ETV Bharat / bharat

हमें अपने समाज को देश के लिए उपयोगी बनाना है: मोहन भागवत - आरएसएस संघ प्रमुख मोहन भागवत

आरएसएस के संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat in Swar Sangam Ghosh) सोमवार को पं.दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय (Pt Deendayal Upadhyay Sanatan Dharma Vidyalaya) में हुए स्वर संगम घोष शिविर कार्यक्रम में शिरकत की. इस दौरान उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद लोगों को संबोधित किया.

संघ प्रमुख मोहन भागवत
संघ प्रमुख मोहन भागवत
author img

By

Published : Oct 11, 2022, 7:28 AM IST

कानपुर: नवाबगंज स्थित पं. दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय (Pt Deendayal Upadhyay Sanatan Dharma Vidyalaya) में हुए स्वर संगम घोष शिविर कार्यक्रम में सोमवार को आरएसएस के संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat in Swar Sangam Ghosh) ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि हमें अपने समाज को देश के लिए उपयोगी बनाना है. संगीत एक कला है और भारतीय कला में सत्यम, शिवम, सुंदरम की धारणा है. देश को बड़ा बनाना है, तो हमें अच्छा, संस्कारी बनना होगा. स्वार्थी बनकर देश को बड़ा नहीं बनाया जा सकता. एक दूसरे के साथ आगे बढ़ना ही संघ है. संघ में घोष वादन का मतलब सबको साथ लेकर चलना है. संघ में स्वर संगम संस्कारों का कार्यक्रम है, इससे स्वयंसेवकों में चारित्रिक विकास होता है.

वह शहर के नवाबगंज स्थित पं.दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय में हुए स्वर संगम घोष शिविर कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. वैसे तो यह कार्यक्रम स्कूल के मैदान पर होना था, लेकिन शहर में लगातार हो रही बारिश के चलते इसे स्कूल के सभागार में आयोजित किया गया. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि अपने देश में हुए युद्धों में रस संस्कृति रही होगी, क्योंकि युद्ध में वादन किया है. इसके उल्लेख भी मिलते हैं. विभिन्न वाद्यों के नाम भी आते हैं. परन्तु वो परंपरा विलुप्त हो गई. भारतीय परिवेश की परम्परा आज के युग में फिर से जीवित हो गई है. भारतीय संगीत पुरातन काल से चलता आ रहा है. स्वयंसेवकों के वादन में संगीत की दृष्टि से कोई कमी नहीं होती.

उन्होंने कहा कि आपने अभी कार्यक्रम सुना, जो संगीत के विशेषज्ञ नहीं हैं, उनको भी अच्छा लगा. संगीत के असली समीक्षक श्रोता होते हैं, जिन्होंने सुना उनको अच्छा लगा, तो राग आ गया. हमारे स्वयंसेवक उत्कृष्ट करते हैं, क्योंकि इससे देशभक्ति का भाव बनता है. 10 प्रतिशत लोग दुष्ट होते हैं. 10 प्रतिशत ही संत समान होते हैं. 80 प्रतिशत लोग अच्छा बनना चाहते हैं, वो देख कर अच्छा बनते हैं. जो वादन सीखने आए हैं, उनमें पहली बार सीखने वाले भी हैं. आज जो प्रदर्शन हुआ, वह अच्छा था. लेकिन यदि मौसम खराब नहीं होता और यह प्रदर्शन मैदान में रहता, तो और अच्छा लगता. हालांकि सभी ने मिलकर जो परिश्रम किया है, वो कभी व्यर्थ नहीं जाएगा. इसके परिणाम जरुर होंगे. रोज की संस्कार साधना पुरुषों के लिए संघ में और महिलाओं के लिए राष्ट्रीय सेविका समिति में होती है. समाज के काम में दोनों मिलकर कार्य करते हैं. इस शिविर में आए हुए प्रतिभागियों में से चयनित घोष वादकों ने डॉ. मोहन भागवत के समक्ष हॉल में अपनी कला का प्रदर्शन भी किया.

यह भी पढ़ें: भगवान राम को हिन्दू समाज से परिचित कराने वाले भगवान वाल्मीकि थे: मोहन भागवत

कानपुर: नवाबगंज स्थित पं. दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय (Pt Deendayal Upadhyay Sanatan Dharma Vidyalaya) में हुए स्वर संगम घोष शिविर कार्यक्रम में सोमवार को आरएसएस के संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat in Swar Sangam Ghosh) ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि हमें अपने समाज को देश के लिए उपयोगी बनाना है. संगीत एक कला है और भारतीय कला में सत्यम, शिवम, सुंदरम की धारणा है. देश को बड़ा बनाना है, तो हमें अच्छा, संस्कारी बनना होगा. स्वार्थी बनकर देश को बड़ा नहीं बनाया जा सकता. एक दूसरे के साथ आगे बढ़ना ही संघ है. संघ में घोष वादन का मतलब सबको साथ लेकर चलना है. संघ में स्वर संगम संस्कारों का कार्यक्रम है, इससे स्वयंसेवकों में चारित्रिक विकास होता है.

वह शहर के नवाबगंज स्थित पं.दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय में हुए स्वर संगम घोष शिविर कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. वैसे तो यह कार्यक्रम स्कूल के मैदान पर होना था, लेकिन शहर में लगातार हो रही बारिश के चलते इसे स्कूल के सभागार में आयोजित किया गया. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि अपने देश में हुए युद्धों में रस संस्कृति रही होगी, क्योंकि युद्ध में वादन किया है. इसके उल्लेख भी मिलते हैं. विभिन्न वाद्यों के नाम भी आते हैं. परन्तु वो परंपरा विलुप्त हो गई. भारतीय परिवेश की परम्परा आज के युग में फिर से जीवित हो गई है. भारतीय संगीत पुरातन काल से चलता आ रहा है. स्वयंसेवकों के वादन में संगीत की दृष्टि से कोई कमी नहीं होती.

उन्होंने कहा कि आपने अभी कार्यक्रम सुना, जो संगीत के विशेषज्ञ नहीं हैं, उनको भी अच्छा लगा. संगीत के असली समीक्षक श्रोता होते हैं, जिन्होंने सुना उनको अच्छा लगा, तो राग आ गया. हमारे स्वयंसेवक उत्कृष्ट करते हैं, क्योंकि इससे देशभक्ति का भाव बनता है. 10 प्रतिशत लोग दुष्ट होते हैं. 10 प्रतिशत ही संत समान होते हैं. 80 प्रतिशत लोग अच्छा बनना चाहते हैं, वो देख कर अच्छा बनते हैं. जो वादन सीखने आए हैं, उनमें पहली बार सीखने वाले भी हैं. आज जो प्रदर्शन हुआ, वह अच्छा था. लेकिन यदि मौसम खराब नहीं होता और यह प्रदर्शन मैदान में रहता, तो और अच्छा लगता. हालांकि सभी ने मिलकर जो परिश्रम किया है, वो कभी व्यर्थ नहीं जाएगा. इसके परिणाम जरुर होंगे. रोज की संस्कार साधना पुरुषों के लिए संघ में और महिलाओं के लिए राष्ट्रीय सेविका समिति में होती है. समाज के काम में दोनों मिलकर कार्य करते हैं. इस शिविर में आए हुए प्रतिभागियों में से चयनित घोष वादकों ने डॉ. मोहन भागवत के समक्ष हॉल में अपनी कला का प्रदर्शन भी किया.

यह भी पढ़ें: भगवान राम को हिन्दू समाज से परिचित कराने वाले भगवान वाल्मीकि थे: मोहन भागवत

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.