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SCO बैठक में पीएम मोदी बोले- कट्टरता दुनिया के लिए बड़ी चुनौती, अफगानिस्तान बड़ा उदाहरण - SCO बैठक में पीएम मोदी

विदेश मंत्री एस जयशंकर एससीओ की बैठक में हिस्सा लेने के लिये दुशांबे रवाना हो गये हैं. प्रवक्ता ने बताया कि शिखर बैठक के बाद सम्पर्क बैठक (आटउरिच) होगी. इस दौरान अफगानिस्तान के मुद्दे पर चर्चा होगी.

SCO बैठक में पीएम मोदी
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Published : Sep 17, 2021, 12:09 PM IST

Updated : Sep 17, 2021, 2:20 PM IST

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी को क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती करार देते हुए कहा कि इन समस्याओं के मूल में कट्टरपंथी विचारधारा है.

ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में शुक्रवार को आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की वार्षिक शिखर बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इस कड़ी में अफगानिस्तान के हाल के घटनाक्रमों का उल्लेख किया और कहा कि संगठन के सदस्य देशों को ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए.

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर एससीओ के नए सदस्य देश ईरान का स्वागत किया और साथ ही वार्ता के सहयोगी देशों का भी आभार जताया. उन्होंने कहा कि नए सदस्य और ‘‘डायलॉग पार्टनर’’ से एससीओ और मजबूत तथा विश्वसनीय बनेगा.

उन्होंने कहा, एससीओ की 20वीं वर्षगांठ इस संस्था के भविष्य के बारे में सोचने के लिए भी उपयुक्त अवसर है. मेरा मानना है कि इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौतियां शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी से संबंधित हैं और इन समस्याओं का मूल कारण बढ़ती कट्टरता है. अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम ने इस चुनौती को और स्पष्ट कर दिया है.

उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर एससीओ देशों को साथ मिलकर काम करना चाहिए.

प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो यह पता चलेगा कि मध्य एशिया का क्षेत्र शांत और प्रगतिशील संस्कृति तथा मूल्यों का गढ़ रहा है और सूफीवाद जैसी परम्पराएं यहां सदियों से पनपीं और पूरे क्षेत्र और विश्व में फैलीं.

उन्होंने कहा कि इनकी छवि हम आज भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत में देख सकते हैं.

मोदी ने कहा, मध्य एशिया की इस ऐतिहासिक धरोहर के आधार पर एससीओ को कट्टरपंथ और अतिवाद से लड़ने की एक साझा रणनीति तैयार करनी चाहिए. भारत में और एससीओ के लगभग सभी देशों में, इस्लाम से जुड़ी शांत, सहिष्णु और समावेशी संस्थाएं व परम्पराएं हैं. एससीओ को इनके बीच एक मजबूत नेटवर्क विकसित करने के लिए काम करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि इस सन्दर्भ में एससीओ के रैट्स प्रक्रिया तंत्र की ओर से किए जा रहे काम की वह प्रशंसा करते हैं.

प्रधानमंत्री ने कट्टरपंथ से लड़ाई को क्षेत्रीय सुरक्षा और आपसी विश्वास के लिए आवश्यक करार दिया और कहा कि यह युवा पीढ़ी का उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करने के लिए भी जरूरी है.

उन्होंने कहा, विकसित विश्व के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए हमारे क्षेत्र को प्रौद्योगिकी में एक पक्ष बनना होगा. इसके लिए हमें अपने प्रतिभाशाली युवाओं को, विज्ञान और विवेकपूर्ण सोच को प्रोत्साहित करना होगा. इस तरह की सोच और नवप्रवर्तन की भावनाओं को बढ़ावा देना होगा.

एससीओ परिषद के सदस्य देशों के प्रमुखों की 21वीं बैठक शुक्रवार को हाइब्रिड प्रारूप में दुशांबे में आरंभ हुई. इसकी अध्यक्षता ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री मोदी भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर एससीओ की बैठक में हिस्सा लेने के लिये दुशांबे में हैं.

एससीओ की इस बैठक में अफगानिस्तान संकट, क्षेत्रीय सुरक्षा, सहयोग एवं सम्पर्क सहित अन्य मुद्दों पर चर्चा होगी.

पहली बार एससीओ की शिखर बैठक हाइब्रिड प्रारूप में आयोजित की जा रही है और यह चौथी शिखर बैठक है जिसमें भारत एससीओ के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में हिस्सा ले रहा है. हाईब्रिड प्रारूप के तहत आयोजन के कुछ हिस्से को डिजिटल आधार पर और शेष हिस्से को आमंत्रित सदस्यों की प्रत्यक्ष उपस्थिति के माध्यम से संपन्न किया जाता है.

इस बैठक का महत्व इसलिये भी बढ़ जाता है क्योंकि संगठन इस वर्ष अपनी स्थापना की 20वीं वर्षगांठ मना रहा है.

उल्लेखनीय है कि एससीओ की स्थापना 15 जून 2001 को हुई थी और भारत 2017 में इसका पूर्णकालिक सदस्य बना .

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी को क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती करार देते हुए कहा कि इन समस्याओं के मूल में कट्टरपंथी विचारधारा है.

ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में शुक्रवार को आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की वार्षिक शिखर बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इस कड़ी में अफगानिस्तान के हाल के घटनाक्रमों का उल्लेख किया और कहा कि संगठन के सदस्य देशों को ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए.

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर एससीओ के नए सदस्य देश ईरान का स्वागत किया और साथ ही वार्ता के सहयोगी देशों का भी आभार जताया. उन्होंने कहा कि नए सदस्य और ‘‘डायलॉग पार्टनर’’ से एससीओ और मजबूत तथा विश्वसनीय बनेगा.

उन्होंने कहा, एससीओ की 20वीं वर्षगांठ इस संस्था के भविष्य के बारे में सोचने के लिए भी उपयुक्त अवसर है. मेरा मानना है कि इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौतियां शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी से संबंधित हैं और इन समस्याओं का मूल कारण बढ़ती कट्टरता है. अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम ने इस चुनौती को और स्पष्ट कर दिया है.

उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर एससीओ देशों को साथ मिलकर काम करना चाहिए.

प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो यह पता चलेगा कि मध्य एशिया का क्षेत्र शांत और प्रगतिशील संस्कृति तथा मूल्यों का गढ़ रहा है और सूफीवाद जैसी परम्पराएं यहां सदियों से पनपीं और पूरे क्षेत्र और विश्व में फैलीं.

उन्होंने कहा कि इनकी छवि हम आज भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत में देख सकते हैं.

मोदी ने कहा, मध्य एशिया की इस ऐतिहासिक धरोहर के आधार पर एससीओ को कट्टरपंथ और अतिवाद से लड़ने की एक साझा रणनीति तैयार करनी चाहिए. भारत में और एससीओ के लगभग सभी देशों में, इस्लाम से जुड़ी शांत, सहिष्णु और समावेशी संस्थाएं व परम्पराएं हैं. एससीओ को इनके बीच एक मजबूत नेटवर्क विकसित करने के लिए काम करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि इस सन्दर्भ में एससीओ के रैट्स प्रक्रिया तंत्र की ओर से किए जा रहे काम की वह प्रशंसा करते हैं.

प्रधानमंत्री ने कट्टरपंथ से लड़ाई को क्षेत्रीय सुरक्षा और आपसी विश्वास के लिए आवश्यक करार दिया और कहा कि यह युवा पीढ़ी का उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करने के लिए भी जरूरी है.

उन्होंने कहा, विकसित विश्व के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए हमारे क्षेत्र को प्रौद्योगिकी में एक पक्ष बनना होगा. इसके लिए हमें अपने प्रतिभाशाली युवाओं को, विज्ञान और विवेकपूर्ण सोच को प्रोत्साहित करना होगा. इस तरह की सोच और नवप्रवर्तन की भावनाओं को बढ़ावा देना होगा.

एससीओ परिषद के सदस्य देशों के प्रमुखों की 21वीं बैठक शुक्रवार को हाइब्रिड प्रारूप में दुशांबे में आरंभ हुई. इसकी अध्यक्षता ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री मोदी भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर एससीओ की बैठक में हिस्सा लेने के लिये दुशांबे में हैं.

एससीओ की इस बैठक में अफगानिस्तान संकट, क्षेत्रीय सुरक्षा, सहयोग एवं सम्पर्क सहित अन्य मुद्दों पर चर्चा होगी.

पहली बार एससीओ की शिखर बैठक हाइब्रिड प्रारूप में आयोजित की जा रही है और यह चौथी शिखर बैठक है जिसमें भारत एससीओ के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में हिस्सा ले रहा है. हाईब्रिड प्रारूप के तहत आयोजन के कुछ हिस्से को डिजिटल आधार पर और शेष हिस्से को आमंत्रित सदस्यों की प्रत्यक्ष उपस्थिति के माध्यम से संपन्न किया जाता है.

इस बैठक का महत्व इसलिये भी बढ़ जाता है क्योंकि संगठन इस वर्ष अपनी स्थापना की 20वीं वर्षगांठ मना रहा है.

उल्लेखनीय है कि एससीओ की स्थापना 15 जून 2001 को हुई थी और भारत 2017 में इसका पूर्णकालिक सदस्य बना .

Last Updated : Sep 17, 2021, 2:20 PM IST
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