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पिता बनने के लिए कैदी को मिली 15 दिन की पैरोल

राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर मुख्यपीठ ने एक कैदी को 15 दिन की पैरोल को (wife of prisoner filed petition for conceiving in jodhpur court) स्वीकृति दी. कोर्ट ने एक अहम आदेश पारित करते हुए कहा कि नारी को गर्भधारण से वंचित नहीं किया जा सकता है.

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Published : Apr 22, 2022, 5:44 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट
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जोधपुर : राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर मुख्यपीठ ने एक कैदी को 15 दिन की पैरोल को स्वीकृति दी है. कोर्ट ने एक अहम आदेश पारित करते हुए कहा कि नारी को गर्भधारण से वंचित नहीं किया जा सकता है. इसलिए एक महिला की ओर से अपने पति की आकस्मिक पैरोल के लिए दायर याचिका को स्वीकार करते हुए 15 दिन की पैरोल को स्वीकार किया है. वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस फरजंद अली की खंडपीठ ने अजमेर जेल में सजा काट रहे नंदलाल को पैरोल पर रिहा करने का आदेश प्रदान किया है.

कैदी नंदलाल की पत्नी ने एक आकस्मिक पैरोल याचिका पेश कर कहा था कि उसके पति आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं, जबकि वो (उसकी पत्नी) संतान चाहती है. इसीलिए उसके पति को पैरोल दी जाए. इससे पहले जिला पैरोल कमेटी ने उसके आवेदन पर विचार नहीं किया था. ऐसे में हाईकोर्ट ने सभी तथ्यों को सुनने के बाद महिला के हक में फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में जहां निर्दोष जीवनसाथी एक महिला है और वह मां बनना चाहती है. नारीत्व की पूर्णता के लिए बच्चे को जन्म देना चाहती है.

पढ़ें : पैरोल पर जेल से निकला बन गया तांत्रिक, महिला से किया दुष्कर्म

ऐसी स्थिति में अगर उसके पति की गलती के कारण उसकी कोई संतान नहीं हो पाई, तो इसमे उसका कोई दोष नहीं है. कोर्ट ने कैदी की पन्द्रह दिन की पैरोल को स्वीकार किया है. हाईकोर्ट ने कहा कि वैसे तो संतान उत्पत्ति के लिए पैरोल का प्रावधान नहीं है, लेकिन गर्भधान 16 संस्कारों में सबसे पहले और प्रमुख स्थान पर है. ऐसे में महिला को अधिकार है कि वो संतान उत्पन्न करे. इसके लिए उसके पति का होना आवश्यक है.

जोधपुर : राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर मुख्यपीठ ने एक कैदी को 15 दिन की पैरोल को स्वीकृति दी है. कोर्ट ने एक अहम आदेश पारित करते हुए कहा कि नारी को गर्भधारण से वंचित नहीं किया जा सकता है. इसलिए एक महिला की ओर से अपने पति की आकस्मिक पैरोल के लिए दायर याचिका को स्वीकार करते हुए 15 दिन की पैरोल को स्वीकार किया है. वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस फरजंद अली की खंडपीठ ने अजमेर जेल में सजा काट रहे नंदलाल को पैरोल पर रिहा करने का आदेश प्रदान किया है.

कैदी नंदलाल की पत्नी ने एक आकस्मिक पैरोल याचिका पेश कर कहा था कि उसके पति आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं, जबकि वो (उसकी पत्नी) संतान चाहती है. इसीलिए उसके पति को पैरोल दी जाए. इससे पहले जिला पैरोल कमेटी ने उसके आवेदन पर विचार नहीं किया था. ऐसे में हाईकोर्ट ने सभी तथ्यों को सुनने के बाद महिला के हक में फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में जहां निर्दोष जीवनसाथी एक महिला है और वह मां बनना चाहती है. नारीत्व की पूर्णता के लिए बच्चे को जन्म देना चाहती है.

पढ़ें : पैरोल पर जेल से निकला बन गया तांत्रिक, महिला से किया दुष्कर्म

ऐसी स्थिति में अगर उसके पति की गलती के कारण उसकी कोई संतान नहीं हो पाई, तो इसमे उसका कोई दोष नहीं है. कोर्ट ने कैदी की पन्द्रह दिन की पैरोल को स्वीकार किया है. हाईकोर्ट ने कहा कि वैसे तो संतान उत्पत्ति के लिए पैरोल का प्रावधान नहीं है, लेकिन गर्भधान 16 संस्कारों में सबसे पहले और प्रमुख स्थान पर है. ऐसे में महिला को अधिकार है कि वो संतान उत्पन्न करे. इसके लिए उसके पति का होना आवश्यक है.

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