कासगंजः यूपी की राजनीति में अजब-गजब मिथक प्रचलित हैं, जिस पर सभी राजनीतिक दल भरोसा करते हैं. मसलन, जो सीएम नोएडा जाता है, वह दोबारा सीएम नहीं बनता है. इस कारण योगी से पहले सीएम की गद्दी पर बैठने वाले राजनेताओं से दूरी बना ली थी. ऐसा ही एक दिलचस्प मिथक उत्तर प्रदेश की कासगंज सीट से भी जुड़ी है. मगर मिथक को सच साबित करने के लिए सभी दल लालायित ही रहते हैं. अभी तक के चुनावी इतिहास में यह सामने आया है कि जिस पार्टी ने कासगंज में जीत दर्ज की, प्रदेश में उसकी ही सरकार बनी. 1996 और 2002 के चुनावों को अपवाद मान लें तो पिछले 1977 से तो यह मिथक पूरी तरह सच ही साबित होता रहा है.
संत तुलसीदास और अमीर खुसरो की जन्मस्थली कासगंज काली नदी और भागीरथी गंगा के बीच बसा एक नया ज़िला है. यह पहले एटा जिले का हिस्सा था. 17 अप्रैल 2008 को तत्कालीन बीएसपी की सरकार ने कासगंज को जिले का दर्जा दिया. तत्कालीन सीएम मायावती ने इस नए जिले का नाम कांशीराम नगर रखा था. वर्ष 2012 में प्रदेश की सरकार बदली और तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दोबारा कांशीराम नगर से बदलकर कासगंज कर दिया था. स्थापना के बाद से प्रदेश में दो विधानसभा चुनाव हुए, मगर नए जिले के साथ भी सरकार बनाने वाला मिथक जुड़ा रहा.
जानिए कासगंज के इतिहास, इस सीट से कब किसे जीत मिली
आजादी के बाद इस सीट से कांग्रेस जीतती रही. यूपी में 1977 के चुनावों के बाद से कासगंज की शहर सीट पर अब तक कांग्रेस ने दो बार, भाजपा ने तीन बार और समाजवादी पार्टी ने तीन बार जीत हासिल की. एक बार बीएसपी ने भी इस पर कब्जा जमाया है. 1952 में कांग्रेस के बाबूराम गुप्ता ने कासगंज में जीत हासिल की तो यूपी में कांग्रेस की सरकार बनी. 1957 में कांग्रेस के कालीचरन अग्रवाल ने जीत का परचम लहराया तो फिर कांग्रेस की सरकार बनी. 1977 में जनता पार्टी के नेतराम सिंह कासगंज से जीते और सरकार जनता पार्टी की बनी. 1980 के चुनाव में कांग्रेस के मानपाल सिंह ने जीत दर्ज की और कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की. 1985 में एकबार फिर मानपाल सिंह कांग्रेस से जीते और दोबारा कांग्रेस की सरकार बनी. 1989 में जनता दल के गोवर्धन सिंह कासगंज से जीते और मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में जनता दल ने यूपी में सरकार बनाई.
1991 में बाबरी मस्जिद टूटने के एक साल पहले नेतराम सिंह ने बीजेपी से जीत हासिल की, उस साल बीजेपी ने यूपी में सरकार बनाई. 1996 में नेतराम ने फिर बीजेपी से जीत दर्ज की और इस बार सरकार बीजेपी बीएसपी गठबंधन की बनी. 2002 में समाजवादी पार्टी से मानपाल सिंह कासगंज से जीतकर आए लेकिन सरकार बीजेपी-बीएसपी की बन गई लेकिन मायावती की पार्टी के विधायकों के पार्टी छोड़ने से सत्ता मुलायम सिंह यादव के हाथों में चली गई. 2007 में बीएसपी के हसरत उल्ला खान कासगंज से चुनाव जीते और सरकार मायावती की बनी. 2012 में समाजवादी पार्टी से एकबार फिर मनपाल सिंह चुनाव जीत गए और सरकार अखिलेश यादव की बनीं. 2017 में बीजेपी के देवेंदर राजपूत ने बीएसपी के अजय चतुर्वेदी को 50,000 वोटों से हराकर जीत दर्ज की और सरकार योगी आदित्यनाथ की बनीं.
इस बार कौन जीतेगा मनपाल सिंह या देवेंदर राजपूत ?
आपको बता दें कि कासगंज विधानसभा सीट पर 25 फीसदी लोधी राजपूत, 12 फीसदी मुस्लिम, 12 फीसदी ठाकुर, 10 फीसदी ब्राह्मण, 8 फीसदी शाक्य, 8 फीसदी जाटव, 5 फीसदी यादव, 4 फीसदी धीमर, 3 फीसदी बघेल, 2 फीसदी तेली और शेष 11 फीसदी अन्य जाति वर्ग धर्म के वोटरों की संख्या है.
तीसरे चरण में 20 फरवरी को होने वाले चुनाव में कासगंज से जुड़ा ये मिथक टूटेगा या नहीं, इस पर सबकी निगाहें हैं. समाजवादी से पुराने धुरंधर मनपाल सिंह एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं. 85 साल के मनपाल सिंह मौजूदा बीजेपी विधायक देवेंदर राजपूत को कड़ी चुनौती दे रहे हैं. देखना दिलचस्प होगा कि क्या मनपाल सिंह जीतकर समाजवादी पार्टी की सरकार बनवाते हैं या देवेंदर राजपूत जीतकर बीजेपी की. कुछ भी हो लेकिन कासगंज में लड़ाई दिलचस्प होगी इसमे दो राय नहीं.
कब कौन जीता
साल | उम्मीदवार | पार्टी |
1952 | बाबूराम गुप्ता | कांग्रेस |
1957 | कालीचरन अग्रवाल | कांग्रेस |
1977 | नेतराम सिंह | जनता पार्टी |
1980 | मानपाल सिंह | कांग्रेस |
1985 | मानपाल सिंह | कांग्रेस |
1989 | गोवर्धन सिंह | समाजवादी पार्टी |
1991 | नेतराम सिंह | बीजेपी |
1996 | नेतराम सिंह | बीजेपी |
2002 | मानपाल सिंह | समाजवादी पार्टी |
2007 | हसरत उल्ला खान | बीएसपी |
2012 | मानपाल सिंह | समाजवादी पार्टी |
2017 | देवेंदर राजपूत | बीजेपी |
ये रहे जातीय समीकरण
लोधी राजपूत 25%, मुस्लिम 12%, ठाकुर 12%, ब्राह्मण 10%, शाक्य 8%, जाटव 8%, यादव 5%, धीमर 4%, बघेल 3%, तेली 2% व अन्य 11%
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