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भारतीय सीमा पर भड़की हिंसा, कहीं म्यांमार में गृहयुद्ध का आगाज तो नहीं

मणिपुर के ठीक उस पार म्यांमार के सीमावर्ती शहर तमू में गुरुवार को हिंसा हुई, जिसमें छह लोग मारे गए. यहां तक ​​कि बड़ी संख्या में युवा जातीय विद्रोही समूहों द्वारा चलाए जा रहे सैन्य-शैली के शिविरों में प्रशिक्षण ले रहे हैं. जिससे गृहयुद्ध के अंदेशे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. इस पर पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

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Published : Apr 3, 2021, 7:54 PM IST

Violence
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नई दिल्ली : यह कोई अचानक हुई घटना नहीं है, बल्कि पिछले सात दशकों से लगातार उग्र हिंसा को देखा जा रहा है. एक फरवरी 2021 को जुंटा द्वारा सैन्य तख्तापलट ने लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है. जो मौजूदा जातीय सशस्त्र संगठनों (ईएओ) की भीड़ में शामिल हैं.

स्थानीय लोगों की खबरों के अनुसार सैन्य जुंटा से लड़ने के लिए बड़ी संख्या में युवा बंदूक उठा रहे हैं. इसने लोगों को खुद के लिए सैनिक के रूप से संगठित करना आसान बना दिया है. जहां पिछले सात दशकों से विद्रोहियों की उपस्थिति है. अधिकांश प्रमुख जातीय समूह एक एथनिक आर्म्ड ऑर्गनाइजेशन (ईएओ) द्वारा दर्शाए जाते हैं जो बर्मन बहुल ततमादव (म्यांमार सेना) से लड़ते हैं. इन समूहों ने अपने आत्म निर्णय और पूर्ण स्वतंत्रता से लेकर स्वायत्तता तक की मांगों को जातीय खेमों के साथ जोड़ दिया है.

सैन्य सेवा के लिए तैयार युवा

गुरुवार को ततमादव' से जुड़ी दमनकारी हिंसा भारतीय सीमा तक पहुंच गई. जब सागिंग क्षेत्र के तमू टाउनशिप में पुलिस चौकी पर हमले के दौरान छह पुलिस अधिकारी मारे गए. जबकि म्यांमार में राजनीतिक रूप से प्रमुख समुदाय बरमार (बर्मन) हैं. वहीं विद्रोही संगठन देशभर में पाए जाते हैं. इन विद्रोही समूहों में से कुछ अरकानी, शान, कायन्स, काचिन, राखीन, चिन, रोहिंग्या और वा समुदाय हैं, जो किसी भी समय सैन्य सेवा के लिए स्वयं सेवकों की फौज तैयार करते हैं.

म्यांमार के हालात
म्यांमार के हालात

हर गांव से 10-20 युवाओं की मांग

ईटीवी भारत ने 19 मार्च को बताया था कि म्यांमार में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन पाइयिंगुंग्सु हुलुटाव (CRPH) की अगुवाई में देशभर के प्रत्येक गांव से 10-20 सक्षम पुरुषों की सैन्य सेवा मांगी गई है. ततमादव' का मुकाबला करने के लिए एक संघीय सेना बनाने का लक्ष्य तय किया गया है. मिजोरम और मणिपुर में भारत-म्यांमार अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पुलिसकर्मियों, फायरमैन, छात्रों, सरकारी कर्मचारियों आदि सहित हजारों लोकतंत्र समर्थक और कार्यकर्ता समाज के अलग-अलग हिस्से तक फैल चुके हैं.

अपने हथियार भी कर रहे तैयार

कूकी-चिन-मिजो जातीय समूहों से संबंधित इन दो राज्यों में लोग पश्चिमी म्यांमार में सागांग राज्य में निवास करने वाले चिन लोगों के साथ जातीय, भाषाई, सांस्कृतिक और रिश्तेदारी संबंधों को साझा करते हैं. जहां उनका दिल से स्वागत किया जाता है. म्यांमार की मीडिया ने कई नागरिकों को पारंपरिक होम मेड आग्नेयास्त्रों, घर की बनी गैस दबाव वाली बंदूकें, हस्त निर्मित तीर व धनुष और मोलोटोव कॉकटेल का उपयोग करके रक्षात्मक कार्यों के साथ ही ततमादव' के घातक हमले का जवाब देने के लिए है.

म्यांमार में गृहयुद्ध का आगाज तो नहीं

अब तक 550 लोगों की मौत

सेना की कार्रवाई और छापे में अब तक बच्चों सहित लगभग 550 नागरिकों की मौत हो चुकी है. यहां तक ​​कि देशभर के लोगों ने 'ततमादव' की अवहेलना में शांतिपूर्ण विरोध का एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया है. दरअसल, म्यांमार में लोकतंत्र के एक दशक लंबे आंदोलन के बाद नवंबर 2020 में आंग सान सू की के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक लीग (एनएलडी) को समर्थन मिला था.

यह भी पढ़ें-बीजापुर नक्सली हमले में पांच जवान शहीद, दो नक्सली ढेर, सर्च ऑपरेशन जारी

चुनावों में एनएलडी को कुल 476 सीटों में से 396 सीटें मिलीं. जबकि जुंटा समर्थित यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी (यूएसडीपी) को सिर्फ 33 सीटें मिली थीं. इस प्रयोग के बाद 1 फरवरी 2021 को तख्तापलट ने चुनावी फैसले को प्रभावित किया है.

नई दिल्ली : यह कोई अचानक हुई घटना नहीं है, बल्कि पिछले सात दशकों से लगातार उग्र हिंसा को देखा जा रहा है. एक फरवरी 2021 को जुंटा द्वारा सैन्य तख्तापलट ने लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है. जो मौजूदा जातीय सशस्त्र संगठनों (ईएओ) की भीड़ में शामिल हैं.

स्थानीय लोगों की खबरों के अनुसार सैन्य जुंटा से लड़ने के लिए बड़ी संख्या में युवा बंदूक उठा रहे हैं. इसने लोगों को खुद के लिए सैनिक के रूप से संगठित करना आसान बना दिया है. जहां पिछले सात दशकों से विद्रोहियों की उपस्थिति है. अधिकांश प्रमुख जातीय समूह एक एथनिक आर्म्ड ऑर्गनाइजेशन (ईएओ) द्वारा दर्शाए जाते हैं जो बर्मन बहुल ततमादव (म्यांमार सेना) से लड़ते हैं. इन समूहों ने अपने आत्म निर्णय और पूर्ण स्वतंत्रता से लेकर स्वायत्तता तक की मांगों को जातीय खेमों के साथ जोड़ दिया है.

सैन्य सेवा के लिए तैयार युवा

गुरुवार को ततमादव' से जुड़ी दमनकारी हिंसा भारतीय सीमा तक पहुंच गई. जब सागिंग क्षेत्र के तमू टाउनशिप में पुलिस चौकी पर हमले के दौरान छह पुलिस अधिकारी मारे गए. जबकि म्यांमार में राजनीतिक रूप से प्रमुख समुदाय बरमार (बर्मन) हैं. वहीं विद्रोही संगठन देशभर में पाए जाते हैं. इन विद्रोही समूहों में से कुछ अरकानी, शान, कायन्स, काचिन, राखीन, चिन, रोहिंग्या और वा समुदाय हैं, जो किसी भी समय सैन्य सेवा के लिए स्वयं सेवकों की फौज तैयार करते हैं.

म्यांमार के हालात
म्यांमार के हालात

हर गांव से 10-20 युवाओं की मांग

ईटीवी भारत ने 19 मार्च को बताया था कि म्यांमार में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन पाइयिंगुंग्सु हुलुटाव (CRPH) की अगुवाई में देशभर के प्रत्येक गांव से 10-20 सक्षम पुरुषों की सैन्य सेवा मांगी गई है. ततमादव' का मुकाबला करने के लिए एक संघीय सेना बनाने का लक्ष्य तय किया गया है. मिजोरम और मणिपुर में भारत-म्यांमार अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पुलिसकर्मियों, फायरमैन, छात्रों, सरकारी कर्मचारियों आदि सहित हजारों लोकतंत्र समर्थक और कार्यकर्ता समाज के अलग-अलग हिस्से तक फैल चुके हैं.

अपने हथियार भी कर रहे तैयार

कूकी-चिन-मिजो जातीय समूहों से संबंधित इन दो राज्यों में लोग पश्चिमी म्यांमार में सागांग राज्य में निवास करने वाले चिन लोगों के साथ जातीय, भाषाई, सांस्कृतिक और रिश्तेदारी संबंधों को साझा करते हैं. जहां उनका दिल से स्वागत किया जाता है. म्यांमार की मीडिया ने कई नागरिकों को पारंपरिक होम मेड आग्नेयास्त्रों, घर की बनी गैस दबाव वाली बंदूकें, हस्त निर्मित तीर व धनुष और मोलोटोव कॉकटेल का उपयोग करके रक्षात्मक कार्यों के साथ ही ततमादव' के घातक हमले का जवाब देने के लिए है.

म्यांमार में गृहयुद्ध का आगाज तो नहीं

अब तक 550 लोगों की मौत

सेना की कार्रवाई और छापे में अब तक बच्चों सहित लगभग 550 नागरिकों की मौत हो चुकी है. यहां तक ​​कि देशभर के लोगों ने 'ततमादव' की अवहेलना में शांतिपूर्ण विरोध का एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया है. दरअसल, म्यांमार में लोकतंत्र के एक दशक लंबे आंदोलन के बाद नवंबर 2020 में आंग सान सू की के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक लीग (एनएलडी) को समर्थन मिला था.

यह भी पढ़ें-बीजापुर नक्सली हमले में पांच जवान शहीद, दो नक्सली ढेर, सर्च ऑपरेशन जारी

चुनावों में एनएलडी को कुल 476 सीटों में से 396 सीटें मिलीं. जबकि जुंटा समर्थित यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी (यूएसडीपी) को सिर्फ 33 सीटें मिली थीं. इस प्रयोग के बाद 1 फरवरी 2021 को तख्तापलट ने चुनावी फैसले को प्रभावित किया है.

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