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'निजीकरण समस्या का हल नहीं, देशभर में बैंक हड़ताल' - राष्ट्रीय बैंक संघ के कर्नाटक संयोजक एस. के. श्रीनिवास

फरवरी में पेश किए गए आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आईडीबीआई बैंक के अलावा दो और सरकारी बैंकों के निजीकरण का ऐलान किया था. जिसका बैंक कर्मचारी यूनियनों की ओर से लगातार विरोध किया जा रहा है. राष्ट्रीय बैंक संघ के कर्नाटक संयोजक एस. के. श्रीनिवास के अनुसार, यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स के लाखों कर्मचारी केंद्र सरकार की नीतियों के ख‍िलाफ पिछले महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं.

बैंक हड़ताल
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Published : Mar 16, 2021, 1:52 PM IST

Updated : Mar 16, 2021, 2:22 PM IST

बेंगलुरु : केंद्र सरकार के बजट में आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) और दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण जैसे सुधार उपायों समेत कई घोषणाएं की गईं. इसके अलावा बीमा क्षेत्र में 74 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति दी गई. राष्ट्रीय बैंक संघ के कर्नाटक संयोजक एस.के. श्रीनिवास ने कहा, ये सभी उपाय प्रतिगामी हैं और इनका विरोध करने की आवश्यकता है.

राष्ट्रीय बैंक संघ के कर्नाटक संयोजक एस.के. श्रीनिवास की प्रतिक्रिया

ईटीवी भारत से बात करते हुए एस.के. श्रीनिवास ने बताया 19 जुलाई 1969 में 14 वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया. जिसके लिए बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस मनाया जाता है. 15 मार्च 1980 को छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना 1975 में हुई थी. कुल मिलाकर इसका उद्देश्य जमाकर्ताओं के एक व्यापक समूह से बचत जुटाना और उत्पादकों के बड़े हिस्से तक साख को पहुंचाना था.

पूर्व में भी बैंकों की विफलता बहुत सामान्य बात थी. 1947 से 1969 तक 550 निजी बैंक विफल रहे हैं. इस दौरान जमाकर्ताओं की बचत पर पानी फिर गया.

1969 के बाद ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, सेंचुरियन बैंक, टाइम्स बैंक, बैंक ऑफ पंजाब, लक्ष्मी विलास बैंक सहित 38 निजी बैंक असफल रहे. उल्लेखनीय है कि उस समय सार्वजनिक क्षेत्र के किसी भी बैंक का पतन नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने असफल निजी बैंकों पर कब्जा करके जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा की है.

पढ़ें- साइबर ठगों का नया हथियार बना रिमोट एक्सेस ऐप, ऐसे बचें

श्रीनिवास (जो एसबीआई में एक अधिकारी भी हैं) बताते हैं कि 2008 के वैश्विक बैंकिंग पतन के दौरान भारतीय बैंकिंग प्रणाली अप्रभावित रही. इससे पहले 1980 के दशक में जापानी बैंक, 1990 के दशक में कोरियाई बैंक और 2017 में इतालवी बैंक भी इसी तरह से प्रभावित हुए.

जून 1969 में 8,961 बैंक शाखाएं थीं, जो 1980 में बढ़कर 32,417 हो गईं, फिर 1991 में 60,220 और अब 2020 के मध्य में 1,46,904 हो चुकी हैं.

बैंकिंग क्षेत्र की कुल जमा राशि 1969 में 4700 करोड़ रुपये थी. जो कि 1993 में 2,77,235 करोड़ रुपये और 2021 जनवरी के अंत में 1,47,98,000 करोड़ रुपये बताई जा रही है. राष्ट्रीयकरण के बाद ग्रामीण क्षेत्र में ऋण के बहिर्वाह में अभूतपूर्व वृद्धि हुई.

बैंकों को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में 40 प्रतिशत शुद्ध ऋण उपलब्ध कराना था, जिसमें लघु उद्योग, झोपड़ी, छोटे और सीमांत किसान, कारीगर, छोटे व्यापारी, स्वरोजगार वाले व्यक्ति, खुदरा व्यापारी और उद्यमी शामिल थे.

प्राथमिकता क्षेत्र का आकार 1972 में 22 प्रतिशत से बढ़कर 1980 में 45 प्रतिशत हो गया था. वहीं दिसंबर 1972 से जून 1983 के बीच 21 मिलियन नए बैंक ऋण थे, जिनमें से 93 प्रतिशत 10,000 रुपये या उससे कम रुपये की क्रेडिट सीमा के भीतर थे.

पढ़ें- प. बंगाल चुनाव में चौथा पर्यवेक्षक नियुक्त, आईपीएस अधिकारी संभालेंगे मोर्चा

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बैंक क्रेडिट से किस वर्ग को लाभ हुआ है. इन बैंकों का विलय करने के लिए अब एक और कदम उठाया गया है, जिसने गरीबी उन्मूलन और रोजगार सृजन कार्यक्रमों में बहुत योगदान दिया.

हाल ही में आरटीआई के तहत एक प्रश्न के जवाब में भारतीय रिजर्व बैंक ने 30 सितंबर 2019 तक विभिन्न बैंकों द्वारा 68,607 करोड़ रुपये की डिफॉल्टर्स लिस्ट जारी की थी, जिसमें विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी जैसे भगोड़े शामिल हैं

राष्ट्रीय बैंक संघ के नेता ने कहा कि आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि आधिकारिक तौर पर स्वीकार की गई एनपीए की 50 प्रतिशत की राशि 4.5 लाख करोड़ रुपये केवल सौ बड़े कर्जदारों के कारण है.

बेंगलुरु : केंद्र सरकार के बजट में आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) और दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण जैसे सुधार उपायों समेत कई घोषणाएं की गईं. इसके अलावा बीमा क्षेत्र में 74 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति दी गई. राष्ट्रीय बैंक संघ के कर्नाटक संयोजक एस.के. श्रीनिवास ने कहा, ये सभी उपाय प्रतिगामी हैं और इनका विरोध करने की आवश्यकता है.

राष्ट्रीय बैंक संघ के कर्नाटक संयोजक एस.के. श्रीनिवास की प्रतिक्रिया

ईटीवी भारत से बात करते हुए एस.के. श्रीनिवास ने बताया 19 जुलाई 1969 में 14 वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया. जिसके लिए बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस मनाया जाता है. 15 मार्च 1980 को छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना 1975 में हुई थी. कुल मिलाकर इसका उद्देश्य जमाकर्ताओं के एक व्यापक समूह से बचत जुटाना और उत्पादकों के बड़े हिस्से तक साख को पहुंचाना था.

पूर्व में भी बैंकों की विफलता बहुत सामान्य बात थी. 1947 से 1969 तक 550 निजी बैंक विफल रहे हैं. इस दौरान जमाकर्ताओं की बचत पर पानी फिर गया.

1969 के बाद ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, सेंचुरियन बैंक, टाइम्स बैंक, बैंक ऑफ पंजाब, लक्ष्मी विलास बैंक सहित 38 निजी बैंक असफल रहे. उल्लेखनीय है कि उस समय सार्वजनिक क्षेत्र के किसी भी बैंक का पतन नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने असफल निजी बैंकों पर कब्जा करके जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा की है.

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श्रीनिवास (जो एसबीआई में एक अधिकारी भी हैं) बताते हैं कि 2008 के वैश्विक बैंकिंग पतन के दौरान भारतीय बैंकिंग प्रणाली अप्रभावित रही. इससे पहले 1980 के दशक में जापानी बैंक, 1990 के दशक में कोरियाई बैंक और 2017 में इतालवी बैंक भी इसी तरह से प्रभावित हुए.

जून 1969 में 8,961 बैंक शाखाएं थीं, जो 1980 में बढ़कर 32,417 हो गईं, फिर 1991 में 60,220 और अब 2020 के मध्य में 1,46,904 हो चुकी हैं.

बैंकिंग क्षेत्र की कुल जमा राशि 1969 में 4700 करोड़ रुपये थी. जो कि 1993 में 2,77,235 करोड़ रुपये और 2021 जनवरी के अंत में 1,47,98,000 करोड़ रुपये बताई जा रही है. राष्ट्रीयकरण के बाद ग्रामीण क्षेत्र में ऋण के बहिर्वाह में अभूतपूर्व वृद्धि हुई.

बैंकों को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में 40 प्रतिशत शुद्ध ऋण उपलब्ध कराना था, जिसमें लघु उद्योग, झोपड़ी, छोटे और सीमांत किसान, कारीगर, छोटे व्यापारी, स्वरोजगार वाले व्यक्ति, खुदरा व्यापारी और उद्यमी शामिल थे.

प्राथमिकता क्षेत्र का आकार 1972 में 22 प्रतिशत से बढ़कर 1980 में 45 प्रतिशत हो गया था. वहीं दिसंबर 1972 से जून 1983 के बीच 21 मिलियन नए बैंक ऋण थे, जिनमें से 93 प्रतिशत 10,000 रुपये या उससे कम रुपये की क्रेडिट सीमा के भीतर थे.

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इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बैंक क्रेडिट से किस वर्ग को लाभ हुआ है. इन बैंकों का विलय करने के लिए अब एक और कदम उठाया गया है, जिसने गरीबी उन्मूलन और रोजगार सृजन कार्यक्रमों में बहुत योगदान दिया.

हाल ही में आरटीआई के तहत एक प्रश्न के जवाब में भारतीय रिजर्व बैंक ने 30 सितंबर 2019 तक विभिन्न बैंकों द्वारा 68,607 करोड़ रुपये की डिफॉल्टर्स लिस्ट जारी की थी, जिसमें विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी जैसे भगोड़े शामिल हैं

राष्ट्रीय बैंक संघ के नेता ने कहा कि आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि आधिकारिक तौर पर स्वीकार की गई एनपीए की 50 प्रतिशत की राशि 4.5 लाख करोड़ रुपये केवल सौ बड़े कर्जदारों के कारण है.

Last Updated : Mar 16, 2021, 2:22 PM IST
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