 2002 जल प्रदूषण रोकने के बारे में स्पष्ट निर्देश देते हैं.
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